सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नेशनल स्पाट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) का फाइनेंशियल टेक्नोलाजीज इंडिया लिमिटेड (एफटीआईएल) में विलय के फैसले को खारिज कर दिया। दोनों कंपनियों के विलय का फैसला 2016 में केंद्र सरकार द्वारा एनएसईएल के डिफॉल्ट मामले को देखते हुए किया था। असल में जुलाई 2013 में एनएसईएल ने 13 हजार निवेशकों का करीब 5600 करोड़ का डिफॉल्ट कर दिया था। इसके बाद कंपनी कानून के तहत एफटीआईएल (अब 63 मून टेक्नोलाजीज लिमिटेड) में विलय का फैसला लिया गया था। एनएसईएल में एफटीआईएल की 99.99 फीसदी हिस्सेदारी थी। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश आर एफ नरीमन और न्यायाधीश विनीत सरन की पीठ ने 63 मून टेक्नोलाजीज की याचिकाओं पर फैसला सुनाया है। याचिकाओं में बंबई उच्च न्यायालय के दिसंबर 2017 के उस आदेश को चुनौती दी गयी थी जिसमें केंद्र सरकरा के एनएसईएल तथा एफटीआईएल के विलय के आदेश को बरकरार रखा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र का फरवरी 2016 का आदेश कंपनी कानून की धारा 396 के दायरे से बाहर है और संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन है। पीठ ने कहा, ‘‘इसके अनुसार अपील की अनुमति दी जाती है और बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज किया जाता है। न्यायालय ने कहा कि एनएसईएल तथा एफटीआईएल का विलय ‘जन हित’ के मानदंड को संतुष्ट नहीं करता।
निवेशकों को मिलेगी रकम
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि '2013 जैसी आपात स्थिति केंद्र सरकार के ऑर्डर जारी करने तक समाप्त हो गई थी।' कोर्ट का कहना था कि इस वजह से अब विलय की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 11 अप्रैल को 63 मून्स की ओर से दायर शपथपत्र का हवाला देते हुए कहा कि NSEL में कंपनी की ओर से फंडिंग जारी रहेगी जिससे डिफॉल्टर्स से बकाया रकम की वसूली पर असर नहीं पड़ेगा। कोर्ट का कहना था, 'हम इस शपथपत्र को रिकॉर्ड में दर्ज कर रहे हैं।' ऐसे में निवेशकों की रकम मिल सकेगी।
एफटीआईएल के पास आई गई थी देनदारी
केंद्र सरकार के फैसले के तहत एनएसईएल की सभी संपत्ति तथा देनदारियां एफटीआईएल की संपत्ति और देनदारी बना दी गयी थीं। सरकार के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। बंबई उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2017 में याचिका को खारिज कर दिया था। जिसके आधार पर एफटीआईएल को सभी देनदारियां चुकानी पड़ती। फैसले पर 63 मून्स टेक्नोलोजीज के मानद चेयरमैन जिग्नेश शाह ने कहा है कि , ‘‘हमारा हमेशा से भारतीय न्यायपालिका तथा अदालतों पर भरोसा रहा है। अंतत: सचाई की जीत हुई।