वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने रियल एस्टेट डेवलपर्स से तैयार घरों की इन्वेंटरी कम करने के लिए उन्हें दाम घटाकर बेचने का सुझाव दिया है। हालांकि बिल्डर्स का कहना है कि वे सर्किल रेट से कम कीमत पर फ्लैट या घर नहीं बेच सकते हैं, क्योंकि इनकम टैक्स नियमों में इसकी इजाजत नहीं है। रियल्टी कंपनियों के संगठन क्रेडाई और नारेडको का कहना है कि सर्किल रेट से 10 फीसदी तक कम कीमत पर ही बेचा जा सकता है। अंतर इससे अधिक होने पर डेवलपर और घर खरीदार दोनों को अतिरिक्त टैक्स चुकाना पड़ता है।
नारेडको के साथ वाणिज्य मंत्री ने की थी बैठक
नारेडको के सदस्यों के साथ 3 जून को वाणिज्य मंत्री की वर्चुअल मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग का एक वीडियो लीक हुआ है जिसमें गोयल कह रहे हैं कि सरकार देख रही है कि सर्किल रेट में कुछ रियायत दी जा सकती है या नहीं। गोयल ने डेवलपर्स से कहा कि जब तक आप दाम कम नहीं करेंगे जब तक आपकी इन्वेंटरी कम नहीं होगी। डेवलपर्स के सामने दो विकल्प हैं- या तो वे अपनी इन्वेंटरी के साथ बैठे रहें और कर्ज भुगतान में डिफॉल्ट करें या अपना पुराना स्टॉक बेचकर आगे बढ़ें।
गोयल का सुझाव, दाम घटाकर इन्वेंटरी कम करें डेवलपर
गोयल ने कहा अगर आप में से कोई यह सोचता है कि सरकार आपकी इस तरह मदद करेगी कि आप लंबे समय तक इन्वेंटरी लेकर बैठे रहेंगे और बाजार के सुधरने का इंतजार करेंगे, तो तय मानिए कि बाजार जल्दी सुधरने वाला नहीं है। चीजें काफी बुरी तरह खराब हुई हैं और आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प बेचकर निकलने का ही है। उन्होंने कहा कि जिन डेवलपर्स ने अपनी इन्वेंटरी बेची और कर्ज का भुगतान किया, वे बच गए और जिन्होंने कीमत नहीं घटाई और इन्वेंटरी लेकर बैठे रहे वे ज्यादा परेशान हैं। इससे पहले सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी डेवलपर्स को ऐसा ही सुझाव दिया था।
डेवलपर्स ने की आयकर कानून में संशोधन की मांग
नारेडको और क्रेडाई दोनों ने आयकर कानून में संशोधन की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा है कि सर्किल रेट वास्तविक और बाजार दरों के मुताबिक ही होना चाहिए। नारेडको प्रेसिडेंट हीरानंदानी ने कहा कि आयकर कानून की धारा 43सीए के अनुसार अगर कोई डेवलपर सर्किल रेट की तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा डिस्काउंट पर बेचता है तो उसे इस डिस्काउंट पर अतिरिक्त टैक्स चुकाना पड़ेगा। आयकर कानून कहता है कि अगर प्रॉपर्टी की बिक्री सर्किल रेट से 10 फीसदी से अधिक डिस्काउंट पर होती है तो सर्किल रेट को ही बिक्री मूल्य माना जाएगा। आयकर कानून की धारा 56 (2) एक्स के मुताबिक इसे खरीदार के लिए इनकम मानकर उस पर टैक्स लागू होगा। इस तरह डिस्काउंट की एक ही रकम पर दो बार टैक्स देना पड़ता है, एक बार डेवलपर को और दूसरी बार घर खरीदार को। हीरानंदानी के अनुसार इसका समाधान यह है कि या तो सर्किल रेट घटाया जाए या आयकर कानून के इन प्रावधानों को खत्म किया जाए।
क्रेडाई प्रेसिडेंट जक्षय शाह ने कहा कि कुछ शहरों में डेवलपर अगर दाम घटाना भी चाहें तो आयकर कानून के प्रावधानों के चलते वे ऐसा नहीं कर सकते। इसलिए सरकार को इन प्रावधानों में संशोधन करने के साथ जीएसटी दरों, स्टांप ड्यूटी और होम लोन पर ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए, इससे मांग बढ़ेगी।