प्याज की बुआई जनवरी से मार्च के दौरान की जाती है और उस दौरान खराब मौसम और बारिश के कारण बहुत कम बुआई हो पाई जिससे उत्पादन घट गया। भारतीय राजनीति में प्याज की कीमत अहम भूमिका निभाती रही है। दिल्ली और राजस्थान में 1998 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे, उस दौरान भी प्याज की ऊंची कीमत पार्टियों की हार-जीत में निर्णायक साबित हुई थी। इसी तरह सन 1980 में इसकी गिरती कीमत के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया था।
भारत में प्याज की कीमत नासिक के किसानों के पास इसके भंडारण की मात्रा और नैफेड द्वारा मांग पर निर्भर करती है। सरकार ने नासिक में तकरीबन 6,000 टन प्याज का भंडारण कर रखा है लेकिन सिर्फ दिल्ली की ही बात की जाए तो यहां प्रतिदिन 1,000 टन की खपत है। इसके अलावा प्याज की क्वालिटी पर भी इसकी कीमत तय होती है। मौजूदा वक्त में राजस्थान का प्याज 15-20 रुपये प्रति किलो बिक रहा है जबकि मध्य प्रदेश और नासिक का प्याज 40 रुपये से 50 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है।
प्याज की बढ़ी कीमतों से परेशान जनता के लिए दिल्ली सरकार ने नासिक के छोटे-छोटे किसानों की कारोबारी संस्था से प्याज खरीदने का फैसला किया है और इसकी 40 रुपये प्रति किलो कीमत निर्धारित कर इसे उचित मूल्य की तकरीबन 280 दुकानों पर बेचा जाएगा। लगभग 10-15 मोबाइल वैन के जरिये भी प्याज बेचने की व्यवस्थ्ज्ञा की जा रही है। नैफेड अप्रैल के दौरान तीन पत्र सरकार को लिख चुका है कि वह उस वक्त की 10-15 रुपये की दर से प्याज खरीदने का आदेश जारी करे लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।