केंद्र सरकार भले सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) को बेचने पर तुली हो, लेकिन इस कदम से सरकार की आमदनी का एक नियमित जरिया खत्म हो सकता है। विनिवेश विभाग (दीपम) के सचिव तुहीन कांत पांडे ने एक ट्वीट में बताया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में 22 मार्च तक सरकार को पीएसयू से डिविडेंड के रूप में 30,369 करोड़ रुपये मिले हैं। वैसे तो इस साल के लिए बजट में 65,747 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब उसे संशोधित करके 34,717 करोड़ कर दिया गया है।
पीएसयू वर्षों से सरकार के गैर-कर राजस्व का बड़ा स्रोत रहे हैं। वर्ष 2014-15 से 2018-19 के दौरान डिविडेंड और अन्य निवेश के रूप में इन्होंने सरकार को दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा दिए हैं। इसमें से महारत्नों और नवरत्नों ने 1.66 लाख करोड़ दिए। सरकार के गैर-कर राजस्व में पीएसयू के डिविडेंड का हिस्सा 2014-15 में 16 फीसदी था, जो 2019 में 18 फीसदी हो गया।
2014-15 से पांच वर्षों के दौरान कोल इंडिया ने सरकार को सबसे अधिक 52,628 करोड़ रुपये का डिविडेंड दिया है। इसके बाद ओएऩजीसी ने 31,266 करोड़, इंडियन ऑयल ने 21,755 करोड़, बीपीसीएल ने 12,145 करोड़ और एनएमडीसी ने 10,749 करोड़ का लाभांश सरकार को दिया है।
सरकार ने 2016 में पीएसयू के लिए यह जरूरी कर दिया कि उन्हें मुनाफे का 30 फीसदी या नेटवर्थ का 5 फीसदी (दोनों में जो अधिक हो) डिविडेंड देना पड़ेगा। यानी कंपनी को भले नुकसान हो, उसे यह डिविडेंड देना ही पड़ेगा। पिछले साल भी जब कोविड-19 महामारी के कारण सरकार का राजस्व कम हो गया था, तो उसने सरकारी कंपनियों को ज्यादा डिविडेंड देने के लिए कहा था।
आईसीआईसीआई सिक्युरिटीज ने दिसंबर में एक रिपोर्ट में कहा था कि 2023 तक पीएसयू का डिविडेंड बढ़ेगा। जैसे, पावर ग्रिड ने पिछले साल 10 रुपये प्रति शेयर का डिविडेंड दिया था। इस वर्ष इसके 11.4 रुपये, अगले साल 13.2 रुपये और 2023 तक 15 रुपये हो जाने की उम्मीद है। कोल इंडिया और एनटीपीसी जैसी कंपनियों के लिए भी इसने डिविडेंड बढ़ने का अनुमान जताया है।
डिविडेंड के अलावा सरकार समय-समय पर पीएसयू को शेयर बायबैक के लिए भी कहती रहती है। 2014-15 से पांच वर्षों के दौरान पीएसयू के शेयर बायबैक से सरकारको करीब 40,000 करोड़ रुपये मिले थे। सवाल है कि जो पीएसयू संकट के समय सरकार की कमाई बढ़ाने में योगदान करते हैं, उन्हें बेच देने के बाद संकट के समय सरकार कहां से कमाई करेगी।