दिल्ली में लॉकडाउन का विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। दो महीने के लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में ज्यादातर गरीबों और गैर-प्रवासी कामगारों की साप्ताहिक आय में कम से कम 57% की गिरावट आई है। इनके कार्यदिवस में 73% की कमी हुई है। दस में से नौ लोगों ने बताया कि मई के शुरू तक साप्ताहिक आय शून्य हो गई थी। हाल ही में भारत में शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी इंडिया) के कार्यकारी निदेशक डॉ केन ली के एक शोध में ये बातें सामने आई हैं। यह शोध गरीब और गैर-प्रवासी मजदूरों पर किया गया। शोध के लिए 1,392 लोगों से बात की गई। लॉकडाउन से पहले ये लोग हर सप्ताह औसतन 2,994 रुपये कमाते थे। सर्वे के पहले चरण में यह घटकर 1,828.64 रुपये और दूसरे चरण में सिर्फ 412 रुपये रह गया। पहला चरण 27 मार्च से 19 अप्रैल और दूसरा चरण 25 अप्रैल से 13 मई तक था।
घर में रहने का समय दोगुना हुआ
नौकरी में नुकसान के बावजूद देखा गया कि लोग बड़ी संख्या में स्वास्थ्य से संबंधित निर्देशों का पालन कर रहे हैं। कोविड-19 के आने से पहले की तुलना में मास्क का उपयोग चौगुना (पहले प्रदूषण बढ़ने पर मास्क पहनते थे) और घर के अंदर रहने का समय दोगुना हो गया है। यही नहीं हाथ धोना तो लगभग सभी घरों में जरूरी हो गया है। डॉ. केन ली के मुताबिक, “दिल्ली में गैर-प्रवासी श्रमिकों के लिए लॉकडाउन आर्थिक रूप से विनाशकारी रहा, लेकिन इससे इंसानी व्यवहार में व्यापक बदलाव आया। लोगों ने सामाजिक तौर पर लोगों से मिलना कम कर दिया। साथ ही धूम्रपान भी कम कर दिया। ये आदतें वायरस के प्रसार और स्वास्थ्य प्रभावों को सीमित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि क्या लॉकडाउन हटने के बाद ये सकारात्मक व्यवहार जारी रहेंगे।’’
व्यवहार परिवर्तन में मीडिया की बड़ी भूमिका
शोधकर्ताओं ने पाया कि लोगों के इस व्यवहार परिवर्तन में मीडिया की बड़ी भूमिका रही है। इस दौरान मीडिया कवरेज को दर्शाने के लिए ट्विटर का डेटा इस्तेमाल किया गया। इसके मुताबिक कोविड-19 को लेकर 25 मार्च के बाद मीडिया कवरेज में 56 प्रतिशत का उछाल देखा गया। इस दौरान 80 प्रतिशत लोगों ने इस बीमारी को लेकर चिंतित महसूस किया।
आगे संक्रमण बढ़ेगा, सरकार मदद के लिए रहे तैयार
डॉ. ली के मुताबिक, “जिन लोगों पर यह सर्वे किया गया उनमें दिल्ली में ज्यादातर गैर-प्रवासी कामगारों के स्वास्थ्य, भूख, सुरक्षा आदि मसलों में बड़ा बदलाव नहीं आया है। बहुत से लोगों ने दिल्ली सरकार के खाद्य सहायता कार्यक्रम से लाभान्वित होने की जानकारी दी।’’ उन्होंने कहा कि नए अनुमानों के आधार पर आने वाले महीनों में संक्रमण में वृद्धि की उम्मीद है। इसलिए सरकार को इस प्रकार के सहायता कार्यक्रमों का तेजी से विस्तार करने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।
अध्ययन में यह भी देखा गया कि इस दौरान लोगों में मानसिक और भावनात्मक स्तर पर समस्याएं अधिक बढ़ गई हैं। इसके साथ ही खाद्य पदार्थों का कम मिलना और महंगा होना भी अलग समस्या बनकर उभरी है। इस अध्ययन में साल 2018 और 2019 की स्थिति की तुलना लॉकडाउन की अवधि 25 मार्च से 17 मई तक की गई है।