आज यानी 11 अगस्त 2025 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में नया आयकर बिल 2025 पेश किया, जो 1961 के आयकर अधिनियम को बदलने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह बिल पुराने बिल का संशोधित संस्करण है, जिसे फरवरी 2025 में पेश किया गया था और बाद में वापस ले लिया गया था। हालांकि, सवाल है कि पुराना बिल क्यों वापस लिया गया?
इसका कारण संसदीय चयन समिति, जिसकी अध्यक्षता बीजेपी सांसद बिजयंत पांडा ने की, द्वारा दी गई 285 सिफारिशें थीं, जिनमें ड्राफ्टिंग में त्रुटियां, वाक्य संरचना में अस्पष्टता और संदर्भों की कमी को ठीक करने की आवश्यकता थी। समिति ने 21 जुलाई को अपनी 4,575 पेज की रिपोर्ट सौंपी, जिसमें भाषा को सरल करने, पुराने प्रावधानों को हटाने और करदाताओं के लिए अनुपालन को आसान बनाने पर जोर दिया गया। सरकार ने कई संस्करणों से उत्पन्न होने वाली भ्रम की स्थिति से बचने के लिए पुराने बिल को वापस लेने का फैसला किया, ताकि एक संशोधित और स्पष्ट मसौदा पेश किया जा सके।
नया बिल, जिसमें 23 अध्याय, 536 धाराएं और 16 अनुसूचियां हैं, पुराने 823 पेज के जटिल अधिनियम की तुलना में केवल 622 पेज का है। इसका मुख्य उद्देश्य कर प्रणाली को सरल, पारदर्शी और करदाता के अनुकूल बनाना है। जटिल शब्दावली जैसे 'मूल्यांकन वर्ष' और 'पिछला वर्ष' को हटाकर 'कर वर्ष' की अवधारणा लाई गई है, जो 1 अप्रैल से शुरू होने वाले 12 महीने के वित्तीय वर्ष को दर्शाता है। पुराने प्रावधानों जैसे फ्रिंज बेनिफिट टैक्स को हटा दिया गया है, और टीडीएस, प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन और वेतन से संबंधित नियमों को तालिकाओं और सूत्रों के माध्यम से सरल बनाया गया है।
करदाताओं को अब आयकर रिटर्न दाखिल करने की समय सीमा के बाद भी टीडीएस रिफंड का दावा करने की अनुमति होगी, बिना किसी दंड के। केवल धार्मिक ट्रस्टों को गुमनाम दान पर छूट मिलेगी, जबकि सामाजिक कार्यों में शामिल ट्रस्टों को यह सुविधा नहीं होगी। डिजिटल और फेसलेस कर प्रक्रिया को बढ़ावा देने से भ्रष्टाचार कम होगा और अनुपालन आसान होगा। सीबीडीटी को अब कई प्रक्रियात्मक मामलों में संसदीय मंजूरी के बिना नियम बनाने का अधिकार होगा। यह बिल 1 अप्रैल 2026 से लागू होगा, जो करदाताओं को स्पष्टता और निश्चितता प्रदान करेगा।