इससे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय और भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस तरह का दावा किया है कि नोटबंदी की घोषणा से पहले वित्त मंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार से मशविरा करने की जानकारी देना सूचना के अधिकार कानून आरटीआई के तहत सूचना के दायरे में नहीं आता है।
सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना से आशय किसी भी रूप में उपलब्ध ऐसी जानकारी से है जो सार्वजनिक प्राधिकार के नियंत्राण में है।
प्रेस टस्ट ऑफ इंडिया पीटीआई ने वित्त मंत्रालय से आरटीआई के जरिये इस संबंध में जानकारी मांगी थी जिसके जवाब में कहा गया है कि इस प्रश्न के संबंध में दस्तावेज हैं लेकिन इन्हें सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।
वित्त मंत्रालय ने आरटीआई कानून की धारा 81ए के तहत इस संबंध में जानकारी देने से मना कर दिया। हालांकि, उसने यह बताने से मना कर दिया कि यह सूचना इस धारा के तहत किस तरह आती है।
आरटीआई अधिनियम की यह धारा ऐसी जानकारियों को सार्वजनिक करने से रोकने की अनुमति देती है जिसे जारी किए जाने से भारत की संप्रभुता और अखंडता, सुरक्षा, रणनीति, राज्य के वैज्ञानिक और आर्थिक हित, विदेशों के साथ संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हो और किसी अपराध को शह देती हो।
प्रक्रिया के अनुसार जानकारी के लिए पहली अपील संबंधित मंत्रालय में दायर की जाती है जिसे एक वरिष्ठ अधिकारी देखता है। इसमें यदि जानकारी नहीं मिल पाती है तो दूसरी अपील केंद्रीय सूचना आयोग के पास भेजी जाती है जो आरटीआई कानून की शीर्ष संस्था है।
नोटबंद से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने से इनकार करने वालों में वित्त मंत्रालय के भी शामिल होने के बाद अब इस जानकारी से सीधे जुड़े तीनों संस्थान प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक ने इस संबंध में जानकारी सार्वजनिक किए जाने से मना कर दिया है।
आरटीआई अधिनियम में कुछ ऐसे विशेष प्रावधान भी हैं जिनके तहत सार्वजनिक करने से छूट प्राप्त रिकार्ड को भी सार्वजनिक किया जा सकता है। यह काम ऐसी स्थिति में ही हो सकता है जब बचाव पक्ष को होने वाले नुकसान पर उसे सार्वजनिक करने की स्थिति में होने वाला जनहित भारी पड़ता हो।
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने पीटीआई-भाषा से कहा कि सार्वजनिक हित की धारा तब लागू होती है जब आवदेक द्वारा मांगी गई सूचना पर ऐसी जानकारी से छूट का प्रावधान लागू होता हो। लेकिन इस मामले में मांगी गई सूचना पर जानकारी देने से छूट का कोई प्रावधान लगता ही नहीं होता है।
गांधी ने कहा कि इस मामले में कानून स्पष्ट है कि यदि सार्वजनिक निकाय किसी सूचना को देने से इनकार करता है तो उसे इस संबंध में स्पष्ट बताना चाहिये कि मांगी गई जानकारी देने से इनकार करने में संबंधित प्रावधान किस तरह लागू होता है।
प्रधानमंत्री कार्यालय और रिजर्व बैंक के जवाब पर भी पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एएन तिवारी ने कहा था कि उनके जवाब गलत है। आवेदक ने ऐसे तथ्य की जानकारी मांगी है जो कि रिकार्ड का एक हिस्सा भर है, इसलिये यह आरटीआई कानून के तहत दी जाने वाली जानकारी है।
उल्लेखनीय है कि गत आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक 500 और 1,000 रुपये के नोटों को अमान्य कर चलन से हटाने की घोषणा की थी। भाषा