वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने छह साल की सबसे सुस्त आर्थिक विकास दर और 45 साल की सबसे ऊंची बेरोजगार दर से निपटने के लिए कॉरपोरेट टैक्स में जो कटौती की है, उसका असर दिखने में समय लग सकता है। कॉरपोरेट टैक्स घटाने का मकसद निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना है। आम लोगों द्वारा खर्च में कमी, निजी कंपनियों द्वारा निवेश और निर्यात में गिरावट आर्थिक सुस्ती की प्रमुख वजहें हैं। कॉरपोरेट टैक्स घटने से कंपनियों द्वारा निवेश तत्काल बढ़ने की उम्मीद कम ही है, क्योंकि कंपनियां तभी उत्पादन बढ़ाएंगी जब उनके प्रोडक्ट की डिमांड हो। मांग में कमी के चलते ज्यादातर कंपनियां अभी क्षमता का 70 फीसदी ही उत्पादन कर पा रही हैं। यानी मांग में बड़ी बढ़ोतरी के संकेत मिलने पर ही वे नया निवेश करेंगी। इस फैसले का लांग टर्म में फायदा मिलेगा, क्योंकि आगे चलकर जब कंपनियां निवेश करेंगी तो लोगों को रोजगार भी मिलेगा। इस तरह अर्थव्यवस्था का चक्र चलने लगेगा। इस कटौती के बाद भारत में टैक्स की दर दूसरे एशियाई देशों के लगभग बराबर हो गई है। इससे विदेशी निवेश बढ़ने की उम्मीद की जा रही है।
नई घोषणा से एक फीसदी बड़ी कंपनियों को फायदा
सरकार ने बड़ी कंपनियों को टैक्स में करीब 10 फीसदी राहत दी है। अब उन्हें 25.17 फीसदी टैक्स देना होगा। जबकि अभी तक उन्हें सरचार्ज और सेस जोड़कर करीब 34.94 फीसदी टैक्स देना पड़ रहा था। सरकार ने जुलाई में पेश आम बजट में 400 करोड़ रुपये तक कारोबार वाली कंपनियों के लिए टैक्स की दर घटाकर 25 फीसदी कर दी थी। इससे करीब 99 फीसदी कंपनियों को राहत मिल गई थी। शुक्रवार की घोषणा से एक फीसदी बड़ी कंपनियों को राहत मिलेगी। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2015-16 का बजट पेश करते हुए घोषणा की थी कि सरकार चार साल में कॉरपोरेट टैक्स की दर 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी करेगी। यह हो तो गया, लेकिन इसमें एक साल ज्यादा लग गया।
गड़बड़ा सकता है सरकार का बजट अनुमान
वित्त मंत्री ने कहा कि इस घोषणा से सरकार के खजाने पर 1.45 लाख करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। इससे सरकार के सामने राजस्व के मार्चे पर समस्या और गंभीर होगी। सरकार का बजट अनुमान गड़बड़ा सकता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीतारमण इस बारे में सवाल को टाल गईं। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि सरकार को वास्तविकता और राजस्व पर इसके दबाव का आभास है।
डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में भी गिरावट संभव
चालू वित्त वर्ष में मार्च से अप्रैल तक नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 4.50 लाख करोड़ रुपये है जबकि पिछले साल समान अवधि में 4.25 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह बढ़ोतरी सिर्फ 6 फीसदी रही, जबकि सरकार ने बजट में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 16 फीसदी बढ़कर 13.35 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था। पिछले वित्त वर्ष में इससे 12 लाख करोड़ रुपये आए थे। साल के बाकी छह महीने में बजट लक्ष्य पाने के लिए राजस्व संग्रह 20 फीसदी बढ़ाना होगा। लेकिन अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए यह मुमकिन नहीं लगता है। ताजा रियायतों से तो डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से कम रहने के आसार ही ज्यादा हैं। कुल कर राजस्व की बात करें तो पिछले वित्त वर्ष में सरकार का कर राजस्व बजट अनुमान से 8.4 फीसदी कम रहा। आर्थिक सुस्ती के बावजूद सरकार ने चालू वित्त वर्ष में कर राजस्व 18 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया है।
आरबीआइ से 1.76 लाख करोड़ मिलने पर भी घाटा बढ़ने के आसार
सरकार के कुल राजकोषीय घाटे में भारतीय रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड से मिले 1.76 लाख करोड़ रुपये से कुछ राहत मिलने की उम्मीद थी। आर्थिक सुस्ती और राजस्व की स्थिति को देखते हुए पहले ही राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी के लक्ष्य को पार करने की आशंका जताई जा रही थी, अब 1.45 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ने से स्थिति और गंभीर हो सकती है।
दूसरे देशों में कितना है टैक्स
हाल में अमेरिका ने टैक्स 35 फीसदी से घटाकर 21 फीसदी करने की घोषणा की है। फ्रांस में 33.3 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया में 30 फीसदी, जापान में 23.9 फीसदी, दक्षिण कोरिया में 22 फीसदी, ब्रिटेन में 20 फीसदी और जर्मनी में 15.09 फीसदी टैक्स लगता है। ऐसे में भारत में टैक्स की दर कम होने से विदेशी कंपनियों को आकर्षित किया जा सकता है।