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मैं कभी नोटबंदी का समर्थक नहीं था: रघुराम राजन

रघुराम राजन ने अपनी किताब 'I Do What I Do: On Reforms Rhetoric and Resolve' में नोटबंदी से जुड़ी कई बातों का भी उल्लेख किया है। किताब में राजन ने लिखा है कि उनके कार्यकाल के दौरान कभी भी आरबीआई ने नोटबंदी पर फैसला नहीं लिया था।
मैं कभी नोटबंदी का समर्थक नहीं था: रघुराम राजन

पूर्व केन्द्रीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी नई किताब 'आई डू वॉट आई डू' (I Do What I Do) में लिखा है कि केन्द्र सरकार के लिए रिजर्व बैंक गवर्नर कोई नौकरशाह नहीं है। और उसे नौकरशाह समझना सरकार की भूल है। उन्होंने लिखा है कि केन्द्र सरकार को रिजर्व बैंक गवर्नर के पद को लेकर अपने रुख में सुधार करने की जरूरत है। 

यह किताब रघुराम राजन के गवर्नर रहते हुए उनके भाषणों और उनके विचारों का संकलन है।

नोटबंदी को लेकर किया खुलासा

अपनी किताब में राजन ने लिखा है कि मैं कभी नोटबंदी के समर्थन में नहीं था। साथ ही उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान कभी भी आरबीआई ने नोटबंदी पर फैसला नहीं लिया था। राजन के इस बयान से उन अटकलों पर भी विराम लग गया, जिसमें सरकार द्वारा कहा गया था कि नोटबंदी की योजना कई महीने से की जा रही थी।

किताब के मुताबिक, 2016 में रघुराम राजन ने काले धन को सिस्टम में लाने के लिए सरकार को कई सुझाव भी दिए थे। राजन ने इस बारे में ज़िक्र करते हुए कहा, "मैने फरवरी 2016 में मौखिक तौर पर अपनी सलाह दी थी और बाद में आरबीआई की तरफ से सरकार को एक नोट भी सौंपा था। जिसमें उठाए जानेवाले जरूरी कदमों और समयसीमा क पूरा खाका पेश किया था। लेकिन सरकार ने नोटबंदी को अपनाने का फैसला किया।

बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा

उन्होंने कहा, "इरादा भले ही अच्छा था लेकिन आर्थिक रुप से इसका बहुत बड़ा खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। निश्चित रूप से अब तो कोई किसी सूरत में नहीं कह सकता है कि यह आर्थिक रूप से सफल रहा है।" राजन की यह किताब इसी हफ्ते आने वाली है। जिसमें नोटबंदी के पर उन्होंने खुलकर अपनी बात कही है। राजन ने लिखा कि, "आरबीआई ने इस ओर इशारा किया कि बिना तैयारी के क्या हो सकता है।'

गौरतलब है कि राजन के आरबीआई गवर्नर पद का कार्यकाल तीन सितंबर 2016 को पूरा हो गया था। नोटबंदी के समय वो शिकागो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ा रहे थे। राजन ने कहा कि वह एक साल तक भारत से जुड़े विषयों पर नहीं बोले, क्योंकि वह कामकाज में दखल नहीं देना चाहते थे।

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