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माइक्रोफाइनैंस के द्वारा मार्जिन से मुख्यधारा तक

’ जुआन सोमाविया, पूर्व महानिदेशक, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन (आईएलओ) का कहना है कि...
माइक्रोफाइनैंस के द्वारा मार्जिन से मुख्यधारा तक

’ जुआन सोमाविया, पूर्व महानिदेशक, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन (आईएलओ) का कहना है कि ‘माइक्रोक्रेडिट महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा महिलाओं के लिए उनके घर एवं समुदाय में सम्मान, स्वतन्त्रता एवं भागीदारी बढ़ाने में मदद करता है।

चिली से आईएलओ के पूर्व हैड ने तकरीबन दस साल पहले जो बात कही वह आज भी भारत एवं विकासशील दुनिया पर खरी उतरती है। पिछले सालों के दौरान कई अध्ययनों से स्पष्ट हो गया है कि गरीब ग्रामीण एवं शहरी महिलाओं को माइक्रोक्रेडिट/ माइक्रोफाइनैंस मिलने से उनमें आत्मविश्वास आता है, जो उनके सशक्तिकरण की दिशा में पहला कदम है। इससे उनकी आवाज़ उठाने की क्षमता बढ़ती है, उनके साथ होने वाले हिंसा के मामले कम होते हैं और साथ ही वे परिवार के महत्वपूर्ण फैसलों को प्रभावित कर सकती हैं। 

अपने शोधपत्र में शोधकर्ता पुहाझेंधी वी एवं सत्य साई (2001) ने तर्क दिया कि ‘माइक्रोफाइनैंस ने ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सशक्तिकरण के उत्कृष्ट अवसर दिए हैं, जिससे उनके जीवनस्तर एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार आया है और साथ ही परिवार में उनकी भागीदारी भी बढ़ी है। सीजीएपी के अनुसार माइक्रोफाइनैंस की शुरूआत के बाद से महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में भी गिरावट आई है। 

महिलाओं को मिलने वाला माइक्रोक्रेडिट परिवार के अन्य सदस्यां के लिए वरदान साबित हुआ है। इससे बच्चों के स्कूल नामांकन में सुधार हुआ है, बच्चां खासतौर पर लड़कियों की स्कूली शिक्षा बीच में छूट जाने के मामले भी कम हुए हैं। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि इस तरह के लघु उद्यमों से उत्पन्न होने वाली आय को सबसे पहले बच्चों की शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य एवं पोषक आहार में निवेश किया जाता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

माइक्रोफाइनैंस कंपनियां ऋण लेने वाली महिलाओं पर ध्यान केन्द्रित करती हैं, क्यां कि पुरूषों की तुलना में महिलाएं समय पर ऋण चुकाती हैं। वे अपनी आय का बड़ा हिस्सा परिवार की ज़रूरतों पर खर्च करती हैं, ऐसे में ये कंपनियां ऋण लेने वाली महिलाओं को प्राथमिकता देती हैं।

माइक्रोफाइनैंस का मुख्य उद्देश्य है कम आय वाले ग्राहकों को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराकर महिलाओं को सशक्त बनाना, जो आमतौर पर बैंकिंग एवं इससे संबंधित अन्य सेवाओं से वंचित रहती हैं। ऋण के अलावा माइक्रोफाइनैंस लाखों लोगां को ज़रूरी वित्तीय सेवाएं भी मुहैया कराता है, जिनके पास बैंकों से ऋण लेने के लिए गिरवी रखने के लिए कुछ भी नहीं होता।

सबसे अच्छी बात यह है कि पिछले सालों के दौरान माइक्रोफाइनैंस में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। पिछले दस सालों की बात करें तो यह सेक्टर मार्च 2012 में रु 17364 करोड़ से 16.5 गुना बढ़कर 31 मार्च 2022 को रु 2,85,441 करोड़ पर पहुंच गया है। बैंकों के पास पोर्टफोलियो का सबसे बड़ा हिस्सा है, जिनकी ऋण की कुल बकाया राशि रु 1,41,051 करोड़ है, जो कुल माइक्रो क्रेडिट का 40.0 फीसदी हिस्सा है।

एनबीएफसी-एमएफआई रु 1,00,407 करोड़ की ऋण राशि के दूसरे सबसे बड़े माइक्रो-क्रेडिट प्रदाता हैं, जो उद्योग जगत के कुल पोर्टफोलियो का 35.2 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। छोटे फाइनैंस बैंकों के पास कुल रु 48,314 करोड़ की बकाया ऋण राशि है, जो 16.9 फीसदी हिस्सा बनाती है। वहीं एनबीएफसी 6.9 फीसदी और एमएफआई 1.0 फीसदी हिस्सा बनाते हैं।

 आरबीआई द्वारा घोषित नए विनियम संचालन में प्रत्यास्थता बढ़ाकर माइक्रोफाइनैंस को प्रोत्साहित करते हैं और बेहतर प्रोडक्ट्स एवं सर्विसेज़ के साथ इनोवेशन्स को बढ़ावा देते हैं।

इसी तरह नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एण्ड रूरल डेवलपमेन्ट (नाबार्ड) अपने स्वयं-सहायता समूह -बैंक लिंकेज माडल के साथ 14.2 करोड़ परिवारों एवं 119 लाख स्वयं सहायता समूहों को प्रभावित करता है। इसकी कुल बचत 31 मार्च 2022 को रु 47,240.48 करोड़ है तथा समान अवधि के दौरान बकाया क्रेडिट रु 1,51,051.30 करोड़ है। कुल एसएचजी में से तकरीबन 88 फीसदी एक्सक्लुज़िव रूप से महिलाओं के लिए हैं।

इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि स्वयं सहायता समूहों एवं अन्य लघु उद्यमों के सदस्य कई प्रकार के उत्पाद बनाते हैं जैसे रस्सी, जूट बैग, सैनिटरी नैपकिन, मिट्टी के बर्तन, आर्टीफिशियल ज्वैलरी, हाथ से बने पेपर प्रोडक्ट, मिठाईयां, अचार, रैडी-मिक्स पाउडर आदि। जिससे उनके परिवार को अतिरिक्त आय में मदद मिलती है।

महिलाओं की कमाने की क्षमता बढ़ाकर माइक्रोफाइनैंस कंपनियों ने आर्थिक सशक्तीकरण का चक्र शुरू किया है, जिससे महिलाओं के कल्याण को बढ़ावा मिला है, समाज एवं राजनीति में उनकी भूमिका बढ़ी है, लिंग समानता को प्रोत्साहन मिला है, और साथ ही महिलाओं की तरफ पुरूषों का व्यवहार भी बेहतर हुआ है।  

 

लेख डॉ आलोक मिश्रा ने लिखा है। डॉ आलोक मिश्रा सीईओ एवं डायरेक्टर, माइक्रोफाइनैंस इंडस्ट्री नेटवर्क (एमएफआईएन) हैं।

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