स्वच्छ भारत अभियान में रेलवे को अपना जो योगदान देना चाहिए था, उसमें पूरी तरह विफल रहे रेल मंत्री। रेल बजट में सिर्फ 7000 नए बायो-टायलेट लगाने की बात कही गई है, जबकि जरूरत लाखों में थी।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने वर्ष 2015-16 में रिकॉर्ड एक लाख करोड़ रुपये की निवेश योजना पेश की है। निजी सरकारी साझेदारी के पुराने राग को ही दोहराते हुए रेल मंत्री ने कहा कि रेलवे स्टेशनों के विकास के लिए निजी क्षेत्र से बोली आमंत्रित की जाएगी। उन्होंने पीपीपी की राह में आ रही दिक्कतों से पार पाने की कोई योजना बताए बिना बस बोलियां आमंत्रित करने की बात दोहराई है।
रेलवे की हालत बेतरह खस्ता है। रेलवे कोच पुराने और जर्जर हो चुके हैं। उस दिशा में कोई बड़ी पहल करने के बजाय और कोई ठोस लक्ष्य तय करने के बजाय निजी निवेश के लिए योजनाओं को आसान बनाने की बात कही गई है। डिब्बा बनाने वाली योजनाओं में निजी निवेश पर निर्भरता बढ़ेगी, इसका संकेत तो मिला है, लेकिन उसके क्या नियम और शर्तें होंगी, इसका जिक्र नहीं किया गया है।
रेल मंत्री ने न तो कोई रेलगाड़ी चलाने की घोषणा की और न ही रेल भाड़ा बढ़ाया, लेकिन माल भाड़े में संयोजन के नाम पर जरूर वृद्धि की है। इससे सीमेंट, कोयला, लोह, इस्पात तथा पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ेगी। यह काम रेल मंत्री ने बड़ी खामोशी से किया है ताकि इस पर ज्यादा हंगामा न बढ़े और न ही इसे मुद्रास्फीति बढ़ाने वाला बजट माना जाए।
रेल मंत्री ने पहली बार तटीय कनेक्टिविटी कार्यक्रम के लिए 2000 करोड़ रुपये और 2500 करोड़ रुपये निर्माण-परिचालन-हस्तांतरण रूट के लिए रखे हैं। यह बड़े उद्योग-घरानों की लंबे समय से मांग थी। पहले इसे पीपीपी में करने की कई बार कोशिश हुई, लेकिन निजी निवेश न आने की वजह से मामला अधर में लटका हुआ था। भीषण आर्थिक संकट से जूझ रही रेलवे ने इतनी बड़ी राशि इस मद के लिए निकाल कर अपनी प्राथमिकता तय कर दी है। यहां भी निजी हितों की रेल बिना रुके दौड़ती दिख रही है। जन सामान्य के लिए न तो नई ट्रेनें हैं और न ही बुनियादी सुविधाओं की कोई गारंटी।
रेल बजट में सुविधाओं के लिहाज से बहुत थकी हुई पटरी पर गाड़ी दौड़ाई है। ट्रेनों में वाई-फाई सुविधा का विस्तार बी श्रेणी स्टेशनों तक करने की घोषणा की। रेल मंत्री ने सांसदों से अपने कोष के कुछ हिस्से का उपयोग रेल सुविधा बढ़ाने में करने का अनुरोध।