वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2025 यानी आज संसद में केंद्रीय बजट प्रस्तुत करने जा रही हैं। ये मोदी सरकार के तीसरे कार्यालय का पहला पूर्णकालिक बजट होगा। इस बजट से सभी को काफी उम्मीदें हैं। इस बजट में कई महत्वपूर्ण आर्थिक शब्दावली का उल्लेख होगा, जो देश की आर्थिक स्थिति और नीतियों को समझने में सहायक हैं। आइए, डालते हैं उनपर एक नजर।
1. GDP (सकल घरेलू उत्पाद) – यह देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं की कुल मूल्य होती है। जब वित्त मंत्री बजट में GDP ग्रोथ की बात करते हैं, तो इसका मतलब होता है कि देश की अर्थव्यवस्था कितनी तेजी से बढ़ रही है।
2. WPI (थोक मूल्य सूचकांक) – यह मंहगाई का एक प्रमुख संकेतक है, जो थोक बाजार में वस्तुओं की कीमतों में बदलाव को दर्शाता है। अगर WPI बढ़ता है, तो इसका मतलब है कि उत्पादन लागत बढ़ रही है, जिससे खुदरा कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं।
3. CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) – यह आम आदमी की जेब पर असर डालने वाली महंगाई को मापता है। जब CPI बढ़ता है, तो रोजमर्रा की चीजें महंगी हो जाती हैं, जैसे खाना-पीना, कपड़े, बिजली-पानी आदि।
4. Fiscal Deficit (राजकोषीय घाटा) – जब सरकार की कमाई (कर और अन्य स्रोतों से) उसके खर्च से कम होती है, तो इस अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इसे पाटने के लिए सरकार कर्ज लेती है।
5. Per Capita Income (प्रति व्यक्ति आय) – यह दर्शाता है कि एक देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की औसत आय कितनी है। इसे GDP को देश की कुल जनसंख्या से विभाजित करके निकाला जाता है।
6. Direct Tax (प्रत्यक्ष कर) – ये वे कर हैं जो सीधे व्यक्ति या कंपनियों से वसूले जाते हैं, जैसे इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स। बजट में टैक्स स्लैब में बदलाव इसी श्रेणी में आता है।
7. Indirect Tax (अप्रत्यक्ष कर) – ये वे कर हैं जो किसी वस्तु या सेवा पर लगाए जाते हैं, जैसे GST (वस्तु एवं सेवा कर)। इसे ग्राहक को खरीदारी के दौरान देना पड़ता है।
8. Capital Expenditure (पूंजीगत व्यय) – यह वह खर्च है, जो बुनियादी ढांचे के विकास पर किया जाता है, जैसे सड़कों, पुलों, रेलवे, अस्पतालों का निर्माण। इससे अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक विकास होता है।
9. Revenue Deficit (राजस्व घाटा) – यह तब होता है जब सरकार के नियमित खर्च (जैसे वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान) उसकी कमाई से ज्यादा हो जाते हैं। इससे पता चलता है कि सरकार उधार लेकर खर्च चला रही है।
10. Public-Private Partnership (सार्वजनिक-निजी भागीदारी - PPP) – जब सरकार किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए निजी कंपनियों के साथ साझेदारी करती है, तो इसे PPP मॉडल कहा जाता है। इससे सरकारी खर्च कम होता है और निजी क्षेत्र की दक्षता का फायदा मिलता है।