कोविड-19 महामारी से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान को कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने 3 हफ्ते में दूसरी बार बड़े कदमों की घोषणा की है। शुक्रवार को उसने एनपीए के नियम आसान करने, बैंकों द्वारा डिविडेंड के भुगतान पर रोक लगाने, रिवर्स रेपो रेट 0.25 फ़ीसदी घटाने और एनबीएफसी के लिए तरलता बढ़ाने जैसे उपायों की घोषणा की। इससे पहले रिजर्व बैंक ने 27 मार्च को रेपो रेट 0.75 फ़ीसदी घटाने के साथ कई घोषणाएं की थी। 1 मार्च से 14 अप्रैल तक रिजर्व बैंक ने सिस्टम में 1.2 लाख करोड़ रुपए की तरलता बढ़ाई है। ये उपाय इसलिए जरूरी हैं क्योंकि लॉक डाउन के चलते ज्यादातर आर्थिक गतिविधियां बंद हैं। अनुमान है कि अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी विकास दर शून्य से काफी नीचे रहेगी। आईएमएफ का कहना है कि पूरे वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 1.9 फ़ीसदी रहने के आसार हैं। एक नजर डालते हैं रिजर्व बैंक द्वारा घोषित उपायों और उनके असर पर।
घोषणा: जिन ग्राहकों ने कर्ज पर मोरेटेरियम की सुविधा ली है उनके कर्ज का स्टेटस मोरेटेरियम की अवधि में नहीं बदलेगा।
असर: मोरेटेरियम लेने वाले ग्राहक अगर 180 दिनों तक कर्ज नहीं लौटाते हैं तब भी उनका खाता एनपीए नहीं माना जाएगा। बड़ी बात यह है कि बैंकों के अलावा एनबीएफसी के ग्राहकों को भी यह सुविधा मिलेगी। इससे एक तो एनपीए नहीं बढ़ेगा और दूसरी तरफ, आम लोग, एसएमई और बड़ी कंपनियां ज्यादा कर्ज ले सकेंगी। हालांकि बैंकों और वित्तीय संस्थानों को मोरेटोरियम वाले कर्ज के लिए 10 फ़ीसदी अतिरिक्त प्रोविजनिंग करनी पड़ेगी।
घोषणा: रिवर्स रेपो रेट 0.25 फ़ीसदी घटाकर 3.75 फ़ीसदी किया।
असर: बैंक अपना सरप्लस पैसा रिजर्व बैंक के पास रखते हैं और उस पर मिलने वाले ब्याज को रिवर्स रेपो कहा जाता है। इसे कम करने का मतलब है कि बैंक आरबीआई के पास पैसे रखने के बजाय वह कैसा कर्ज के रूप में देने की कोशिश करेंगे। कर्ज बढ़ने से अर्थव्यवस्था में भी गति आएगी।
घोषणा: बैंक 31 मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष के लिए आगे कोई लाभांश नहीं देंगे।
असर: इससे बैंकों के पास पूंजी रहेगी जिसका इस्तेमाल वे कर्ज देने में कर सकेंगे। वैसे भी अर्थव्यवस्था की अभी जो हालत है उसे देखते हुए आने वाले दिनों में एनपीए बढ़ने के आसार हैं। बैंकों के पास पूंजी रही तो वे इससे बेहतर निपट सकते हैं। लाभांश भुगतान पर इस रोक की समीक्षा अगली तिमाही में की जाएगी।
घोषणा: रिजर्व बैंक टारगेटेड लांग टर्म रेपो के जरिए 50000 करोड़ रुपए सिस्टम में डालेगा।
असर: बैंक इस फंड का इस्तेमाल एनबीएफसी के इन्वेस्टमेंट ग्रेड के बांड, कमर्शियल पेपर और नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर में कर सकते हैं। बैंकों को इसमें से आधी रकम का इस्तेमाल छोटी और मझोले आकार की एनबीएफसी और माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के लिए करना पड़ेगा। इससे इन संस्थाओं की तरलता की समस्या दूर होगी।
घोषणा: नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक को 50000 करोड़ रुपए की विशेष रिफाइनेंसिंग सुविधा।
असर: इन संस्थानों को यह कर्ज रेपो रेट पर यानी काफी सस्ता मिलेगा। ये संस्थान कर्ज की रिफाइनेंसिंग करते हैं। यह फंड मिलने से अब वे ज्यादा कर्ज की रिफाइनेंसिंग कर सकेंगे। कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को कम ब्याज वाला ज्यादा कर्ज मिल सकेगा। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की दिक्कतें भी कम होंगी। 50,000 करोड़ में से 25000 करोड़ नाबार्ड, 10000 करोड़ एनएचबी और 15000 करोड़ सिडबी के लिए हैं। सिडबी को रकम मिलने का फायदा अंततः एमएसएमई कंपनियों को होगा जो लॉक डाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित सेगमेंट है। इन कंपनियों का बिजनेस तो लगभग बंद है लेकिन फिक्स्ड खर्चे जारी हैं। कुल मैन्युफैक्चरिंग में एमएसएमई की हिस्सेदारी 45 फ़ीसदी और निर्यात में 40 फ़ीसदी है।
घोषणा: कमर्शियल रियल एस्टेट को एनबीएफसी के कर्ज की अवधि 1 साल बढ़ी।
असर: एनबीएफसी को इस कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग नहीं करनी पड़ेगी और उनका कर्ज एनपीए होने से बचेगा। इसका फायदा डेवलपर को भी मिलेगा।