एक तरफ जहां यूएस, यूके, यूरोपीय यूनियन और चीन के शेयर बाजार संघर्ष करते नजर आ रहे हैं, भारतीय शेयर बाजार रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाए जा रहा है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स सूचकांक लगातार अपना पिछला ऑल-टाइम हाई तोड़ रहा है। साल 2015 के बाद से सेंसेक्स लगभग हर साल बढ़ा है। 26 मई 2014 को जब पहली बार एनडीए की सरकार बनी तब सेंसेक्स 24,716 के स्तर पर था और निफ्टी 7,359 पर कारोबार कर रहा था। लेकिन ठीक 10 साल बाद सेंसेक्स और निफ्टी तकरीबन तीन गुना बढ़ गया है। ये उछाल तब आया है जब दुनिया कोरोना वायरल के झटके से अभी भी उभर रही है और रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य-पूर्व में उपजे तनाव के कारण निवेशक अनिश्चितता में है।
चॉइस इक्विटी ब्रोकिंग के सीईओ अजय केजरीवाल आउटलुक को बताते हैं, "शेयर बाजार की चाल स्वाभाविक रूप से अनिश्चित है और आर्थिक स्थितियों, सरकारी नीतियों, वैश्विक घटनाओं और बाजार की भावना सहित कई चीजों से प्रभावित होती है। फिलहाल सेंसेक्स 73 हजार पर है और पिछले 12-13% प्रति वर्ष के औसत रिटर्न को देखते हुए ये उम्मीद है कि आने वाले 3 सालों में ही यह एक लाख के स्तर को पार कर जाएगा।"
गौरतलब है कि पिछले 10 सालों में भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों की संपत्ति पांच गुना बढ़ गई है। इस साल ही भारत हांगकांग को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे चौथा बड़ा शेयर बाजार बन गया। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय एक्सचेंजों में लिस्टेड शेयरों का कुल मूल्य 4.33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। भारत ने पहली बार 28 मई 2007 को 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का मील का पत्थर हासिल किया था। हालांकि, देश को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक का सफर तय करने में एक दशक और लग गया। हालांकि इसके बाद महज 4 साल बाद यानी 24 मई 2021 को भारत तीन ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा पार कर गया।
अभी और चमकेगा बाजार
वैश्विक निवेश सलाहकार फर्म जेफरीज अगले 10 वर्षों में भारत के भविष्य को लेकर आशावादी रुख अपनाया हुआ है। जेफरीज के अनुसार, "2027 तक दुनिया की भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और 2030 तक अर्थव्यवस्था 10 ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े को पार कर जाएगा।" ऐसे में सवाल उठता है कि जब दुनिया की दूसरी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी में हैं या इसके दोराहे पर खड़ी हैं, भारतीय बाजार इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है?
रेलिगेयर ब्रोकिंग लिमिटेड के सीनियर वाईस प्रेसिडेंट, अजित मिश्रा ने आउटलुक को बताया, "सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों और केंद्रीय बैंकों से लगातार मिल रहे समर्थन ने कोविड के बाद अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने में मदद की। इसका असर कंपनियों की वित्तीय स्थिति पर भी दिखने लगा है, जिससे मार्केट तेजी आई है। इसके अलावा, पिछले कुछ सालों से सभी क्षेत्रों में निजी निवेश में भी आ रहे हैं।" अजित मिश्रा ने आगे कहा, "सरकार भी रक्षा, रेलवे और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर खासा ध्यान दे रही है। वित्त वर्ष 23 के दौरान सरकार ने पूंजीगत व्यय में 33% की वृद्धि की घोषणा की। वहीं, वित्त वर्ष 24 के अंतरिम बजट में पूंजीगत इंफ्रास्ट्रक्चर बजट में 11% की वृद्धि की। ये एक निरंतरता को दर्शाता है जिससे निवेशकों का विश्वास बहाल हुआ है।"
गौरतलब है कि 2014 से 2023 के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों ने रिकॉर्ड 49.21 बिलियन डॉलर मूल्य के भारतीय इक्विटी खरीदे हैं। इस बीच, घरेलू संस्थागत निवेशकों ने 7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है। 2014 में पीएम मोदी के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद से एमएससीआई इंडिया इंडेक्स में 141% की वृद्धि हुई है, जो इस दौरान एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स की 9.4% की वृद्धि को बौना साबित करता है। मार्केट में सबसे ज्यादा फायदा सरकारी स्टॉक्स को हो रहे हैं। बीएसई पीएसयू इंडेक्स पर हर तीन पीएसयू शेयरों में से एक ने एक साल में 100% से अधिक रिटर्न दिया।
एक्सपर्ट्स मार्केट की इस तेजी में निवेशकों को सचेत करते नजर आ रहे हैं। विदेशी ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारतीय शेयर बाजार का मूल्यांकन न केवल बढ़ा हुआ लग रहा है, बल्कि भारत दुनिया का सबसे महंगा बड़ा बाजार बन गया है। यह इस साल रिटर्न पर असर डाल सकता है। तो क्या चुनाव बाद भारतीय शेयर बाजार में कुछ करेक्शन हो सकता है? अगर हां, तो निवेशकों को क्या रुख अपनाना चाहिए?
