रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन की आशंका पर विचार करना जरूरी, घरेलू खपत के उत्पाद पर जोर बढ़ाना चाहिए
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने दिसंबर में इस अभियान को लेकर आगाह किया था कि देश को अंतरराष्ट्रीय बाजार का विनिर्माण केंद्र बनाने से पहले आंतरिक बाजार के उत्पादन पर जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्था वैसे भी अभी मंदी की मार झेल रही है इसलिए भारतीय उत्पादों की खपत इन देशों में मुश्किल हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में गिरावट से देश के आयात पर असर पड़ा, जो 11.39 प्रतिशत घटकर 32.2 अरब डॉलर रहा। तेल आयात बिल आलोच्य महीने में 37.46 प्रतिशत घटकर 8.24 अरब डॉलर रहा। सोने का आयात इस साल जनवरी में 8.13 प्रतिशत बढ़कर 1.55 अरब डॉलर रहा। जनवरी में निर्यात में गिरावट जुलाई, 2012 के बाद सबसे अधिक है। उस समय इसमें 14.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। यह लगातार दूसरा महीना है, जब निर्यात में गिरावट दर्ज की गई है। निर्यात में गिरावट का एक प्रमुख कारण यूरोपीय तथा जापानी बाजारों से मांग कम होना है।
हालांकि केंद्र सरकार के अधिकारी केंद्रीय बैंक के गवर्नर के बयान से सहमत नहीं हैं। औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव अमिताभ कांत ने कहा, ‘हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि भारत का निर्यात अगर बढ़ता है तो वह प्रमुख विनिर्माता देश बन सकता है और इसमें तेजी से वृद्धि होनी चाहिए। अगर हम सभी निर्यात के महत्व को समझेंगे, तभी निर्यात बढ़ेगा। वस्तुएं केवल घरेलू बाजार के लिए नहीं बनते। दुनिया में कोई भी विनिर्माणकर्ता केवल घरेलू बाजार के लिए सामान नहीं बनाता। आप शुरू में ऐसा करते हैं लेकिन उसके बाद आप उसका विस्तार करते हैं। आप आगे बढ़ते हैं और वैश्विक बाजार में जाते हैं और एक सही कारोबारी से यही उम्मीद की जाती है।’ उद्योग मंडल फिक्की के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वैश्विक व्यापार भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। उन्होंने कहा, ‘आपकी हिस्सेदारी बेहद कम है और हम क्या बात कर रहे हैं। 1.7 प्रतिशत हिस्सेदारी है और हम कह रहे हैं कि निर्यात नहीं करो। यह समय है जब आप निश्चित रूप से उत्साह और उर्जा के साथ वैश्विक बाजारों में प्रवेश करें।’
इससे देश के चालू बचत खाते में बेहतरी के साथ साथ रुपये की सेहत भी ठीक हुई है। जनवरी में व्यापार घाटा 8.32 बिलियन डॉलर यानी करीब 500 अरब रुपये हो गया जो एक साल पहले फरवरी 2014 में 9.43 बिलियन डॉलर यानी करीब 550 अरब रुपये था। व्यापार घाटा में कमी का श्रेय अतंरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत में आई भारी गिरावट है। इस गिरावट के कारण तेल इंपोर्ट की लागत 8.25 बिलियन डॉलर यानी करीब 500 अरब रुपये हो गई जो दिसंबर से 17 फीसदी कम है। वार्षिक आधार पर तेल के आयात की कीमत में करीब 38 फीसदी गिरावट आई है। भारत के आयात में करीब एक तिहाई हिस्सा तेल का होता है। पिछले साल जून के बाद से इंटरनैशनल मार्केट में तेल की कीमत में आधे से ज्यादा गिरावट आई है। इससे एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी यानी भारत को फायदा पहुंचा है।
जानकारों का कहना है कि तेल की कीमत में प्रति 10 डॉलर गिरावट से भारत के चालू खाता अंतर में जीडीपी का 0.5 फीसदी गिरावट आई है और वित्तीय घाटा में 0.1 फीसदी की गिरावट आई है।