वित्त मंत्रालय में उच्च स्तर पर देश भर के तमाम बैंकों में गैर कानूनी तरीके से पुराने नोटों को नए नोट में बदलने और काले धन को सफेद करने के जुर्म में हुई छापेमारी की समीक्षा की गई। बैठक में शामिल एक उच्च अधिकारी के मुताबिक लापरवाही का आलम यह है कि कई मामलों में तो यह सामने आया है कि बैंकों ने केवाईसी के बेसिक नियमों का भी पालन नहीं किया है।
केवाईसी हर ग्राहक की पहचान सत्यापित करने संबंधी प्रक्रिया होती है जिसमें सरकार की तरफ से दिए गए पहचान पत्र से बैंक खाता को जोड़ा जाता है। यही नहीं बड़े वित्तीय लेन देन या गड़बड़ी वाले वित्तीय लेन देन की जानकारी रोज फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआइयू) को देने के नियम का भी पालन नहीं किया गया है। साफ है कि बैंकों के काम काज को सुधारने के लिए सरकार व रिजर्व बैंक को अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
सरकार को सिर्फ बैंकों के स्तर पर हुई गड़बड़ी को लेकर ही चिंता नहीं है बल्कि जिस तरह से रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारियों की मिली भगत सामने आई है वह गंभीर मामला है। बंगलुरु में केंद्रीय बैंक का एक अधिकारी पुराने नोटों के बदले नए नोट उपलब्ध कराने के आरोप में गिरफ्तार हुआ है। जांच एजेंसियों को संदेह है कि उसने करेंसी चेस्ट से ही पैसा गायब किया है। यह तब हुआ है जब करेंसी चेस्ट की सारी गतिविधियां वीडियो रिकॉर्ड की जाती हैं।
नए नोटों की आपूर्ति करेंसी चेस्ट पहुंचाने से लेकर अलग अलग बैंक शाखाओं को सुपुर्द करने तक वीडियो रिकॉर्डिग का आदेश जारी होने के बावजूद ऐसा हो रहा है। यह पूछे जाने पर कि क्या बैंकों पर आयद नियमों कानूनों की नए सिरे से समीक्षा की जाएगी, उक्त अधिकारी ने बताया कि इस बारे में निश्चित तौर पर सोचा जाएगा। पहले भी नियमों का पालन नहीं करने वाले बैंककर्मियों व बैंकों पर कार्रवाई की गई है। जरुरत नए कानून या नियम बनाने की नहीं है बल्कि मौजूदा नियमों का ही सख्ती से पालन करने की है।
आरबीआइ के आंकड़े बताते हैं कि नोट बंदी के बाद जिस तरह से बैंकों में मनी लॉंन्ड्रिंग करने की घटनाएं सामने आई हैं वह पहली बार नहीं है। वर्ष 2013 में देश के कई निजी व सरकारी बैंकों में काले को सफेद धन करने के काम का भंडाफोड़ हुआ था। उसके बाद दिसंबर 2013 में संसद में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बताया था कि सिर्फ उस वर्ष बैंकों में मनी लॉंन्ड्रिंग के 143 मामले दर्ज किये गये थे। इसके अलावा रिजर्व बैंक का आंकड़ा बताता है कि वर्ष 2009 से 2013 के बीच बैंककर्मियों की मिली भगत से किये गये फ्रॉड से बैंकों को छह हजार करोड़ रुपये का चूना लगा था।