युनाइटेड नेशंस कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डवलपमेंट (अंकटाड) ने चालू वर्ष के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर में घटकर सात साल के सबसे निचले स्तर पर रहने की आशंका जताई है। उसका कहना है कि विकास दर िगरकर छह फीसदी रह सकती है जबकि पिछले साल यह रफ्तार 7.4 फीसदी रही थी। अंकटाड का कहना है कि लक्ष्य के मुकाबले कम कर राजस्व संग्रह और सीमित सार्वजनिक व्यय के कारण विकास दर सुस्त पड़ सकती है।
कम जीएसटी संग्रह और सीमित खर्च मुख्य वजह
अंकटाड ने व्यापार और विकास पर जारी 2019 की रिपोर्ट में कहा है कि हाल में लागू किए गए जीएसटी संग्रह लक्ष्य से लगातार कम चल रहा है। इससे विकास दर सुस्त रहने के संकेत मिलते हैं। कर संग्रह घटने के कारण सरकार पर वित्तीय अनुशासन बरतने का दबाव है। इसके कारण सार्वजनिक व्यय सीमित रहेगा। इसका भी असर विकास दर पर पड़ सकता है।
पिछली तिमाही में सिर्फ पांच फीसदी थी रफ्तार
देश की आर्थिक विकास दर अप्रैल-जून तिमाही में घटकर पांच फीसदी पर रह गई जो पिछली 25 तिमाहियों की सबसे सुस्त रफ्तार थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक विकास दर अनुमान 7 फीसदी से घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। जबकि आरबीआइ विकास दर को रफ्तार देने के लिए लगातार चार बार रेपो रेट में कटौती कर चुका है। कुल मिलाकर उसने रेपो रेट में 1.10 फीसदी की कटौती है।
भारत और चीन दोनों ही सुस्ती के शिकार
अंकटाड का कहना है कि दुनिया की सबसे तेज रफ्तार प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं भारत और चीन में आर्थिक विकास दर सुस्त पड़ने के संकेत मिल रहे हैं।
रफ्तार सुधारने को सरकार ने उठाए कई कदम
सुस्त अर्थव्यवस्था के कारण सरकार को कई उपाय करने पड़े हैं। सरकार ने हाल में कॉरपोरेट रेट टैक्स में भारी कटौती की है। बड़ी कंपनियों को करीब दस फीसदी का फायदा मिला है। पहले सरचार्ज मिलाकर उन्हें करीब 35 फीसदी टैक्स देना पड़ता था, अब उन्हें 25 फीसदी से कम टैक्स देना होगा। नई कंपनियों के लिए टैक्स की दर में और ज्यादा रियायतें दी गई हैं। इससे सरकार के खजाने पर करीब 1.45 लाख करोड़ रुपये का भार आएगा। यही नहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निर्यात और रियल एस्टेट को बढ़ावा के उपायों के तहत सरकारी बैंकों के विलय की भी घोषणा की है। अनुबंधित मैन्यूफैक्टरिंग में एफडीआइ के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। सिंगल ब्रांड रिटेल और कोल माइनिंग में भी एफडीआइ के नियम आसान किए हैं।
विकास के लिए बैंकों के पास पूंजी की कमी
अंकटाड की रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक बैंक खासकर विकास बैंकों के पास पर्याप्त पूंजी का अभाव है। इसके कारण वे अपनी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। कुछ बैंकों ने अत्यधिक कर्ज बांटा है। उनकी आउटस्टैंडिंग बहुत ज्यादा है। जैसे चीन के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के मुकाबले चायना डवलपमेंट बैंक का बकाया कर्ज 13.4 फीसदी है। कोरिया के जीडीपी के मुकाबले कोरियन डवलपमेंट बैंक के कर्ज का अनुपात 10.5 फीसदी है। लेकिन बाकी सभी देशों जैसे भारत, मलेशिया, मेक्सिको, रूस और दक्षिण अफ्रीका में उनके सार्वजनिक बैंकों के कर्ज एक-दो फीसदी के बीच है। टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करन के लिए यह अनुपात बहुत कम है।
आएलएंडएफएस जैसी व्यवस्था पर चिंता
संयुक्त राष्ट्र के इस संगठन ने इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस एंड लीजिंग कंपनी (आइएलएंडएफएस) के संकट का हवाला देते हुए भारत और चीन के समानांतर विकास बैंकिंग व्यवस्था पर भी चिंता जताई है। कॉमर्शियल पेपर (सीपी) के सबसे बड़े जारीकर्ता आइएलएंडएफएस ने छोटी अवधि के प्रपत्र जारी किए जबकि लंबी अवधि के डवलपमेंट प्रोजेक्टों में पैसा निवेश किया। इस विसंगति के कारण वह संकट में फंसी। अंकटाड ने भारत और चीन में इस तरह समानांतर विकास बैंकिंग व्यवस्था पर चिंता जताई क्योंकि वे बैंकों के विकल्प बनकर उभरे। लेकिन ये संस्थान अस्थिर साबित होते हैं।