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आवास क्षेत्रः कम बजट से मिलती तेज गति

देश के मध्यम दर्जे के शहरों में सस्ते मकानों के निर्माण से दूर हो रही है जायदाद क्षेत्र की सुस्ती
आवास क्षेत्रः कम बजट से मिलती तेज गति

अमेरिका के रीयल एस्टेट (जायदाद) क्षेत्र में वर्ष 2007 में आई जोरदार मंदी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को इस प्रकार झकझोर दिया था कि भारत जैसे तेजी से विकास करते देश की विकास गति को अचानक बे्रक लग गए। कभी 9 फीसदी से ज्यादा गति से कुलांचे भरती अर्थव्यवस्था की विकास दर अचानक 5 फीसदी से नीचे आ गई। हालांकि दुनिया की मंदी का असर भारत के आवासीय क्षेत्र पर देर से हुआ। वर्ष 2011 तक तो यह क्षेत्र कमोबेश अपनी रफ्तार कायम रखने में सफल रहा मगर पिछले दो वर्षों से इस क्षेत्र में सुस्ती सी आ गई है। ऐसे में रीयल एस्टेट कारोबारियों ने अपनी रणनीति बदल ली है। कभी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों या फिर मुंबई, पुणे जैसे शहरों में निर्माण कर रहे इन कारोबारियों ने इन इलाकों से बाहर निकल कर लखनऊ, पटना, जयपुर, भोपाल, इंदौर, रायपुर, देहरादून जैसे शहरों में अपनी पकड़ बनानी शुरू की। अब इन शहरों में देश के तकरीबन सभी बड़े बिल्डरों की परियोजनाएं चल रही हैं। खास बात यह है कि इन शहरों में ये बिल्डर विलासितापूर्ण सुविधाओं वाले लक्जरी मकानों की जगह बुनियादी सुविधाओं वाले छोटे और वित्तीय रूप से आम लोगों की पहुंच में आने वाले मकान बना रहे हैं। अफोर्डेबल हाउसिंग के नाम से चल रहे इन परियोजनाओं ने ही देश में रीयल एस्टेट के कारोबार को फिर से तेजी दे दी है। सरकार ने जब से 50 लाख रुपये तक के मकान को अफोर्डेबल हाउसिंग के दायरे में रखा है तबसे इस क्षेत्र में निर्माण कार्य में तेजी आ गई है। हालांकि यहां यह सवाल भी लाजिमी है कि इन छोटे शहरों में 50 लाख का मकान भी एक आम आदमी कैसे खरीद पाएगा।

लखनऊ की बात करें तो डीएलएफ, एम्मार एमजीएफ, ओमैक्स और अंसल एपीआई जैसे नामी बिल्डर यहां अपनी परियोजनाएं शुरू कर चुके हैं। अपनी नफासत और तहजीब के लिए प्रसिद्ध लखनऊ शहर को अंतरराष्ट्रीय अमौसी हवाई अड्डे से जोड़ने वाले 22 किलोमीटर लंबे अमर शहीद पथ के दोनों ओर आसमान छूती इमारतें इस शहर में रीयल एस्टेट क्षेत्र के विकास की कहानी बता रही हैं। आवासीय क्षेत्र पर निगाह रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि लखनऊ में अब भी मांग के मुकाबले आवासों का निर्माण करीब करीब आधा ही है। इस इलाके में सबसे बड़ा खिलाड़ी अंसल एपीआई है जो 3500 एकड़ में सुशांत गोल्फ सिटी के नाम से पूरा शहर ही बसा रहा है। इसमें एक बेडरूम से लेकर 4 बेडरूम तक के फ्लैट, विला और पेंटहाउस बन रहे हैं। हालांकि लखनऊ में अफोर्डेबल हाउसिंग का सबसे बड़ा क्षेत्र गोमती नगर एक्सटेंशन है जहां 2000 रुपये से लेकर 3500 रुपये प्रति वर्ग फुट की दर से मकान उपलब्ध हैं। यहां पर एम्मार एमजीएफ 225 एकड़ क्षेत्र में गोमती ग्रीन के नाम से प्रोजेक्ट बना रहा है। मुख्य शहर के मुकाबले अमर शहीद पथ और गोमती नगर एक्सटेंशन में आवासीय मकानों की कीमत 40 से लेकर 50 फीसदी तक कम है। इसके कारण मांग में भी तेजी आई है। वैसे लखनऊ के व्यावसायिक इलाके हजरतगंज में भी 40 लाख रुपये से ज्यादा के फ्लैट उपलब्ध हैं। लखनऊ में टाटा कंसल्टेंसी सर्विस (टीसीएस) का एक बड़ा कैंपस है। इसके अलावा रिलायंस और वोडाफोन के बड़े कॉल सेंटर भी यहां कार्यरत हैं। हवाई अड्डे के करीब 100 एकड़ क्षेत्र में आईटी सिटी का निर्माण होने वाला है जिसमें एक आईआईटी और एक कैंसर अस्पताल भी होगा। ये सभी परियोजनाएं मिलकर लखनऊ को युवाओं के आकर्षण का केंद्र बना देंगी जिससे शहर आवास की मांग और बढ़ेगी।

