Advertisement

आर्थिक संकट: एक और घातक दस्तक, मोदी को भी सता रहा है डर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के खतरे से देश को बचाने के लिए तीन सप्ताह के लॉकडाउन की...
आर्थिक संकट: एक और घातक दस्तक, मोदी को भी सता रहा है डर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के खतरे से देश को बचाने के लिए तीन सप्ताह के लॉकडाउन की घोषणा तो कर दी है और लोगों को घर से बाहर न निकलने के लिए सख्त सलाह भी दी है। लेकिन उन्हें कोरोना वायरस की महामारी और इतने लंबे समय के लॉकडाउन के आर्थिक विध्वंस का एहसास भी है। तभी पीएम ने इसके आर्थिक दुष्परिणामों का जिक्र किया है। देश के अर्थशास्त्री, रेटिंग एजेंसी और उद्योग संगठन भी आर्थिक महामारी के खतरे की ओर संकेत कर रहे हैं। इसका आर्थिक प्रभाव देश की आर्थिक विकास दर पर तो पड़ेगा ही, लेकिन वास्तविक दुष्परिणाम दूसरे तरीकों से सामने आ सकता है।

आर्थिक प्रभाव पर पीएम के संकेत के मायने

पीएम मोदी ने मंगलवार की शाम को राष्ट्र को संबोधित करने से पहले उद्योग संगठनों के साथ वीडियो कांफ्रेंस के जरिये देश के आर्थिक हालात पर चर्चा की। बातचीत भी हुई और उद्योग संगठनों ने सुझाव भी दिए लेकिन जब पूरे देश में लॉकडाउन है और सब कुछ थम सा गया है तो ऐसे में आर्थिक प्रभाव को सीमित करने के उपाय बेहद संकुचित हो गए हैं। अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि आर्थिक प्रभाव कितना व्यापक होगा, इसके बारे में अभी जो अनुमान लगाए गए हैं, वे वास्तविक असर से भिन्न हो सकते हैं। उनका कहना है कि जब तक महामारी पर नियंत्रण होने के बारे में कोई संकेत नहीं मिलते हैं, तब तक आर्थिक प्रभाव का सटीक अनुमान लगा पाना बेहद मुश्किल है।

ये सेक्टर धीमा करेंगे आर्थिक पहिया

अभी तक के हालात को देखकर अर्थशास्त्री जो अनुमान लगा रहे हैं, वे भी कम भयावह नहीं हैं। एयरलाइन, ट्रैवल, ट्यूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी जैसे सेक्टरों पर असर अभी सबसे ज्यादा दिखाई दे रहा है। उनका कारोबार ठप हो चुका है। विश्लेषक कहते हैं कि चालू वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही जनवरी-मार्च में जो असर पड़ रहा है, वह तो महज तात्कालिक है। इसका वास्तविक और व्यापक असर अगले वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही अप्रैल-जून में दिखाई देगा। भारतीय स्टेट बैंक के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष कहते हैं कि व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज और कम्युनिकेशन क्षेत्र में गतिविधियां ठप होने से विकास दर में 0.90 फीसदी की सुस्ती आ सकती है। अगले वित्त वर्ष में इसका असर कहीं ज्यादा व्यापक होगा।

क्या कहती हैं रेटिंग एजेंसियां और इकोनॉमिस्ट

इकरा रेटिंग एजेंसी की प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट अदिति नायर का अनुमान है कि जनवरी-मार्च तिमाही में विकास दर घटकर 4.3 फीसदी रह सकती है। अगले वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में रफ्तार घटकर चार फीसदी से भी नीचे यानी 3.9 फीसदी पर रहने का अनुमान है। केयर रेटिंग्स ने तमाम क्षेत्रों के सीईओ, सीएफओ, निवेशकों, विश्लेषकों वगैरह के बीच सर्वे करके अनुमान लगाया है कि अगले वित्त वर्ष की विकास दर आधा फीसदी गिर सकती है। एस एंड पी और फिच जैसे ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों ने भी विकास दर घटने का अनुमान लगाया है।

असंगठित क्षेत्र पर दिखने लगा सीधा असर

लेकिन कोरोना वायरस के आर्थिक प्रभाव को समझने के लिए माइक्रो लेवल पर असर देखने की आवश्यकता है, तभी आर्थिक दर और इसके आम लोगों पर असर को समझा जा सकता है। यह सर्वविदित है कि देश के 90 फीसदी से ज्यादा कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में कामगार छोटे-मोटे कामधंधे करके आजीविका चलाते हैं। इसके अलावा करोड़ों लोग ठेकेदारों के जरिये मजदूरी करते हैं। रिक्शा, ई-रिक्शा, ऑटोरिक्शा, छोटी-मोटी दुकान लगाकर आजीविका कमाने वाले लोग लॉकडाउन से सबसे ज्यादा मुश्किल में फंसे हैं। इन लोगों की आर्थिक गतिविधियां ठप होने का सीधा असर है कि उनके पास जीने के लिए भी पैसा नहीं बचा है। सरकार से उन्हें आर्थिक मदद मिलना भी मुश्किल है क्योंकि इनके काम-धंधे का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है।

इन श्रमिकों पर होगा अकल्पनीय प्रभाव

कोरोना की वजह से कंस्ट्रक्शन गतिविधियां ठप होने से भी करोड़ों मजदूर खाली हो गए हैं। उनकी भी स्थिति बेहद खराब है। हर शहर में लेबर चौकों पर मजदूरों को कोई काम मिलने का सवाल नहीं है। इन्हें भी सरकार से मदद कैसे मिलेगी, इसका अभी तक उन्हें पता नहीं है। आर्थिक मदद से उन्हें भले ही थाेडी राहत मिल जाए, लेकिन आर्थिक गतिविधियों का नुकसान तो हो ही रहा है। पूरे देश में तीन सप्ताह के लिए लॉकडाउन का असर इन कामगारों पर कितना व्यापक होगा, अभी इसकी कल्पना भी मुश्किल है।

आर्थिक महामारी से बचाने के भी उपाय जरूरी

अर्थशास्त्री जीन ड्रेज सुझाव देते हैं कि इन वर्गों के कामगारों को तुरंत मदद की आवश्यकता है। उन्हें सोशल सिक्योरिटी पेंशन का एडवांस पेमेंट, ज्यादा मात्रा में रियायती राशन और मनरेगा जैसी स्कीमों में काम और तुरंत मजदूरी देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad