प्रदेश के सेज विकास आयुक्त ए. के. राठौर ने बताया, केंद्र के वाणिज्य सचिव राजीव खेर की अध्यक्षता वाले मंजूरी बोर्ड (बीओए) ने सूबे में प्रस्तावित छह सेज परियोजनाओं की औपचारिक मंजूरी निरस्त कर दी है। यह फैसला मंजूरी बोर्ड की 20 फरवरी को हुई बैठक में पेश सिफारिशों के आधार पर किया गया है।
राठौर ने बताया कि प्रदेश की जिन छह सेज परियोजनाओं की औपचारिक मंजूरी रद्द की गई है, उनमें पार्श्वनाथ सेज लिमिटेड का इंदौर में प्रस्तावित आईटी सेज, जूम डेवलपर्स का इंदौर में अलग-अलग सेवाओं के लिए प्रस्तावित सेज, मालवा आईटी पार्क लिमिटेड का इंदौर में प्रस्तावित आईटी सेज, ग्वालियर एग्रीकल्चर का इंदौर में अलग-अलग सेवाओं के लिए प्रस्तावित सेज, कसेंडा रियल्टी का इंदौर में प्रस्तावित आईटी सेज और राइटर्स एंड पब्लिशर्स लिमिटेड का छिंदवाड़ा में प्रस्तावित आईटी सेज शामिल है। गौरतलब है कि निवेशक सेज इकाइयों पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) और डेवलपर कंपनियों पर लाभांश वितरण कर (डीडीटी) समाप्त किए जाने की मांग कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्राालय ने भी वित्त मंत्राालय से इसकी सिफारिश की थी लेकिन इस बार के बजट में यह छूट नहीं दी गई।
राठौर ने बताया कि इन सभी छह सेज परियोजनाओं को वर्ष 2006 से 2008 के बीच औपचारिक मंजूरी दी गई थी। लेकिन इनके विकासकर्ताओं ने सेज की स्थापना में अलग..अलग वजहों से खास रचि नहीं दिखायी। नतीजतन वाणिज्य सचिव की अध्यक्षता वाले मंजूरी बोर्ड के सामने सिफारिश की गयी कि इन सेज परियोजनाओं को दी गई औपचारिक मंजूरी निरस्त कर दी जाए। विचार..विमर्श के बाद इन सिफारिशों को मान लिया गया।
बहरहाल, प्रदेश में सेज स्थापना की चाल बेहद सुस्त बनी हुई है। पिछले 12 साल के दौरान सूबे में अधिसूचित 10 विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) में से केवल दो सेज योजनाओं में ही इकाइयों द्वारा निर्यात शुरू हो सका है। इनमें पीथमपुर स्थित बहुउत्पादीय सेज और इंदौर के सूचना प्रौद्योगिकी सेज का दर्जर्ा प्राप्त क्रिस्टल आईटी पार्क शामिल हैं।
राठौर हालांकि कहते हैं, प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सेज के विकास की संभावनाएं बेहद उजली हैं। उम्मीद है कि टीसीएस, इन्फोसिस और इम्पेटस सरीखी कम्पनियों की इंदौर में प्रस्तावित सेज परियोजनाएं वर्ष 2017 तक शुरू होकर साॅफ्टवेयर निर्यात का सिलसिला शुरू कर देंगी। तीनों कम्पनियों के प्रस्तावित आईटी सेज वर्ष 2013 में अधिसूचित हुए थे।
विशेषज्ञों के मुताबिक निवेशकों में सेज का आकर्षण घटने के पीछे केंद्र सरकार की नीतियां भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। अर्थशास्त्री डाॅ. जयंतीलाल भंडारी ने कहा कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के पहले आम बजट से उम्मीद की जा रही थी कि इसके जरिये सेज इकाइयों से वसूले जाने वाले न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) की दर घटाकर उद्योग जगत को बहुप्रतीक्षित राहत दी जाएगी। लेकिन दुर्भाग्यवश यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी।
उन्होंने कहा, सेज का देश के कुल निर्यात में प्रमुख योगदान है। मगर सेज में नई इकाई स्थापित करने के सख्त सरकारी कायदों और कर ढांचे की दुश्वारियों के कारण इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों के प्रति निवेशकों का आकर्षण कम हो रहा है। नतीजतन निर्यात के मोचर्े पर देश का प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है।