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दिवालिया कानून नहीं बचा पाया बैंकों का 57 फीसद एनपीए

बैंकों के लाखों करोड़ रुपये के एनपीए (फंसे कर्ज) की वसूली के लिए लागू किए गए इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी...
दिवालिया कानून नहीं बचा पाया बैंकों का 57 फीसद एनपीए

बैंकों के लाखों करोड़ रुपये के एनपीए (फंसे कर्ज) की वसूली के लिए लागू किए गए इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) यानी दिवालिया कानून को काफी प्रभावी कानून माना जा रहा है लेकिन इसके जरिये बीते वित्त वर्ष के दौरान वसूली इसके विपरीत तस्वीर पेश करती है। एनपीए के 94 बड़े खातों में बैंकों के 1.75 लाख करोड़ रुपये बाकी थे लेकिन आइबीसी के तहत की गई कार्रवाई में एक लाख करोड़ रुपये की वसूली नहीं हो पाई। बैंकों को बकाया कर्ज के मुकाबले सिर्फ 43 फीसदी यानी 75,000 करोड़ रुपये की वापस मिल पाए। यह रिपोर्ट इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि इस कानून को लागू हुए इस महीने तीन साल पूरे हो जाएंगे।

32 फीसदी एनपीए खाते तय समय में नहीं सुलझ पाए

उद्योग संगठन एसोचेम और रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार बीते मार्च तक इस कानून के तहत विभिन्न ट्रिब्यूनलों में एनपीए के 1143 मामले लंबित थे। इनमें से 32 फीसद मामले 270 दिनों से ज्यादा समय से लंबित थे। बीते वित्त वर्ष में जिन 94 मामलों का निपटारा हुआ। उनमें औसतन 324 दिनों का समय लगा। जबकि नियम के अनुसार 270 दिनों में प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।

पौने दो लाख करोड़ एनपीए में से 75 हजार करोड़ की वसूली

रिपोर्ट के अनुसार बीते वित्त वर्ष के दौरान इन 94 एनपीए खातों का निपटारा हुआ। इनमें बैंकों को इन खातों में बकाए कर्ज का 57 फीसद पैसा वापस नहीं मिल पाया। 1.75 लाख करोड़ रुपये बकाए में से सिर्फ 75,000 करोड़ रुपये ही बैंकों को वापस मिल पाए। रिपोर्ट के अनुसार इन 94 खातों में से जिनके लिए कोई खरीदार नहीं मिल पाया, उनकी परिसंपत्तियों को बेचकर कंपनी को बंद किया। ऐसे खातों में तो रिकवरी और भी कम 22 फीसदी रही जो पिछले तरीकों से होने वाली वसूली से भी बहुत कम है।

समस्याएं दूर करने की आवश्यकताः रिपोर्ट

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ बड़े एनपीए खातों का समाधान 400 दिनों के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। दिवालिया कानून को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए कुछ समस्याओं को दूर करने की आवश्यकता है। एनपीए खातों की समाधान प्रक्रिया तय समय में पूरी करने के प्रयास होने चाहिए और न्यायिक तंत्र को मजबूत करने, लेनदारों के वर्गीकरण तथा प्राथमिकता तय करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। दबावग्रस्त परिसंपत्तियों की अधिकतम कीमत पाने और लेनदारों के हितों की रक्षा के लिए समाधान प्रक्रिया में जाने वाली कंपनियों के लिए दिवालिया नियम ऐसे होने चाहिए ताकि इसका वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सके।

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