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कैग रिपोर्ट: धान खरीद व मिलिंग में 40 हजार करोड़ की गड़बड़‍ियां

धान की सरकारी खरीद और मिलिंग में भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने बड़े पैमाने पर गड़बड़‍‍ियां पकड़ी हैं। कैग की रिपोर्ट बताती है कि कैसे धान खरीद की सरकारी प्रणाली राइस मिलों के अनुचित लाभ का जरिया बन गई है। इन कमियों को दूर करने के साथ-साथ कैग ने सरकार से न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य का भुगतान सीधे किसानों के खातों में करने की सिफारिश की है।
कैग रिपोर्ट: धान खरीद व मिलिंग में 40 हजार करोड़ की गड़बड़‍ियां

धान की खरीद से लेकर ढुलाई और मिलिंग जैसी प्रक्रियाओं में कुल मिलाकर 40,564 करोड़ रुपये की अनियमिताएं सामने आई हैं। कैग की यह रिपोर्ट मंगलवार को संसद में पेश की गई है जिसमें कहा गया है कि इन गड़बड़‍ियों के चलते भारत सरकार के खाद्य सब्सिडी खर्च में इजाफा हुआ, जिससे बचा जा सकता था। 

बाय-प्रोडक्‍ट से धान मिलों को 3,743 करोड़ की अनुचित कमाई 


कैग की रिपोर्ट के अनुसार, धान की मिलिंग के दौरान चावल के अलावा निकलने वाले अन्‍य उत्‍पादों की कीमत में उल्‍लेखनीय वृद्ध‍ि के बावजूद वर्ष 2005 से धान मिलिंग की दरें संशोधित नहीं हुई हैं। नतीजा यह हुआ कि सिर्फ चार राज्‍यों - आंध्र प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, तेलंगाना और उत्‍तर प्रदेश में 2009-10 से 2013-14 के दौरान धान मिलों ने बाय-प्रोडक्‍ट से 3,743 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ कमाया जो सरकारी खजाने को सीधा नुकसान है।  

धान मिलों को बाय-प्रोडक्‍ट से हुई इस अतिरिक्‍त कमाई का आकलन इन चार राज्‍यों के चुनिंदा जिलों से मिले आंकड़ों के आधार पर किया गया है। इन जिलों से देश की करीब 15.81 फीसदी धान खरीद होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि देश भर में धान मिलों को इस प्रकार हुए अनुचित लाभ का पता लगाया जाए तो वास्‍तविक आंकड़ा काफी ज्‍यादा हो सकता है। 

दरअसल, भारतीय खाद्य निगम राज्य की एजेंसियों की मदद से किसानों से धान खरीदता है और सरकारी या निजी मिलों से मिलिंग कराकर चावल वापस लेता है। इसके एवज में मिलों को मिलिंग चार्ज दिया जाता है लेकिन राइस ब्रैन, टूटा चावल और भूसी जैसे सह-उत्‍पाद भी मिलों के पास ही रह जाते हैं। आरटीआई कार्यकर्ता गौरीशंकर जैन का आरोप है कि कस्टम मिल्ड चावल (सीएमआर) की इस प्रक्रिया में देश भर की धान मिलें सह-उत्‍पादों से सालाना करीब 10 हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा की कमाई कर रही हैं। कैग की हालिया रिपोर्ट से धान मिलिंग में गड़बड़‍ियों और बाय-प्रोडक्‍ट से मिलों को अनुचित लाभ के आरोपों को बल मिला है। 

हालांकि, खाद्य मंत्रालय का कहना है कि टैरिफ कमीशन की सिफारिशों के आधार पर धान की मिलिंग के लिए जिन दरों पर भुगतान किया जाता है वह बाय-प्रोडक्‍ट के मूल्‍य को मिलों की आय में शामिल करके तथा उसके विरूद्ध उनके खर्चों का समायोजन करने के उपरान्‍त ही तय की जाती हैं। यानी मिलिंग की दरें बाय-प्रोडक्‍ट से मिलों को होने वाली कमाई को ध्‍यान में रखते हुए ही तय की जाती हैं। लेकिन कैग और मंत्रालय दोनों ने माना है कि मिलिंग की दरें पिछले 10 साल से संशोधित नहीं हुई। यकीन करना मुश्किल है कि प्राइवेट मिलें सरकार के लिए 10 साल पुराने रेट पर काम कर रही हैं। 

17,985 करोड़ रुपये के एमएसपी भुगतान पर संशय

कैग ने न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य के भुगतान में भी कई गड़बड़‍ियां पाई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, तेलंगाना और उत्‍तर प्रदेश में 17,985 करोड़ रुपये के भुगतान के बारे में कोई भरोसा नहीं कि किसानों को उनकी उपज का पूरा न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य मिला। भुगतान पाने वाले किसानों के नाम, पते, पहचान और बैंक खातों के बारे में पुख्‍ता जानकारी नहीं है। गौरतलब है कि किसानों से न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य पर धान की खरीद के लिए सरकार एफसीआई और राज्‍यों की एजेंसियों को भुगतान करती है।  

पंजाब में नहीं वसूला 159 करोड़ का ब्‍याज

पंजाब में सरकारी एजेंसियों ने वर्ष 2009-10, 2012-13 और 2013-14 के दौरान धान की मिलिंग और डिलिवरी में देरी के लिए मिलों से ब्‍याज नहीं वसूला। इससे मिलों ने 159 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ उठाया।

सरकारी एजेंसियों को नहीं लौटाया 7,570 करोड़ का चावल

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, हरियाणा, ओडिशा, पंजाब, उत्‍तर प्रदेश और तेलंगाना में धान मिलों ने कुल 7,570 करोड़ रुपये का मिलिंग या लेवी का चावल सरकारी एजेंसियों को वापस नहीं लौटाया। इससे सरकारी खरीद के चावल को मिलों द्वारा खुले बाजार में पहुंचाने या कस्‍टम मिल्‍ड चावल के हड़पे जाने का खतरा बढ़ गया है। सरकारी एजेंसियों के पास इस चावल की वसूली का कोई पुख्‍ता तरीका नहीं है। 

खेत से हुई खरीद पर भी मंडी चार्ज

मंडियों से धान की खरीद पर मिलों को मंडी लेबर चार्ज मिलता है। लेकिन एफसीआई ने यह जांचे बिना ही राइस मिलर्स को मंडी लेबर चार्ज का भुगतान कर दिया कि धान मंडी से खरीदा गया है अथवा फार्म गेट से। इससे एफसीआई के बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश क्षेत्रों में 2009-10 से 2013-14 के दौरान मिलों को 194 करोड़ रुपये तक का अनुचित फायदा पहुंचा। 

घटिया धान के लिए 9,788 करोड़ का पूरा भुगतान 

वर्ष 2010-11 और 2013-14 के दौरान पंजाब की एजेंसियों ने करीब 82 लाख टन धान की खरीद की जिसकी कीमत 9,788 करोड़ रुपये थी। लेकिन खाद्य मंत्रालय के निरीक्षण में इस धान की गुणवत्‍ता मानकों से खराब पाई गई। फिर भी पंजाब में इस घटिया धान के लिए पूरा भुगतान किया गया।

 

 

 

 

 
 
 
 

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