बीएमएस ने जेनेवा में अंतरराष्ट्रीय लेबर कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय श्रम सचिव द्वारा भारत सरकार के रुख, जिसमें व्यापारिक मोल-तोल में श्रमिक प्रावधानों को नहीं शामिल किया जाने का पक्ष लिया गया है, की कड़ी निंदा की है। भारत सरकार आपूर्ति श्रृंखला में भी किसी तरह के अंतरराष्ट्रीय श्रमिक मानकों को शामिल करने के भी खिलाफ है। बीएमएस के महसचिव विरिजेश उपाध्याय ने एक बयान जारी कर केंद्र सरकार की इस नीति की आलोचना की है और कहा है कि भारत सरकार को इस कॉन्फ्रेंस में अपने पक्ष में सिर्फ बांग्लादेश का समर्थन हासिल हुआ जबकि वहां दुनिया के 187 देश हिस्सा ले रहे थे। भारत के विरोध के बावजूद इस कॉन्फ्रेंस में रखा गया प्रस्ताव बिना वोटिंग के पारित हो गया।
उपाध्याय ने कहा कि संघ सरकार की इस सोच का विरोध करता है कि श्रमिकों से जुड़े मुद्दों को इस प्रस्ताव में शामिल करने से विकास की राह अवरुद्ध होगी। बीएमएस का मानना है कि आज के दौर में व्यापार और रोजगार को अलग-अलग कर के नहीं देखा जा सकता और व्यापार के सामाजिक प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता, साथ ही यह विदेशी निवेश यह कहकर नहीं आमंत्रित कर सकते कि भारत में सस्ता श्रम उपलब्ध है। बीएमएस ने कहा कि भारत जैसे देश में जहां अर्थव्यवस्था कृषि से अन्य क्षेत्रों की ओर बढ़ रही है वहां सभ्य कहे जाने वाले रोजगार की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती।
उपाध्याय ने सिर्फ इस मुद्दे पर ही नहीं बल्कि बीमारू सरकारी कंपनियों को बंद करने के नीति आयोग के सुझाव की भी कड़ी आलोचना और विरोध किया है। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि इस मुद्दे पर संघ का सरकार से विरोध है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी क्षेत्र की कंपनियां पूरे औद्योगिक सेक्टर के लिए वेतन के मामले में आदर्श मॉडल हैं। इसलिए इनका लगातार विनिवेश अंततः पूर्ण निजीकरण और मंदी के दौर की ओर ले जाएगा और ज्यादा लोगों को रोजगार और सामाजिक सुरक्षा से हाथ धोना पड़ेगा। उपाध्याय ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाईयों के विनिवेश की शुरुआत यूपीए सरकार की नीतियों के तहत हुई थी मगर इन कंपनियों की बीमारी दुरुस्त करने के कोई प्रयास नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि इन संस्थानों के प्रबंधन, तकनीक और नए शोध के जरिये इनकी हालत सुधारने का प्रयास होना चाहिए मगर इस मामले में सरकार की नीतियां ही विरोधाभाषी हैं। एक ओर वित्त मंत्री पीएफ में एक ही पक्ष के योगदान की बात कहते हैं ताकि कर्मचारी को वेतन के रूप में ज्यादा पैसे मिल सकें और अर्थव्यवस्था में जान आए मगर दूसरी ओर हम लगातार इन ईकाईयों के विनिवेश की बात भी सुनते हैं। ऐसी नीतियां सही नहीं हैं।