Advertisement

कभी भारतीय कंपनियों का 'डार्लिंग' रहा यस बैंक कैसे गंभीर संकट में घिरा

लाखों जमाकर्ताओं को संकट में डालने वाले यस बैंक ने पिछले वर्षों में देश की उन अधिकांश कंपनियों को मोटे...
कभी भारतीय कंपनियों का 'डार्लिंग' रहा यस बैंक कैसे गंभीर संकट में घिरा

लाखों जमाकर्ताओं को संकट में डालने वाले यस बैंक ने पिछले वर्षों में देश की उन अधिकांश कंपनियों को मोटे कर्ज दिए जो खुद संकट में फंस चुके हैं। ऐसी कंपनियों और उद्योग समूहों की लंबी फेहरिस्त में आइएलएंडएफएस, दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज, कॉक्स एंड किंग्स, सीजी पावर, कैफे कॉफी डे और एल्टिको जैसे कुछ बड़े नाम भी हैं। एक तरह से कहें तो बैंक किसी भी कंपनी को कर्ज देने को तैयार रहता था। यही वजह है कि एक दशक से थोड़े ज्यादा समय में यस बैंक की असेट बुक यानी कर्जों का आंकड़ा तीन लाख करोड़ रुपये के पार निकल गया।

जिन्हें कर्ज दिया, उनमें कई कंपनियां डूब गईं

आइएलएंडएफएस का नाम तो दिवालिया होने के समय बेहद चर्चित हो गया। इन्फ्रास्ट्रक्चर के अलावा कई अन्य तरह के क्षेत्रों में विस्तार करने वाले इस ग्रुप के दिवालिया होने पर समूचा वित्तीय जगत हिल गया। इसी तरह दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज और कॉक्स एंड किंग जैसी कंपनियों के संकट ने भी वित्त जगत के सामने गंभीर समस्याएं पैदा कीं। कैफे कॉफी डे के प्रमोटर वीजी सिद्धार्थ ने तो घाटे और संकट के चलते आत्महत्या कर ली थी।

जोखिम को नजरंदाज करके बैंक ने ऊंची ग्रोथ पाई

ऐसा नहीं है कि बैंक को इन कंपनियों को कर्ज देने के जोखिम की जानकारी नहीं थी। बैंक के संस्थापक और पूर्व मैनजिंग डायरेक्टर राणा कपूर ने ऊंची ग्रोथ हासिल करने के लिए कीमत वसूलकर जोखिम उठाने की रणनीति अपनाई। बैंक इन कंपनियों से ज्यादा जोखिम के लिए ज्यादा ब्याज वसूलता था। बैंक के कर्ज, डिपॉजिट और मुनाफे की हाई ग्रोथ के चलते इसका शेयर भाव एक समय तो 1400 रुपये के पार निकल गया था।

मास्टर स्ट्रोक संकट का सबब बना

बैंक ऑफ अमेरिका, एएनजेड ग्रिंडलेज बैंक और रैबो बैंक में कई वरिष्ठ पदों पर रहने के बाद यस बैंक शुरू करने वाले राणा कपूर के विशाल नेटवर्क से बैंक को खूब फायदा हुआ। यस बैंक भारतीय उद्योग जगत का डार्लिंग बन गया। आसानी से कर्ज देने के कारण यस बैंक कंपनियों का सबसे पसंदीदा बन गया। उसने जोखिम के लिए ऊंची ब्याज दर के रूप में कीमत भी वसूली। किसी और बैंक से कर्ज न पाने वाली कंपनियों को कर्ज देने की यस बैंक की रणनीति को बैंकिंग उद्योग में मास्टर स्ट्रोक माना जाने लगा।

कंपनियां डूबीं तो कर्ज अटकने लगे

बैंक के सामने समस्या 2018 के बाद शुरू होने लगी जब आर्थिक विकास दर सुस्त पड़ने लगी। ऊंची ब्याज दर से बैंक की आमदनी तो खूब बढ़ी लेकिन जब आर्थिक चुनौतियों के चलते कंपनियां संकट में फंसने लगीं तो बैंक भी मुश्किल के गर्त में जाने लगा। बैंक ने कोलेटरल सिक्योरिटी के तौर पर अधिकांश मामलों में शेयर रखे थे, आर्थिक सुस्ती के चलते इन शेयरों की कीमत घट गई। इसके कारण वह फंसे कर्ज की वसूली करने में नाकाम हो गया।

एनपीए के चलते बैंक घाटे में चला गया

सितंबर 2018 में बैंक ने एनपीए में किसी तरह की गड़बड़ी के आरोपों का खंडन करते हुए कहा था कि जून 2018 में उसका ग्रॉस एनपीए 1.3 फीसदी और नेट एनपीए 0.59 फीसदी है, जिसे किसी भी हालत में चिंताजनक नहीं कहा जा सकता है। लेकिन आरबीआइ को पता चला कि बैंक ने मार्च 2019 तक अपने फंसे कर्ज की रकम 3,277 करोड़ रुपये कम दिखाई। इसमें से 1,259 करोड़ रुपये के कर्ज 30 सितंबर तक एनपीए हो चुके थे जबकि 2018 करोड़ रुपये के संदिग्ध कर्ज थे।

अंततः आरबीआइ को मोरेटोरियम लगाना लगा

बैंक का एनपीए बढ़ने के साथ ही उसकी समस्या गंभीर होने लगी और घाटा बढ़ने लगा। बैंक की पूंजी का अनुपात भी तेजी से घटने लगा। सितंबर में बैंक का टियर-1 कैपिटल रेशियो घटकर 8.7 फीसदी पर रह गया। आरबीआइ बैंक के प्रबंधन के साथ मिलकर लगातार कैपिटल बढ़ाने का प्रयास कर रहा था। लेकिन नए निवेशकों की ओर से कैपिटल के कई प्रस्ताव मिलने के बाद भी कोई ठोस योजना तैयार न हो पाने के कारण आरबीआइ को कई तरह के प्रतिबंध लगाने का कदम उठाना पड़ा।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad