वित्त वर्ष 2025 में भारत का वैश्विक व्यापार परिदृश्य मिला-जुला रहा। इसमें अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष में वृद्धि और चीन के साथ व्यापार घाटे में चिंताजनक वृद्धि शामिल है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने अमेरिका के साथ 41.2 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष दर्ज किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ोतरी को दर्शाता है। वहीं चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 99.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो पिछले वित्त वर्ष के 85.07 बिलियन डॉलर से लगभग 17% अधिक है। यह असंतुलन भारत की आर्थिक नीतियों और वैश्विक व्यापार रणनीतियों के लिए एक चुनौती के रूप में उभर रहा है।
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा साझेदार
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 25 में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया, जो 128.55 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। इससे दोनों देशों के बीच प्रौद्योगिकी, रक्षा और सेवा क्षेत्रों में सहयोग ने इस अधिशेष को बढ़ाया है। भारतीय निर्यात, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं में, अमेरिकी बाजार में मजबूत मांग देखी गई। इसके उलट अमेरिका से भारत का आयात अपेक्षाकृत कम रहा, जिससे व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा। यह रणनीतिक साझेदारी दोनों देशों के बीच बढ़ते विश्वास और सहयोग को दर्शाती है। यह खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करता है।
भारत- चीन व्यापार घाटा चिंता का विषय
चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। वित्त वर्ष 2025 में भारत ने चीन से 118.4 बिलियन डॉलर का आयात किया, जबकि निर्यात केवल 19.2 बिलियन डॉलर रहा। इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर सेल, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी और औद्योगिक सामान जैसे क्षेत्रों में भारत की चीन पर निर्भरता बढ़ी है। वैश्विक मांग में गिरावट और चीन की आर्थिक मंदी ने इसके निर्यात को भारत जैसे बाजारों की ओर मोड़ दिया है। भारत सरकार ने इस बढ़ते घाटे पर नज़र रखने के लिए एक निगरानी तंत्र स्थापित किया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना और आयात निर्भरता को कम करना समय की मांग है।
चीनी डंपिंग के कारण नई राजनीतिक चुनौती
अमेरिका द्वारा चीन पर 245% तक टैरिफ लगाए जाने के बाद चीन ने भारत में सस्ते दामों पर सामान डंप करना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम चीन की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपने अधिशेष सामान को भारतीय बाजार में बेचकर व्यापार घाटा कम करना चाहता है। भारतीय उत्पादकों को स्टील, कृषि उत्पाद और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में डंपिंग के कारण घाटे का डर है। सरकार ने एंटी-डंपिंग शुल्क लगाकर जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है, हाल ही में उसने चार चीनी उत्पादों पर शुल्क लगाया है। फिर भी, यह डंपिंग भारत के घरेलू उद्योगों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।