चुनाव और शेयर बाजार
भारतीय शेयर बाजार अक्सर आम चुनाव के दौरान आर्थिक स्थिरता के बैरोमीटर के रूप में काम करता है। निवेशक चुनावी घटनाओं पर बारीकी से नजर रखते हैं। अगर पिछले दो-तीन दशक के रिकॉर्ड को देखें तो आम चुनावों से पहले शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ जाती है। हालांकि चुनाव बाद हर बार निफ्टी और सेंसेक्स में तगड़ा उछाल देखने को मिलता है। आईसीआईसीआई डायरेक्ट के रिपोर्ट के मुताबिक, "साल 2004 के चुनाव को छोड़कर 2009, 2014 और 2019 के आम चुनावों के बाद सेंसेक्स और निफ्टी 50 ने हमेशा पॉजिटिव रिटर्न दिया। साल 2014 और साल 2019 में, दोनों सूचकांक चुनावी नतीजे आने के बाद क्रमशः 13% और 8% ऊपर चढ़े थे। बैंकिंग, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और आईटी जैसे सेक्टर हमेशा चुनावों के बाद टॉप परफॉर्मर बनते हैं।"
बहरहाल, पिछला प्रदर्शन भविष्य के नतीजों की गारंटी नहीं देता है। मॉर्गन स्टेनली की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में अगर मौजूदा सरकार स्पष्ट बहुमत के साथ चुनाव जीतती है, तो चुनाव के बाद तीन महीनों में बाजार 0% से 5% के बीच बढ़ सकता है। अगर सरकार स्पष्ट बहुमत नहीं जीतती है और गठबंधन सरकार बनती है, तो बाजार 5% से 25% के बीच गिर सकता है। वहीं, अगर भाजपा सरकार चुनाव हार जाती है और सबसे बड़ी पार्टी गठबंधन के सहारे सत्ता में आती तो शेयर बाजार में 40% की भारी गिरावट आ सकती है।
भारतीय शेयर बाजार में इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी आईपीओ का भी बाढ़ आया हुआ है। कंपनियां रिकॉर्ड संख्या में आईपीओ लाकर पैसे जुटा रही है। पिछले दो दशकों के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो चुनावों के दौरान हमेशा आईपीओ का क्रेज फीका पड़ जाता है। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान भी अभूतपूर्व संख्या में आईपीओ आ रहे हैं। प्राइम डेटाबेस द्वारा आउटलुक को साझा किए गए एक आंकड़ें के मुताबिक, "अक्टूबर से फरवरी के दौरान करीब 39 कंपनियों ने आईपीओ के जरिए 33253 करोड़ रुपये जुटाए। हालांकि, साल 2004, 2009, 2014 और 2019 के दौरान 20 आईपीओ के जरिए 4328 करोड़ रुपये जुटाए गए। इससे साफ पता चलता है कि लोकसभा चुनाव 2024 के पिछले 6 महीने में जितनी राशि जुटाई गई है, वो पिछले 4 चुनावों के साझा आंकड़ें से 7 गुना ज्यादा है।
हालांकि, एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि बाजार का वैल्यूएशन बहुत ज्यादा बढ़ गया है और ये लगातार बढ़ता ही जाता है। ऐसे में आने वाले में समय में खासतौर से लोकसभा चुनाव में भारतीय बाजार में गिरावट दिख सकती है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष, माधबी पुरी बुच ने भी स्माल और मिड-साइज कंपनियों के शेयरों के ऊंचे वैल्यूएशन पर चिंता जताई है। माधबी पुरी ने इन शेयरों में बबल बनने और छोटी कंपनियों के स्टॉक में प्राइस मैन्युपुलेशन की बात कहीं। तो क्या इस वक्त निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है? रेलिगेयर के अजित मिश्रा के मुताबिक, "बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं और पिछले एक साल में कोई खास करेक्शन नहीं हुआ है। आम चुनाव और भू-राजनीतिक तनाव जैसी घटनाओं के कारण बाजार में थोड़ा उतार-चढ़ाव हो सकता है। हालांकि, अनुकूल व्यापक आर्थिक माहौल के कारण हम किसी बड़ी गिरावट की आशंका नहीं कर रहे हैं।"
