कोरोना वायरस का खतरा जैसे-जैसे बढ़ रहा है, आम लोगों खासकर लाखों-करोड़ों श्रमिकों और मजदूरों की रोजी-रोटी पर संकट बढ़ रहा है। उद्योग-धंधों का पहिया भी थम गया है। देश की आर्थिक विकास दर सुस्त पड़ने की आशंका होने लगी है लेकिन वित्तीय राहत पैकेज को लेकर सरकार अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जल्द पैकेज घोषित करने की मांग की है। कांग्रेस पार्टी और इसके वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी इसी तरह की मांग उठाई है।
वित्त मंत्री अभी चर्चाएं कर रहीं
फाइनेंशियल टास्क फोर्स को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद चारों ओर से जल्दी पैकेज लाने की मांग हो रही है लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई संकेत नहीं मिला है। लेकिन भारत में अभी वित्तीय पैकेज पर बात अभी चर्चाओं के स्तर पर ही दिखाई दे रहा है। पीएम मोदी ने फाइनेंशियल टास्क फोर्स की घोषणा की थी। इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अगुआई वाला टास्क फोर्स सिविल एविएशन, एमएसएमई, ट्यूरिज्म, फिशरीज, पशुधन और डेयरी जैसे मंत्रालयों के साथ विचार विमर्श कर रही हैं। लेकिन इसकी घोषणा कब तक होगी, इसके बारे में अभी कोई संकेत नहीं है।
पीएम ने की उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव को रोकने और कम करने के उपायों पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बातचीत की। एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि देश के 18 शहरों के उद्योग मंडल जैसे एसोचैम, एफआईसीसीआई, सीआईआई और कई स्थानीय मंडलों के प्रतिनिधियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया। प्रमुख सचिव, कैबिनेट सचिव और सचिव, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने भी इसमें भाग लिया। चर्चा में बैंकिंग, वित्त, आतिथ्य, पर्यटन, बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों से जुड़े विशिष्ट मुद्दों को शामिल किया गया और वित्तीय और राजकोषीय सहायता के माध्यम से इन चुनौतियों को दूर करने में मदद के लिए अनुरोध किया गया। बयान में कहा गया है कि उद्योग प्रतिनिधियों ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आर्थिक नुकसान के बावजूद लॉकडाउन की स्थापना के महत्व की सराहना की। प्रतिनिधियों से बात करते हुए, प्रधान मंत्री ने कहा कि जब सरकार देश में विकास की गति को बढ़ाने के लिए काम कर रही थी, तब कोविड-19 के तौर पर अप्रत्याशित बाधा सामने आई। उन्होंने कहा कि महामारी से उत्पन्न चुनौती विश्व युद्धों से भी गंभीर है और इसके प्रसार को रोकने के लिए हमें निरंतर सतर्कता बरतने की जरूरत है। प्रधान मंत्री ने कहा कि COVID-19 के कारण अनौपचारिक क्षेत्र सहित पर्यटन, निर्माण, आतिथ्य और दैनिक जीवन की व्यस्तता जैसे कई क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ समय के लिए अर्थव्यवस्था पर प्रभाव महसूस किया जाएगा।ो उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव को रोकने और कम करने के उपायों पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बातचीत की। एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि देश के 18 शहरों के उद्योग मंडल जैसे एसोचैम, एफआईसीसीआई, सीआईआई और कई स्थानीय मंडलों के प्रतिनिधियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया। प्रमुख सचिव, कैबिनेट सचिव और सचिव, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने भी इसमें भाग लिया। चर्चा में बैंकिंग, वित्त, आतिथ्य, पर्यटन, बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों से जुड़े विशिष्ट मुद्दों को शामिल किया गया और वित्तीय और राजकोषीय सहायता के माध्यम से इन चुनौतियों को दूर करने में मदद के लिए अनुरोध किया गया। बयान में कहा गया है कि उद्योग प्रतिनिधियों ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आर्थिक नुकसान के बावजूद लॉकडाउन की स्थापना के महत्व की सराहना की। प्रतिनिधियों से बात करते हुए, प्रधान मंत्री ने कहा कि जब सरकार देश में विकास की गति को बढ़ाने के लिए काम कर रही थी, तब कोविड-19 के तौर पर अप्रत्याशित बाधा सामने आई। उन्होंने कहा कि महामारी से उत्पन्न चुनौती विश्व युद्धों से भी गंभीर है और इसके प्रसार को रोकने के लिए हमें निरंतर सतर्कता बरतने की जरूरत है। प्रधान मंत्री ने कहा कि COVID-19 के कारण अनौपचारिक क्षेत्र सहित पर्यटन, निर्माण, आतिथ्य और दैनिक जीवन की व्यस्तता जैसे कई क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ समय के लिए अर्थव्यवस्था पर प्रभाव महसूस किया जाएगा।
कैप्टन ने जल्द राहत की मांग उठाई
पंजाब के मुख्यमंत्री ने पीएम और वित्त मंत्री को भेजे पत्र में कहा है कि कोरोना वायरस से छोटे उद्योगों र उन सेक्टरों को मदद देने की मांग की है जिन पर बड़ी संख्या में कर्मचारी निर्भर है और असंगठित श्रमिक जुड़े हैं। उन्होंने मनरेगा में मजदूरों को काम देने और खाद्य सुरक्षा योजना में गरीबों को मदद देने की मांग की है।
कांग्रेस ने कहा- पूंजीपतियों को नहीं गरीबों को दें पैकेज
पी. चिदंबरम ने कहा है कि सरकार को इटली से सबक लेना चाहिए। लॉकडाउन जैसे बचाव के उपायों के साथ ही आर्थिक उपाय तुरंत किए जाने चाहिए। आर्थिक पीड़ा आम लोगों को बहुत प्रभावित करेगी। उधर, कांग्रेस के प्रवक्ता अजय माकन ने तंज कसते हुए कहा कि सरकार को पीएम मोदी के पूंजीपति दोस्तों के बजाय आम लोगों और श्रमिकों के लिए आर्थिक पैकेज लाना चाहिए।
आर्थिक आपदा की तस्वीर ज्यादा डरावनी
कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट के आर्थिक पहलू की डरावनी तस्वीर रोजाना शेयर बाजार से दिखाई दे रही है। बीएसई सेंसेक्स आज 3935 अंक यानी करीब 13 फीसदी गिर गया। इसी तरह एनएसई निफ्टी भी 1135 अंक लुढ़क गया। एक ही दिन में करीब 14 लाख करोड़ रुपये की संपदा स्वाहा हो गई। महामारी शुरू होने से अब तक के कुल नुकसान की बात करें सेंसेक्स करीब 16000 अंक लुढ़क चुका है। एसएंडपी ने भारत की विकास दर में 1.3 फीसदी की गिरावट कोरोना के कारण आने का अनुमान जारी किया है। उसने भारत ही नहीं, बल्कि समूचे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 650 अरब डॉलर की आय के स्थायी नुकसान का अनुमान लगाया है।
हर तरफ आर्थिक गतिविधियां थमीं
अगर इस संकट को माइक्रो लेवल पर देखें तो हर ओर लॉकडाउन और कर्फ्यू से चारों ओर बाजार, उद्योग और अन्य सभी गतिविधियां ठप नजर आ रही हैं। आइटी जैसे कुछ क्षेत्रों में ऑफ-शोर गतिविधियों को छोड़ दें तो अधिकांश आर्थिक गतिविधियां बंद हैं। इसका सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र और ठेके के श्रमिकों और दूसरे कामगाजों पर पड़ने लगा है जिन्हें आर्थिक क्षति की कोई भरपाई होने की संभावना नहीं है। कुछ राज्यों जैसे दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश में राज्य सरकारों ने दैनिक वेतनभोगियों और असंगठित कामगारों को आर्थिक मदद की घोषणाएं की हैं लेकिन उनकी तमाम सीमाएं हैं। इस वजह से इन वर्गों के आर्थिक संकट की भरपाई मुश्किल दिखाई दे रही है।
इन देशों से दिखाई पैकेज देने में तत्परता
कोरोना संकट से निपटने के लिए अमेरका सहित कई देशों ने खासी तत्परता दिखाई और उन्होंने और उनके केंद्रीय बैंकों ने बड़े वित्तीय पैकेज पेश कर दिए। अमेरिका ने 1.8 ट्रिलियन डॉलर (135 लाख करोड़ रुपये) की घोषणा की है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने अर्थव्यस्था के लिए वह भरपूर नकदी डालेगा। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, टर्की, जर्मनी और ब्रिटेन सहित कई देश अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पहल कर चुके हैं।