केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय सीएसओ ने नए फार्मूले के आधार पर जीडीपी की विकास दर का आकलन पेश किया है। सीएसओ के मुताबिक, महंगाई को समायोजित करने के बाद वर्ष 2013-14 में जीडीपी की विकास दर 4.7 फीसदी नहीं बल्कि 6.9 फीसदी थी। इसी तरह वर्ष 2012-13 में देश की विकास दर भी नए फार्मूले के हिसाब से 4.5 फीसदी के बजाय 5.1 फीसदी बैठती है।
विकास दर के आंकड़ों में व्यापक संशोधन
वर्ष 2014-15 के लिए जारी जीडीपी की विकास दर के आंकड़ों में बड़े पैमाने पर संशोधन किया गया है। वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर 6.5 फीसदी से बढ़ाकर 6.7 फीसदी कर दी गई है जबकि दूसरी तिमाही की विकास दर को 8.2 फीसदी से बढ़ाकर 8.4 फीसदी किया गया है। हालांकि, तीसरी तिमाही की विकास को 7.5 फीसदी से घटाकर 6.6 फीसदी किया गया है।
मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ बढ़ी लेकिन कृषि का बुरा हाल
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2014-15 की आखिरी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 8.4 फीसदी की ग्रोथ रही। लेकिन कृषि उत्पादन में 1.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। साल की आखिरी तिमाही के आंकडों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया अभियान का कुछ असर दिखा है लेकिन कृषि उत्पादन की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। वित्त वर्ष 2014-15 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 7.1 फीसदी रही जबकि 2013-14 में यह आंकड़ा 5.3 फीसदी था। वित्त वर्ष 2014-15 में भी कृषि क्षेत्र की विकास दर गत वर्ष के 3.7 फीसदी से घटकर महज 0.2 फीसदी रह गई है।
जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते ये आंकड़े
आंकड़ों में दिखाई देती तीव्र विकास दर से अर्थशास्त्री सहमत नहीं हैं। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी का कहना है कि जीडीपी के इन आंकड़ों और जमीनी स्थिति में कुछ तो अंतर है। ऐसा लगता है शायद आकलन की पद्धति में बदलाव के चलते यह समस्या आ रही है। यह समझ आने में थोड़ा वक्त लगेगा।