किसानों को कर्ज देने में भले ही सरकारी बैंक आनाकानी करते हों, उनकी गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) में कृषि कर्ज का हिस्सा बहुत मामूली है। यह बात संसद में सरकार की तरफ से दिए गए जवाब से ही साबित होती है। वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि बीते पांच वर्षों के दौरान सरकारी बैंकों ने 4.94 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बट्टे खाते में डाले (राइट ऑफ) हैं। इसमें से सिर्फ 39,186 करोड़ रुपये का कर्ज कृषि क्षेत्र का है। यह राइट ऑफ किए गए कुल कर्ज का सिर्फ 7.9 फीसदी है। यानी बाकी राइट ऑफ किए गए 92.1 फीसदी कर्ज इंडस्ट्री और अन्य सेक्टर के हैं।
राइट ऑफ में कृषि कर्ज का हिस्सा 5.7 से 11 फीसदी तक
वित्त राज्यमंत्री ने बताया कि सरकारी बैंकों ने 2014-15 में 47,658 करोड़, 2015-16 में 56,847 करोड़, 2016-17 में 79,048 करोड़, 2017-18 में 1,24,275 करोड़ और 2018-19 में 1,86,632 करोड़ रुपये कर्ज राइट ऑफ किए। इसमें कृषि क्षेत्र का कर्ज क्रमशः 2,833 करोड़, 6,361 करोड़, 7,091 करोड़, 10,345 करोड़ और 12,556 करोड़ रुपये का है। फीसदी में देखें तो राइट ऑफ किए गए कुल कर्ज में कृषि कर्ज क्रमशः 6 फीसदी, 11 फीसदी, 5.7 फीसदी, 8.3 फीसदी और 6.7 फीसदी है।
मुद्रा योजना में दिए गए कुल कर्ज का 2.86% एनपीए बना
अनुराग ठाकुर ने बताया कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत मार्च 2019 तक वाणिज्यिक बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने 6.04 लाख करोड़ रुपये के कर्ज दिए। इसमें से 17,251 करोड़ का कर्ज एनपीए बन गया है। यह कुल कर्ज का 2.86 फीसदी है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना 8 अप्रैल 2015 को लांच हुई थी। इसके तहत छोटे कारोबारियों को 10 लाख रुपये तक का कर्ज दिया जाता है। इस योजना में कर्ज को शिशु, किशोर और तरुण तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    