बांबे हाई कोर्ट ने कहा है कि नोटबंदी से साबित हो चुका है कि देश में नकली करेंसी का प्रचलन महज कोरी कल्पना है। इसके बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक बार-बार नोट और सिक्कों का आकार और डिजाइन क्यों बदल रहा है।
99.5 फीसदी पुराने नोट वापस जमा हुए थे बैंकों में
गौरतलब है कि नोटबंदी के दौरान बंद हुए 500 और 1000 रुपये के 99.5 फीसदी पुराने नोट वापस बैंकों के जरिये आरबीआइ में जमा हो गए। इससे साफ हो जाता है कि नकली नोट थे ही नहीं। जमा नोट आरबीआइ ने न सिर्फ स्वीकार किए बल्कि उनके बदले में दूसरे नोट भी जमाकर्ता को लौटाए। नोटबंदी से फर्जी करेंसी पकड़े जाने की बात कहीं साबित नहीं हुई।
नोटों की डिजाइन बार-बाद बदलने पर सवाल
हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। उसने आरबीआइ से पूछा है कि वह करेंसी नोट और सिक्कों का आकार और अन्य फीचर बार-बार क्यों बदल रहा है। इसके बारे में वह स्पष्टीकरण दे।
याचिका में दिव्यांगों की परेशानी का मुद्दा
नेशनल एसोसिएशन ऑफ दि ब्लाइंड (एनएबी) की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश नंदराजोग और एन. एम. जामदार की पीठ ने आरबीआइ से कई सवाल किए हैं। एनएबी ने दावा किया था कि आरबीआइ द्वारा नए करेंसी नोट और सिक्के जारी किए जाने से दिव्यांगों को उनकी पहचान करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
नोटों का आकार बार-बार कहीं नहीं बदला जाता
मुख्य न्यायाधीश नंदराजोग ने कहा कि हम आरबीआइ से जानना चाहता है कि वे करेंसी नोट के आकार और फीचर में लगातार बदलाव क्यों कर रहे हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि दुनिया के किसी भी देश में करेंसी नोट के आकार और फीचर्स में इतनी जल्दी-जल्दी बदलाव नहीं किया जाता है।
अदालत ने आरबीआइ से जवाब मांगा
अदालत को बताया गया कि इस साल मार्च में आरबीआइ ने विशेष फीचर्स वाले नए सिक्के जारी किए ताकि दिव्यांग उन्हें आसानी से पहचान सकें। अदालत ने आरबीआइ को आदेश दिया है कि वह छह सप्ताह के भीतर इस मुद्दे पर हलफनामा प्रस्तुत करे। हाई कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई है कि नए करेंसी नोट और सिक्कों में विशिष्ट फीचर्स शामिल करने के लिए आरबीआइ को निर्देश दिए जाएं।