वैसे देश में अफोर्डेबल हाउसिंग की सबसे अधिक परियोजनाएं आज भी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में ही चल रही हैं। दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद के कई इलाकों में कई लाख नए फ्लैट निर्माण के अलग-अलग चरण में हैं। इन इलाकों में नोएडा, ग्रेटर नोएडा (वेस्ट), इंदिरापुरम राजनगर एक्सटेंशन, क्रॉसिंग रिपब्लिक, एनएच-24, नोएडा एक्सप्रेस वे प्रमुख हैं। यहां आज भी 2500 रुपये से लेकर 5000 रुपये प्रति वर्ग फुट की दर से अच्छे फ्लैट उपलब्ध हैं। कुछ ज्यादा खर्च करने की सामर्थ्य रखने वालों के लिए गुड़गांव और नोएडा पहली पसंद है। इसके अलावा फरीदाबाद, सोनीपत, भिवाड़ी में भी रीयल एस्टेट का कारोबार बढ़ रहा है। देश के बड़े बिल्डरों में शूमार आम्रपाली समूह के चेयरमैन अनिल कुमार शर्मा के अनुसार अफोर्डेबल हाउसिंग ही रीयल एस्टेट समूह का भविष्य है। उनके अनुसार सरकार ने जब से 50 लाख रुपये तक के मकान को अफोर्डेबल हाउसिंग के दायरे में रखा है तबसे इस क्षेत्र में निर्माण कार्य में तेजी आ गई है। पहले जब 15 से 18 लाख तक के मकान को इस श्रेणी में रखा जाता था तब तो दिल्ली एनसीआर में किसी प्रोजेक्ट को अफोर्डेबल कहा ही नहीं जा सकता था क्योंकि पिछले दो वर्षों से तो यहां दो कमरे का छोटा सा मकान भी 30 लाख रुपये से कम का नहीं आ रहा है। शर्मा यह भी कहते हैं कि नई सरकार ने जिस तरह राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास और देश में 100 स्मार्ट शहर बनाने की घोषणा की है उससे इस सेक्टर की उम्मीदें बहुत बढ़ गई हैं क्योंकि इन दोनों ही कदमों का सीधा फायदा आवासीय क्षेत्र को होगा। नोएडा में एवीएस ऑर्केड के नाम से आवासीय परियोजना का निर्माण कर रहे एवीएस ग्रुप के प्रमुख विनोद कटियार के अनुसार देश में अब लक्जरी फ्लैटों का निर्माण बहुत ही कम हो गया है। वास्तविक स्थिति यह है कि महज 10 फीसदी फ्लैट ही इस श्रेणी के बन रहे हैं बाकी 90 फीसदी कम बजट के मकान ही बनाए जा रहे हैं। वैश्विक मंदी और लोगों की कमाई में खास बढ़ोतरी न होने के कारण लोग सस्ते मकानों में ही पैसा लगा रहे हैं। कटियार कहते हैं कि लखनऊ के तेजी से बढ़ते बाजार को देखते हुए उनकी कंपनी भी अपना अगला प्रोजेक्ट वहीं शुरू कर रही है।

रीयल एस्टेट डेवेलपर्स की संस्था क्रेडाई के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार रीयल एस्टेट क्षेत्र को विकास करने के लिए अफोर्डेबल हाउसिंग ही विकल्प बचता है क्योंकि जो भी व्यक्ति 25 लाख या उससे अधिक की राशि खर्च कर रहा है वह मकान के आकार से तो समझौता कर सकता है लेकिन सुविधाओं से नहीं। उसे घर के पास स्कूल, बाजार, मॉल, अच्छी सड़कें, बिजली, पानी जैसी सुविधाएं चाहिए ही। इसे देखते हुए कम कीमत के छोटे फ्लैट इस सेक्टर को तेज गति से दौड़ा सकते हैं।

