राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ समेत मजदूर-किसान शक्ति संगठन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन, जन जागरण शक्ति संगठन आदि ने इस आवंटन को छलावा करार दिया है। इन संगठनों ने कहा है कि बजट अपने घोषित लक्ष्यों से दूर रही है।
आरएसएस से जुड़े श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ ने कहा है कि अरुण जेटली द्वारा पेश बजट ‘ट्रांसफॉर्म, एनर्जाइज एंड क्लीन इंडिया’ के अपने घोषित लक्ष्यों को हासिल करने में विफल रही है। संघ के महासचिव वृजेश उपाध्याय ने एक बयान जारी कर कहा है कि नोटबंदी के जरिये सरकार को भारी मात्रा में राजस्व की प्राप्ति हुई है मगर उसका इस्तेमाल सामाजिक क्षेत्र में नहीं किया गया। नोटबंदी के कारण हुए पलायन की समस्या पर भी नहीं ध्यान दिया गया। मनरेगा में बजट भले ही बढ़ाया गया है मगर नोटबंदी के कारण शहरों से गांवों की ओर हुए पलायन और इसके कारण गांवों में रोजगार की बढ़ती मांग को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है।
दूसरी ओर वाम धारा के मजदूर-किसान संगठनों का आरोप है कि पिछले वर्ष मनरेगा के लिए 38 हजार 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था और इसे ही आधार बनाकर इस वर्ष 48 हजार करोड़ रुपये के आवंटन को 25 फीसदी वृद्धि बताया जा रहा है मगर इसमें इस तथ्य को गायब कर दिया गया है कि पिछले साल दो बार सप्लीमेंट्री आवंटन भी मनरेगा के लिए किया गया था और इस प्रकार 2016-17 में कुल 47 हजार 500 करोड़ रुपये मनरेगा को दिए गए। यानी इस वर्ष सिर्फ 500 करोड़ रुपये की वृद्धि की गई जो पिछले वर्ष के मुकाबले सिर्फ 1 फीसदी है।
इन संगठनों की ओर से अरुणा राय, निखिल डे, शंकर सिंह, एनी राजा, कामायनी स्वामी, आशीष रंजन आदि ने संयुक्त बयान जारी कर यह भी कहा कि पिछले वित्त वर्ष में मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान का 3469 करोड़ रुपये लंबित है और यह तब जबकि 47 हजार 500 करोड़ रुपये में से 93 फीसदी खर्च हो चुका है। यानी सिर्फ 7 फीसदी राशि पूरे देश में खर्च होने के लिए बची है। इस वित्त वर्ष के शेष बचे दो महीने में यह लंबित राशि और बढ़ेगी क्योंकि गांवों में यह दो महीने रोजगार की मांग के लिहाज से पीक सीजन माने जाते हैं। खुद मंत्रालय के डाटा के अनुसार फरवरी और मार्च में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 228 रुपये भुगतान के हिसाब से 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि की जरूरत होगी। यानी वर्तमान वित्तीय वर्ष में बकाया मजदूरी की राशि 13 हजार 500 करोड़ रुपये के आस-पास होगी। सीधी सी बात है कि नए बजटीय आवंटन का बड़ा हिस्सा इसे चुकाने में चला जाएगा। ऐसे में नए साल के लिए बजटीय आवंटन पिछले साल से भी कम रह जाएगा।
इन श्रमिक नेताओं ने कहा है कि नोटबंदी से त्रस्त मजदूर वर्ग के लिए मनरेगा ही जीवनरेखा है। ऐसे में उनके लिए अगर पर्याप्त बजट नहीं दिया गया तो स्थिति और खराब होगी।