लगभग सभी एक्सपर्ट्स ने आउटलुक को बताया कि निवेशकों को शेयर बाजार में दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ जाना चाहिए। चुनाव से संबंधित अस्थिरता को कम करने के लिए बुनियादी बातों पर ध्यान देना सबसे ज्यादा जरूरी है। आम चुनाव शेयर बाजार को काफी प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन एक ठोस निवेश रणनीति के जरिए संभावित नुकसान से बचा जा सकता है।
वैश्विक बाजार और भारत
भारतीय शेयर बाजार ने पिछले तीन साल, पांच साल और दस साल के आधार पर दुनिया के प्रमुख बाजारों से बेहतर प्रदर्शन किया है। एएसके इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, "निफ्टी लार्ज कैप इंडेक्स ने पिछले 10 सालों में 10.9% एनुअल रिटर्न दिया है, जबकि अमेरिकी इंडेक्स ने 6% और चीन के बाजार ने 2.7% रिटर्न दिया है।" जानकारों का कहना है कि वैश्विक परिस्थितियां भारतीय बाजार में विदेशी निवेश को आकर्षित कर रही हैं। अमेरिका यूक्रेन और रूस में उलझा हुआ और अब मध्य-पूर्व में उपजे हालिया तनाव ने उसके लिए एक और संकट खड़ा कर दिया है। वहीं, चीन अब तक के सबसे बड़े रियल एस्टेट संकट से गुजर रहा है। दूसरी तरफ, चीन-अमेरिका के बीच चल रहे 'कोल्ड ट्रेड वार' ने बड़ी कंपनियों को सप्लाई चेन को बदलने पर मजबूर कर दिया है। यही कारण है कि भारत में रिकॉर्ड विदेशी संस्थागत निवेश आ रहा है।
हालांकि चीन धीरे-धीरे पटरी पर लौटता दिख रहा है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के पहले तिमाही के आश्चर्यजनक रूप से मजबूत प्रदर्शन के बाद बैंक ऑफ अमेरिका ने 2024 में चीन की आर्थिक वृद्धि के लिए अपने पूर्वानुमान को बढ़ाकर 5% कर दिया है। ऐसे में चीन फिर से पटरी पर लौटता है तो क्या भारतीय बाजार पर भी इसका असर होगा? सेबी द्वारा रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर गौरव गोयल आउटलुक को बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों में चीन से जो खबरें आ रही हैं, वे मिली-जुली हैं। चीनी सरकार ने अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ प्रयास किए हैं, लेकिन इसका प्रभाव अभी तक पूरी तरह से दिखाई नहीं दे रहा है। चीन और यूरोप से बड़ी वैश्विक विनिर्माण कंपनियों का डायवर्सिफिकेश प्लान भारत के पक्ष में जाएगा। भले ही उनकी अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित हो जाए। वहीं, अजय केजरीवाल का कहना है कि चीनी बाजार के प्रदर्शन का भारतीय बाजार पर प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारतीय बाजार कई और कारकों से प्रभावित होता है, जिसमें घरेलू आर्थिक नीतियां, भू-राजनीतिक घटनाएं और चीनी बाजार के प्रदर्शन से परे वैश्विक बाजार के रुझान शामिल हैं।