वित्तमंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार का पांचवां बजट पेश करेंगे। यह एनडीए सरकार का आखिरी पूर्ण बजट भी होगा। इसलिए सरकार राजनीतिक और आर्थिक हितों को साधने की हरसंभव कोशिश करेगी। 2018 में आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने के साथ-साथ अगले साल 17वीं लोकसभा चुनाव होने के कारण भी यह बजट काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
नीतिगत मामलों के लिहाज से भारत के वित्तीय कैलेंडर में बजट का सबको इंतजार रहता है, क्योंकि यह सरकार की आर्थिक नीतियों की रूपरेखा बताता है। बजट काफी लंबी और एक जटिल नीतिगत प्रक्रिया है। जानते हैं कि आखिर क्या है इसकी बारीकियां...
1. यह दूसरी बार होगा जब एक फरवरी को आम बजट पेश किया जाएगा। पहले इसे 28 फरवरी को पेश किया जाता था। पिछली बार की तरह वित्त मंत्री रेल और आम बजट एक साथ ही पेश करेंगे।
2. बजट पेश होने से पहले विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि और मंत्रालयों के साथ चर्चा शुरू होती है। वित्त मंत्रालय का व्यय विभाग संबंधित मंत्रालयों के साथ खाता-बही और व्यय आंकड़ों के बारे में गहन विचार-विर्मश करता है।
3. दिसंबर शुरू होते ही सरकार विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों जैसे राज्यों के प्रतिनिधि, बैंकर्स, कृषि के जानकार, अर्थशास्त्री और ट्रेड यूनियन से प्री-बजट सलाह मशविरा करती है। ये सभी कर वृद्धि और राजस्व में सहयोग आदि से संबंधित मांगें रखते हैं।
4. सरकार की प्राथमिकता तय करने के लिए प्रधानमंत्री के साथ चर्चा कर बजट प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया जाता है।
5. बजट बनाने की प्रक्रिया के दौरान काफी गोपनीयता बरती जाती है। नॉर्थ ब्लॉक में दिसंबर के पहले सप्ताह से ही पत्रकारों के आने पर रोक लगा दी जाती है, क्योंकि इसी ब्लॉक में वित्त मंत्रालय का भवन है। साथ ही, मंत्रालय के कॉरिडोर में सख्त पहरा लगा दिया जाता है।
6. बजट पेश होने से एक सप्ताह पहले इस बनाने की प्रक्रिया में शामिल अधिकारी बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट जाते हैं। नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में स्थित प्रेस में बजट का डॉक्यूमेंट छपता है।
7. बजट से कुछ दिन पहले प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) के अधिकारी, सरकारी जनसेवा अधिकारी अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में प्रेस रिलीज बनाते हैं। बजट वाले दिन संसद शुरू होने के 10 मिनट पहले कैबिनेट को बजट का सार दिखाया जाता है।