राजस्थान की राजधानी जयपुर अभी अचल संपत्ति के खरीददारों के लिए बेहतर विकल्प है क्योंकि पिछले एक वर्ष में यहां संपत्ति के दामों में 10 फीसदी की गिरावट आई है। नेशनल हाउसिंग बैंक के अनुसार वर्ष 2014 की पहली तिमाही में ही यहां दामों में 3.8 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। हालांकि अगर आवासीय परियोजनाओं की बात करें तो इस सेक्टर की स्थिति भी मध्यम आकार के शहरों या कहें तो टीयर-2 शहरों से अलग नहीं है। जयपुर में अलग-अलग बिल्डरों की कम से कम 500 परियोजनाएं चल रही हैं। राजस्थान अफोर्डेबल हाउसिंग डेवेलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष विनय जोशी मीडिया से बातचीत में कहते हैं कि राज्य और केंद्र में सरकारों के बदलने के कारण लोग नीतिगत बदलावों की उम्मीद में हैं जिसके कारण मांग में हल्की गिरावट है मगर दिवाली तक स्थिति बदलने की उम्मीद है।

बिहार की राजधानी पटना हाल पिछले कई सालों से रीयल एस्टेट क्षेत्र में जबरदस्त उछाल की गवाह है। यहां पर दो बेडरूम वाले सामान्य मकान की कीमत दिल्ली-एनसीआर के बराबर और कई बार तो उससे ज्यादा भी हो सकती है। मगर अचानक इस बाजार में खरीददारों की कुछ कमी देखने को आ रही है। यहां छोटे प्लॉटों पर कई मकान बनाकर बेच चुके बिल्डर प्रशांत कहते हैं कि दाम में तो कमी नहीं है मगर एक नया चलन यह देखने में आ रहा है कि निवेश करने के लिए लोग अब पटना की जगह दिल्ली, मुंबई या पुणे को तरजीह देने लगे हैं। बिहार के कई लोग आईआईटी, मेडिकल करके या फिर प्रशासनिक क्षेत्र में पूरे देश में फैले हुए हैं। जब पटना में रीयल एस्टेट क्षेत्र का कारोबार तेज हुआ तो ये लोग बिहार में रह रहे अपने माता-पिता के लिए मकान खरीद कर भेंट करने में उत्सुक रहते थे मगर अब ऐसे खरीददारों की स्थिति में भी कुछ कमी आई है। वैसे आज भी खर्च किए गए पैसे के मुकाबले पटना में मकान से मिलने वाला रिटर्न 30 फीसदी से ज्यादा ही है। पटना के मुख्य इलाकों बोरिंग रोड या बोरिंग कैनाल रोड में तो संपत्तियां महंगी हैं मगर शहर के बाहरी इलाकों या दानापुर से सटे इलाकों में मकान अपेक्षाकृत ज्यादा सस्ते हैं। अधिकतर अफोर्डेबल मकान भी इन्हीं इलाकों में बन रहे हैं। आम्रपाली, आशियाना जैसे बड़े बिल्डरों ने यहां कई प्रोजेक्ट तैयार किए हैं।

दिल्ली और उसके आस-पास रहने वालों के लिए निवेश के लिहाज से उत्तराखंड एक आकर्षक स्थान है। यहां के कई लोगों ने हरिद्वार और देहरादून जैसे शहरों में आवासीय संपत्तियों में अपने पैसे का निवेश किया है। देहरादून को तो भविष्य का स्मार्ट शहर मानकर कई बड़ी कंपनियां वहां पहुंच भी चुकी हैं। पिछले एक वर्ष में कम से कम 10 बड़ी रीयल एस्टेट कंपनियों ने वहां अपनी परियोजनाएं शुरू की हैं। अच्छी बात यह है कि यहां के मकान भी कम बजट में अपना आशियाना चाहने वालों की अपेक्षाएं पूरी करते हैं।

देश के रीयल एस्टेट क्षेत्र को गति देने में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ भी अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं। ये दोनों ही राज्य भले ही अब अलग-अलग हों मगर इनके भोपाल-इंदौर और रायपुर-बिलासपुर जैसे शहरों में रीयल एस्टेट का कारोबार तेज गति से चल रहा है। छत्तीसगढ़ की राजधानी के लिए नया रायपुर के नाम से जो शहर बनाया जा रहा है उसके कारण यहां आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्र में जोरदार उछाल आया है। ओमेक्स बिल्डर्स, बंगाल अंबुजा और मर्लिन आदि समूह यहां बड़ी-बड़ी आवासीय परियोजनाएं चला रहे हैं। इसके अलावा यहां कई विशाल व्यावसासियक केंद्र भी तैयार किए जा रहे हैं। आने वाले समय में रायपुर रीयल एस्टेट का बड़ा केंद्र साबित हो सकता है। मध्य प्रदेश के भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में सत्या, प्रभातम और पार्श्वनाथ जैसे समूह यहां इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में भारी निवेश कर रहे हैं। डीएलएफ ने अगले पांच वर्षों में मध्य प्रदेश में 8000 करोड़ रुपये रीयल एस्टेट क्षेत्र में खर्च करने की योजना बनाई है। जाहिर है कि इससे राज्य में इस क्षेत्र का विकास तेज गति से होगा।

