दास ने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा, ऐसा लगता है कि रेटिंग एजेंसियां मौजूदा वास्तविकता से कई कदम पीछे हैं। कम-से-कम भारत के संदर्भ में तो यही लगता है।
उन्होंने कहा, पिछले अक्तूबर में जब हम वित्त मंत्री के साथ विश्वबैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के साथ सालाना बैठक में गए थे तो वहां हमारी कई निवेशकों से भी बातचीत हुई थी। वे सभी इस बात से हैरान थे कि इन रेटिंग एजेंसियों ने भारत की वित्तीय साख को अब तक उंचे वर्ग में क्यों नहीं संशोधित किया है। करीब एक दशक पहले रेटिंग एजेंसियों ने भारत की साख बढ़ायी थी।
फिंच ने भारत की सरकारी साख 2006 में बढ़ाकर बीबीबी किया था जबकि स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने अपने विश्लेषण में देश की रेटिंग का स्तर 2007 में उंचा किया था।
दास ने कहा, मुझे लगता है कि भारत की रेटिंग कई साल पहले बढ़ायी गयी। हमारे देश में पिछले ढाई साल में सुधारों के रिकार्ड को देखिये। भारत ने जो सुधार किया है, उसे सूचीबद्ध कीजिए और उसकी तुलना में पिछले ढाई साल में अन्य किसी देश से कीजिए।
शक्तिकांत दास ने कहा, हमारे जीडीपी को देखिये। अन्य देशों की जीडीपी से इसकी तुलना कीजिए। हमारे वृहत आर्थिक आंकड़े मुद्रास्फीति, चालू खाते का घाटे को देखिये और उसकी तुलना कीजिए। अब वास्तव में मुझे समझ नहीं आता। मुझे लगता है कि रेटिंग एजेंसियां कुछ भूल रहीं है और इसके बारे में वे ही बता सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणिया ने भी आर्थिक समीक्षा में भारत और चीन की रेटिंग में असामान्य मानदंडों का अनुकरण करने को लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि एजेंसियों ने जीएसटी जैसे सुधारों पर गौर नहीं किया। यह उनकी साख की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
दास ने कहा, मुझे लगता है कि यह आत्मवलोकन का समय है। यह रेटिंग एजेंसियों के लिये आत्मवलोकन का समय है। वित्त वर्ष 2017-18 के बजट के बारे में उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि बजट की व्यापक रूप से सराहना की गयी है। आपको किसी खास तबके या अर्थव्यवस्था के किसी खंड विशेष से कोई बड़ी आलोचना सुनने को नहीं मिलेगी। भाषा