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2014 के बाद घटे रोजगार, रेलवे की एक नौकरी के लिए 200 दावेदार

नोटबंदी और जीएसटी के बाद मुश्किल दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार का संकट साफ दिखने लगा...
2014 के बाद घटे रोजगार, रेलवे की एक नौकरी के लिए 200 दावेदार

नोटबंदी और जीएसटी के बाद मुश्किल दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार का संकट साफ दिखने लगा है। साल 2014 से 2016 के बीच रोजगार के अवसर बढ़ने के बजाय घटे हैं। यह बात भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के समर्थन से चल रहे एक रिसर्च प्रोजेक्ट के आंकड़ों से पता चली है। उधर, खबर है कि रेलवे में एक नौकरी के लिए 200 उम्मीदवार लाइन में हैं।

बिजनेस अखबार मिंट के मुताबिक,  वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान देश में 0.1 फीसदी और 2014-15 के दौरान 0.2 फीसदी रोजगार घटे हैं। यह जानकारी केएलईएमएस इंडिया डेटाबेस से सामने आई है जो आरबीआई की मदद से चल रहा रिसर्च प्रोजेक्ट है। रोजगार में गिरावट के ये आंकड़े आरबीआई की वेबसाइट पर भी मौजूद हैं।    

साल 2015-16 तक के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार घटे हैं लेकिन सबसे ज्यादा गिरावट कृषि, खाद्य उत्पादों के उत्पादन, कपड़ा, चमड़ा उत्पाद, ट्रांसपोर्ट उपकरण और व्यापार के क्षेत्र में दर्ज की गई है। चिंता की बात है कि 2014-15 और 2015-16 जीडीपी की विकास दर के लिहाज से बेहतर साल थे। इन दोनों वर्षों में वास्तविक जीडीपी क्रमश: 7.4 और 8.2 फीसदी की दर से बढ़ी। लेकिन जीडीपी की यह बढ़ोतरी उस अनुपात में नौकरियां पैदा नहीं कर पाई। हाल के वर्षों तक रोजगारविहीन विकास की बात होती थी, लेकिन अब विकास नौकरियां पैदा करने के बजाय रोजगार को नष्ट करता दिखाई दे रहा है। 2015-16 से पहले 10 वर्षों में देश में रोजगार 0.53 फीसदी की मामूली सालाना दर से बढ़ा, लेकिन बाद के वर्षों में नौकरियां घटने लगीं और स्थिति बदतर हो गई।

कृषि क्षेत्र में रोजगार की कमी को खेती के घटते मुनाफे और किसानों के बढ़ते असंतोष से जोड़कर देखा जा सकता है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में लोग खेती से निकलकर उद्याेग-धंधों और सेवा क्षेत्र में आते हैं। मगर हालिया आंकड़े बताते हैं कि भारत में खेती छोड़ रहे लोगों को दूसरे क्षेत्रों में भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है। फिलहाल साल 2016-17 और 2017-18 में रोजगार के आंकड़े सामने नहीं आए हैं। इन दौरान अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी और जीएसटी का असर भी पड़ा है। जिसे देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोजगार में और ज्यादा कमी आएगी।  

एक तरफ आंकड़े रोजगार में कमी की ओर इशारा कर रहे हैं, वहीं रेलवे की निम्न स्तर की नौकरियों के लिए भी एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। रेलवे में एक लाख पदों पर भर्ती के लिए दो करोड़ से ज्यादा आवेदन प्राप्त हो चुके हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त उम्मीदवार कम शैक्षिक योग्यता वाली नौकरियों के लिए लाइन में हैं। 

कुल मिलाकर मोदी सरकार के लिए रोजगार के मोर्चे पर चुनौतियां बढ़ती जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर साल एक करोड़ नौकरियां पैदा करने का दावा किया था। फिलहाल सरकार यह बताने की स्थिति में भी नहीं है कि यह वादा किस हद तक पूरा या अधूरा है। इस बीच, जाने-माने अर्थशास्त्री और नोबेल विजेता पॉल क्रुगमैन आशंका जता चुके हैं कि अगर भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर नहीं बढ़ता है तो देश को बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है।

 

 

    

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