स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों ऑरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लि., युनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि. का विलय करके एक बीमा कंपनी बनाने के प्रस्ताव का विरोध किया है। एसजेएम के के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. अश्वनी महाजन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि सरकारी बीमा कंपनियों के विलय से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएमबीवाई), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) जैसी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर बुरा असर पड़ेगा।
घाटे वाले कारोबार सिर्फ सरकारी कंपनियाों के जिम्मे
डॉ. महाजन ने पत्र में कहा है कि सरकार ने किसानों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और गरीबी रेखा के नीचे के लोगों के लिए कई योजनाएं चालू की हैं। वैसे तो ये स्कीमें निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों की बीमा कंपनियों को लागू करना चाहिए। लेकिन सरकारी बीमा कंपनियां ही इन योजनाओं को लागू करने में काम कर रही हैं क्योंकि वे सिर्फ लाभ कमाने के लिए नही हैं। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा सुरक्षा देने वाली सुरक्षा बीमा योजना का 90 फीसदी कारोबार सरकारी कंपनियां ही कर रही हैं। जबकि इसमें उन्हें 221 फीसदी नुकसान हो रहा है। निजी कंपनियां भारी घाटा होने के कारण यह योजना लागू नहीं कर रही हैं। इसी तरह फसल बीमा योजना में 50 फीसदी सूखाग्रस्त क्षेत्र को बीमा सुरक्षा सरकारी कंपनियों द्वारा दी जा रही है। जबकि इसमें उन्हें 115 फीसदी नुकसान हो रहा है। जबकि निजी कंपनियां बेहतर क्षेत्रों में ही फसल बीमा सुरक्षा दे रही हैं, जहां घाटा काफी कम है। इससे स्पष्ट है कि किसान बीमा सुरक्षा के लिए सरकारी कंपनियों पर निर्भर हैं। गरीबों को स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा देने वाली आयुष्मान भारत में 110 फीसदी घाटा होने के बावजूद सरकारी कंपनियों द्वारा लागू किया जा रहा है।
महत्वाकांक्षी योजनाओं का क्या होगा
एसजेएम का कहना है कि अगर सरकारी कंपनियां भी निजी बीमा कंपनियों की तरह काम करने लगीं तो सरकार की इन स्कीमों का क्या होगा। एसजेएम का अनुमान है कि इन तीनों स्कीमों से वर्ष 2018-19 तक सरकारी बीमा कंपनियों को पिछले तीन वर्षों में कुल 7000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। अगर घाटे वाले दूसरे घाटे वाले बीमा कारोबारों को जोड़ लिया जाए तो यह घाटा और ज्यादा होगा। यही नहीं, सरकारी बीमा कंपनियां दूर-दराज के क्षेत्रों में थर्ड पार्टी मोटर वाहन बीमा योजना में कारोबार करती हैं और क्लेम देती हैं। सरकारी कंपनियों को उनके घाटे के कारण अक्षम बताया जा रहा है और इस घाटे को पाटने के लिए उपाय सुझाए जा रहे हैं। जबकि एसजेएम का मानना है कि सरकारी बीमा कंपनियों का घाटा किसी अक्षमता के कारण नहीं बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों में और समाज के वंचित वर्गों को सेवाएं देने के कारण हो रहा है।
गांवों तक सेवाएं दे रही सरकारी कंपनियां
एसजेएम ने कहा है कि सरकार बीमा सुरक्षा बढ़ाना चाहती है। इस समय जीडीपी के मुकाबले बीमा सिर्फ 3.69 फीसदी है। सरकारी कंपनियों की 50 फीसदी शाखाएं गांवों और छोटे कस्बों में हैं, जहां वे समाज के गरीब तबके को भी सेवाएं देती हैं जबकि निजी कंपनियों की अधिकांश यानी करीब 100 फीसदी शाखाएं शहरी क्षेत्रों में ही हैं।
विलय के पक्ष में तर्क खोखले
यह सर्वविदित तथ्य है कि सरकारी बीमा कपनियों द्वारा जिन दरों पर बीमा सुरक्षा दी जाती है, निजी कंपनियों को भी उन्हीं रेटों के आसपास अपनी टैरिफ रखनी पड़ती है। आशंका है कि जैसे ही सरकारी बीमा कंपनियों का विलय हो गया, निजी बीमा कंपनियों को अपने रेट बढ़ाने का मौका मिल जाएगा। विलय के पक्ष में दिए जा रहे अन्य तर्क भी खोखले हैं।
सलाहकारों की सिफारिशें निहित स्वार्थों से प्रेरित
पत्र में आरोप लगाया गया है कि विलय के लिए सलाहकारों ने दुर्भावनापूर्ण जानकारी के आधार पर निहित स्वार्थो के चलते विलय की सिफारिश की है। सलाहकारों ने तीनों कंपनियों के विलय के बाद आइटी इन्फ्रास्ट्रक्चर में एकीकरण में आने वाली दिक्कतों को लेकर पीएमओ अंधेरे में रखा है। एसजेएम ने मांग की है कि विलय की सिफारिशों को तत्काल खारिज किया जाना चाहिए। सरकारी बीमा कंपनियों के घाटे को नियंत्रित करने के लिए स्टाफ की कार्यक्षमता बढ़ाने, अनावश्यक कमीशन बंद करने जैसे क्षेत्रों पर फोकस किया जाना चाहिए।