जिस तरह पीएम मोदी ने पारंपरिक राजनीति के सारे मानकों को धवस्त करते हुए बड़ी बड़ी पार्टियों को धूल चटा दिया, जियो ने टेलीकॉम इंडस्ट्री में वैसा ही कारनामा कर दिखाया है। मोदी को अगर डिसरप्टर इन चीफ ( तितर बितर करने की कूवत रखने वालों के सरदार) की संज्ञा दी गई है तो टेलीकॉम उद्योग में मुकेश अंबानी उससे कम विशेषण के हकदार नहीं। माना जा रहा है कि मोदी के विजय रथ को थामने के लिए अब एक दूसरे की धुर दुश्मन रही पार्टियां भी हिम बिस्तर होने का मजबूर होंगी। कहते हैं मरता क्या न करता। वही स्थिति अभी टेलीकॉम उद्योग में हो गई । टेलीकॉम सेवा मार्केट पर कब्जे के लिए निकले मुकेश अंबानी के विजय रथ जियो को रोकने के लिए वोडाफोन और आइडिया सेल्युलर को महागठबंधन की राह मजबूरी में पकड़नी पड़ी है। यह महागठबंधन जियो को शिकस्त को दे सकेगा या नहीं समय ही बताएगा। बिहार में बना गठबंधन मोदी को शिकस्त दे गया लेकिन यूपी में कांग्रेस और सपा का गठबंधन कोई काम नहीं आया।
टेलीकॉम उद्योग में भी महागठबंधन की मजबूरी
उथल पुथल के इस दौर में लगता है राजनीति की तरह बाजार में भी महागठबंधन का युग आ गया है। जिस तरह करिश्माई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकस्त देने के लिए बाकी पार्टिया आपसी दुश्मनी को तिलांजलि देकर गठबंधन करने को मजबूर हो रही हैं, उसी तरह भारतीय टेलीकॉम उद्योग बाजार में मुंकेश अंबानी के जियो के लगातार बढ़ते प्रभाव को टक्कर देने के लिए दो टेलीकॉम दिग्गजों वोडाफोन और आदित्य बिड़ला ग्रुप के आइडिया सेल्युलर ने महागठबंधन का सहारा लिया है। मजे की बात है अब तक जिनके खिलाफ गठबंधन को आजमाने की कोशिशें शुरु हुई हैं वे दोनों, मोदी और मुकेश अंबानी, गुजरात के हैं।
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