 

 

 

घर खरीदने से पहले रखें ध्यान

अफोर्डेबल या सस्ते घरों को खरीदने में लोग सबसे पहले मकान की कीमत ही पता करते हैं और कुछ जरूरी चीजों पर ध्यान ही नहीं देते। भले ही निवेश के लिए खरीद रहे हों या खुद के रहने के लिए, जरूरत इस बात की है कि नया मकान लेने से पहले कुछ बुनियादी चीजों का ध्यान रखा जाए। इनमें से सबसे पहली है परिवहन सुविधा। आप जिस इलाके में रहने जा रहे हैं वहां तक पहुंचने के लिए सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था है या नहीं, इसका पता जरूर लगा लें। दूसरी चीज है संपत्ति का कानूनी रूप से वैध होना। बिल्डर ने निर्माण से पहले सभी सरकारी विभागों से जरूरी अनुमति हासिल कर ली है या नहीं और यह निर्माण पूरी तरह वैध है या नहीं, इसकी जानकारी लेना जरूरी है अन्यथा बाद में आप कानूनी उलझनों में फंस सकते हैं। हालांकि कई बार सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार के कारण बिल्डर सभी अनुमतियां तो हासिल कर लेते हैं मगर बाद में इसका खामियाजा खरीददारों को भुगतना पड़ता है। अभी नोएडा में सुपरटेक के 800 खरीददार इस परेशानी से जूझ रहे हैं।

मकान खरीदने से पहले संबंधित बिल्डर के इतिहास की जानकारी जुटाना आवश्यक है। गाजियाबाद के इंदिरापुरम और वसुंधरा में ऐसे कई बिल्डर हैं जिन्होंने तीन वर्ष का वादा करके करीब 8 वर्ष में मकान खरीददारों को सौंपा। ऐसे बिल्डरों की जानकारी आजकल इंटरनेट और गूगल के जरिये आसानी से मिल जाती है क्योंकि पुराने खरीददार अपनी सारी शिकायत वहां अपलोड करते रहते हैं। जिस कॉलोनी में घर लेने का विचार हो वहां जरूरी चीजों की दुकानें, बच्चों के स्कूल की दूरी तथा खेलने या सैर के लिए पार्क आदि की व्यवस्था भी जरूर जांच लेनी चाहिए। अगर कॉलोनी नई है तो वहां की सुरक्षा के लिए बिल्डर ने क्या व्यवस्था कर रखी है यह भी मकान का सौदा करने से पहले पूछ लें। कई बार बिल्डर आपको मकान या पूरे प्रोजेक्ट की जानकारी देने के लिए जो पुस्तिका या ब्रोशर देते हैं उसमें कई वायदे किए जाते हैं। बाद में पता चलता है कि उनमें से कई वायदे पूरे नहीं हुए। अब अदालतों ने ब्रोशर में किए वायदों को पूरा करना बिल्डर के लिए अनिवार्य कर दिया है। कोशिश करें कि जब आप मकान खरीदने का समझौता कर रहे हैं तो समझौता पत्र पर इन सभी वायदों को भी नोट किया जाए। ऐसा करने से आपको पुख्ता कानूनी सुरक्षा हासिल रहेगी।

सबसे खास बात, मकान की खरीद का समझौता पत्र जो कि कानूनी दस्तावेज होता है, कमोबेश पूरी तरह बिल्डर के पक्ष में झुका होता है। कोशिश करें कि इसमें कम से कम बिल्डर आपको घर तय समय पर बनाकर दे, इसके लिए उससे पुख्ता वादा करवा लें। इसमें आप देरी के लिए जुर्माने का प्रावधान जुड़वा सकते हैं। आजकल कई बिल्डर प्रचार में तो इसका वादा करते हैं मगर कानूनी दस्तावेज में इसका जिक्र करने से बचने की कोशिश करते हैं, इसलिए बेहतर है कि आप उसे इस समझौता पत्र में जरूर डलवा लें।

 

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