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नेट तटस्थता की बहस में कॉरपोरेट युद्ध भी

इंटरनेट तटस्थता पर टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन राहुल खुल्लर से एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित हुई बातचीत के बाद इसकी बहस कुछ दूसरी ओर मुड़ गई है। राहुल खुल्लर ने इसे कारपोरेट युद्ध करार दिया।
नेट तटस्थता की बहस में कॉरपोरेट युद्ध भी

राहुल खुल्लर के अनुसार इस पूरी मुहिम में परदे के पीछे कुछ कारपोरेट घराने, मीडिया हाउस और टेलीकॉम ऑपरेटर हैं। उन्होंने कहा, ‘दोनों ही ओर से इस बहस में बेहद जुनूनी बयान आ रहे हैं। पहले से ही जटिल एक मुद्दे पर सार्वजनिक बहस के बीच यह एक कॉरपोरेट युद्ध आ गया है जो एक मीडिया घराने ने और टेलीकॉम ऑपरेटरों के बीच है। इस कॉरपोरेट युद्ध ने बहस में विकृति पैदा कर दी है।’ इस पूरी लड़ाई की समूह में बंट गई है। एक तो वह समूह है जो इस तटस्थता में गंभीर हैं। उन्हें किसी कंपनी के नफे-नुकसान से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। इसमें ज्यादातर उपभोक्ता हैं। दूसरे समूह में ऐसे लोग जुड़े हैं, जो कुछ साइट्स पर या मसलों पर तटस्थता चाहते हैं। इनमें कुछ इंटरनेट से जुड़े खिलाड़ी भी है जो नफे के बारे में सोच रहे हैं। इन सब के बीच कॉरपोरेट कंपनियां हैं जो अपना एकाधिकार खत्म होने देखना नहीं चाहती। कुछ कंपनिया हैं जो पुरानी कंपनियों का एकाधिकार खत्म करना चाहती हैं।

इसमें सरकार का भी एक पक्ष है जो कुछ हद तक नियमनन चाहती है। अगर इस इंटरनेट तटस्थता की पूरी कहानी पर गौर करें तो साफ समझ आता है कि यह 4जी स्पेक्ट्रम आने की पूर्व पीठिका है। एयरटेल का एयरटेल जीरो और रिलायंस का internet.org से कुछ-कुछ अंदाजा लग ही जाता है। इस सब में सरकार का कदम क्या होगा यह देखने लायक बात होगी।  

कॉरपोरेट युद्ध की चर्चाओं के दौरान क्लियर ट्रिप, एनडीटीवी और टाइम्स समूह ने खुद को internet.org से खुद को अलग कर लिया है। इंटरनेट internet.org दरअसल फेसबुक का एक प्रोग्राम है, जिसके तहत कुछ वेबसाइट्स को फ्री में देखा जा सकता है। यह रिलायंस कम्यूनिकेशन और फेसबुक का संयुक्त उपक्रम है। फेसबुक ने इस प्रोग्राम के लिए भारत में आरकॉम से पार्टनरशिप की है। नेट न्यूट्रैलिटी पर बहस के बीच फेसबुक के इस प्रोग्राम पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसके तहत 33 वेबसाइट्स को फ्री में देखा जा सकेगा। इस प्रोग्राम को नेट न्यूट्रेलिटी के खिलाफ माना जा रहा है, क्योंकि नेटवर्क विशेष पर तो साइट्स की पहुंच मुफ्त होगी, लेकिन बाकी नेटवर्क्स पर नहीं।

टाइम्स समूह ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, 'हम नेट न्यूट्रेलिटी का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि इससे बड़ी-छोटी सभी कंपनियों को निष्पक्ष रूप से ग्राहक आधारित सेवा देने का मौका मिलता है। हम तटस्थ इंटरनेट की इस मुहिम को आगे ले जाएंगे, लेकिन हमारे साथी प्रकाशकों और दूसरे कंटेट प्रदाताओं को भी ऐसा करना होगा, ताकि मैदान सबके लिए बराबर रहे।'

नेट न्यूट्रेलिटी पर बढ़ते विरोध के बाद फ्लिपकार्ट ने दो दिन पहले खुद को एयरटेल जीरो प्लान से अलग कर लिया था। लेकिन इंटरनेट ओआरजी प्रोग्राम के बचाव में उन्होंने कहा है कि फेसबुक ने इस प्रोग्राम के लिए भारत में आरकॉम से साझेदारी की है। चूंकि इस पर कुछ ही वेबसाइट्स बिना शुल्क के देखी जा सकती हैं इसलिए यह नेट न्यूट्रेलिटी के खिलाफ है। हालांकि जकरबर्ग का कहना है कि जिन लोगों के पास इंटरनेट नहीं है, कम से कम उन्हें कुछ तो कनेक्टिविटी मिले ताकि वे दूसरों से जुड़े रह सकें। यह नो कनेक्टिविटी से तो बेहतर ही है। यही वजह है कि  internet.org के बाद भी नेट तटस्थता बरकरार रह सकती है।’

इस बीच एयरटेल ने अपने प्लान एयरटेल जीरो पर पहली बार सफाई दी है। एयरटेल ने एयरटेल जीरो 6 अप्रैल को बाजार में उतारा था। भारती एयरटेल के ग्राहक व्यापार विभाग के निदेशक श्रीनी गोपाल ने एक बजान जारी कर कहा, ‘जब से हमने एयरटेल जीरो बाजार में उतारा है, हम देख रहे हैं कि यह प्लान बेकार की बहस में उलझ गया है। नेट न्यूट्रेलिटी के पक्ष में जो भी बहस हो रही है उसमे बहस के केंद्र में यह है। हम बताना चाहते हैं कि यह ग्राहकों और व्यापारियों के लिए मुफ्त है। सभी के लिए मुफ्त यानी बड़े या छोटे सभी लोगों के लिए।’

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