आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एच आर खान का कहना है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 330 अरब डालर के सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है लेकिन इसी पर संतुष्ट हो कर बैठा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा अत्यधिक उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का कोई स्तर पर्याप्त नहीं होता है।
खान ने कहा, विदेशी मुद्रा-भंडार में सुधार हुआ है। फिलहाल हम 330 अरब डालर के उच्चतम स्तर पर हैं। लेकिन ऐसा मानना है कि अत्यधिक उतार-चढ़ाव या आपात संकट से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में कितनी भी राशि पर्याप्त नहीं हैं।
रिजर्व बैंक द्वारा जारी साप्ताहिक आंकड़ों से स्पष्ट है कि विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले सप्ताह छह अरब डालर की वृद्धि दर्ज की गई और यह बढ़कर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।
खान ने मुद्रा-भंडार में बढ़ोतरी का हवाला देते हुए कहा हम बहुत अच्छी स्थिति में है। अपने तुलन-पत्र को ठोस रखने के लिए हमने बहुत सी चीजें की हैं।
उन्होंने कहा कि उच्च वृद्धि, संतुलित चालू खाते का घाटा, मुद्रास्फीति में नरमी और उच्च विदेशी मुद्रा भंडार के मद्देनजर देश की अर्थव्यवस्था में वृहत-आर्थिक संवेदनशीलता में काफी कमी आई है।
खान ने कहा लेकिन इसी स्तर पर संतुष्ट नहीं होना चाहिए। यदि (पश्चिम में) मौद्रिक प्रोत्साहनों का एक और दौर शुरू होता है तो हो सकता है हमारे उपर सबसे बाद में असर हो.. लेकिन हम संतुष्ट हो कर बैठ नहीं सकते हमें कजोरियों से निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है।
खान ने कहा, इस समय भारत को जो इतने वर्षों बाद जो संभवत: बड़ा मौका मिला है वह उसे गंवा नहीं सकता। उभरते देशों में उसकी स्थिति बहुत मजबूत है।
एेसा माना जाता रहा है कि आरबीआई भविष्य में अमेरिका में फेडरल रिजर्व की रिण महंगा करने की नीति में बदलाव जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए डालर इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है क्यों कि हालात में एेसे बदलावों से भारत जैसे उभरते बाजारों से धन निकासी शुरू होने का खतरा रहता है।
उल्लेखनीय है कि मई 2013 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नकदी बढाने की नीति में बदलाव के संकेतों के बाद रपए वैश्विक बाजार में उठा पटक मच गयी थी और रपए में गिरावट को थामने के लिए आरबीआई को डालर की बिक्री करनी पड़ी थी। इससे मुद्राभंडार घटकर 280 अरब डालर रह गया है।
खान ने कहा कि आरबीआई को गैर-पारंपरिक कदम उठाने पड़े थे और उससे 34 अरब डालर जुटाए जा सके जबकि विश्लेषकों को सात अरब डालर जुटाए जाने की उम्मीद थी।
उन्होंने कंपनियों द्वारा बगैर हेजिंग के लिए गए ऋणों पर आरबीआई की चिंता दोहराई लेकिन आश्वस्त किया कि सर्वोच्च बैंक इस मामले में सूक्ष्म-प्रबंधन नहीं चाहता।
उन्होंने कहा कि बिना होजिंग (विनिमय दर में उतार चढाव के जोखिम से बचने की ओट लिए) विदेश से लिया गया ऋण न केवल कंपनी विशेष बल्कि पूरी प्रणाली की स्थिरता के लिए जोखिम है।