ई-कॉमर्स
नए साल में ऑनलाइन कारोबार के 7,000 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान जबकि छोटे शहरों के बढ़ते उपभोक्ता आधार के दम पर सन 2020 तक जीडीपी में इसकी चार प्रतिशत तक हिस्सेदारी हो सकती है
राजेश रंजन
ऑनलाइन कारोबार का सीधा ताल्लुक इंटरनेट उपलब्धता से है और जैसे-जैसे इंटरनेट का विस्तार होता गया ई-कॉमर्स का कारोबार भी बढ़ता गया। इंटरनेट खरीदारी पर सर्वे करने वाली निल्सन ग्लोबल ऑनलाइन सर्वे के आंकड़ोंं पर यकीन करें तो विश्व की 85 प्रतिशत ऑनलाइन आबादी ऑनलाइन खरीदारी का अनुभव पा चुकी है जबकि पिछले दो वर्षों के दौरान यह खरीदारी 40 प्रतिशत बढ़ी है। इंटरनेट के जरिये खरीदारी में भारत अब भी यूरोपीय और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से बहुत पिछड़ा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि यहां के दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरोंं मेंं ऑनलाइन कारोबारियोंं का 50 प्रतिशत से अधिक का कारोबार बढ़ा है क्योंकि इन शहरोंं मेंं मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। फ्लिपकार्ट का कहना है कि एक साल पहले तक मोबाइल से खरीद-बिक्री का ऑनलाइन कारोबार 10 प्रतिशत तक ही था जो अब बढक़र 50 प्रतिशत हो गया है। मजे की बात यह है कि स्मार्टफोन के बढ़ते चलन और सस्ते डाटा प्लान ने मझोले और छोटे शहरोंं मेंं ऑनलाइन खरीदारी को पंख लगा दिए हैं और इसकी पहुंच अब उपभोक्ता उत्पादोंं से लेकर रोजमर्रा की जरूरत वाली वस्तुओंं (एफएमसीजी) तक पहुंच चुकी है। हालांकि एफएमसीजी कंपनियों के कुल कारोबार में ऑनलाइन बिक्री से होने वाली आय का हिस्सा अभी 3.7 प्रतिशत ही है जो 2016 तक 5.2 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। पिछले त्योहारी मौसम मेंं जहां महानगरोंं मेंं ऑनलाइन बिक्री सुस्त रही, वहीं जयपुर, इंदौर, कोच्चि, सूरत, अहमदाबाद, मेरठ और पटना जैसे शहरों मेंं 50 से 1000 प्रतिशत तक वृद्धि देखी गई। उद्योग संगठन एसोचैम के मुताबिक, नए साल मेंं यहां ऑनलाइन कारोबार बढक़र 7,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है।
खुदरा कारोबारियोंं और दुकानदारोंं के लिए लिए आफत बन चुके ई-कॉमर्स का कारोबार पिछले तीन वर्षों के दौरान 150 प्रतिशत की दर से बढ़ चुका है। वैश्विक सलाहकार कंपनी केपीएमजी तथा इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट मेंं कहा गया है कि सन 2009 मेंं यहां 3.8 अरब डॉलर का ऑनलाइन कारोबार हुआ था और यह 2012 तक बढक़र 9.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया। नवंबर 2013 की रिपोर्ट मेंं कहा गया कि भारत मेंं ऑनलाइन कारोबार 3.1 अरब डॉलर का हो चुका है और सन 2020 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) मेंं ई-कॉमर्स का योगदान चार प्रतिशत हो जाएगा। भारत के संदर्भ मेंं दिलचस्प बात यह है कि फ्लिपकार्ट, आमेजन और स्नैपडील जैसी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों की तुलना मेंं भारतीय रेल सेवा की वेबसाइट इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन (आईआरसीटीसी) की ई-कॉमर्स गाड़ी सबसे तेज चल रही है। बीते वर्ष फ्लिपकार्ट और आमेजन ने दावा किया था उन्होंने सालाना एक अरब डॉलर की बिक्री कर ली है जबकि इसी दौरान आईआरसीटीसी ने ऑनलाइट टिकट बेचते हुए लगभग 2.5 अरब डॉलर का राजस्व जुटा लिया। फ्लिपकार्ट और आमेजन इस सरकारी रेल पोर्टल के 2.3 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओंं के मौजूदा डाटाबेस का फायदा उठाने के लिए अपने उत्पाद एशिया-प्रशांत की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स साइट के जरिये बेचने की बात कर रही है। अनुमान है कि अगले पांच वर्षों के दौरान देश का संगठित खुदरा कारोबार 15 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा जबकि सन 2016 तक एफएमसीजी उत्पादोंं की ऑनलाइन बिक्री 47 प्रतिशत की दर से बढ़ते हुए 53 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है। फिलहाल दक्षिण कोरिया और एशिया मेंं एफएमसीजी कंपनियोंं के ऑनलाइन बाजार सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं। दक्षिण कोरिया मेंं 55 प्रतिशत लोग एफएमसीजी उत्पादोंं की ऑनलाइन खरीद करते हैं और यह दुनिया मेंं सबसे आगे है।
देश मेंं ऑनलाइन खरीदारी का दायरा अब किताबों, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान से निकलकर कई उपभोक्ता वस्तुओंं तक पहुंच चुका है और इनकी बिक्री मेंं जबर्दस्त छूट, लागत से कम मूल्य पर सामान बेचने की पेशकश ने आग मेंं घी का काम किया है। कुछ कंपनियोंं द्वारा त्योहारी मौसम मेंं बिग बिलियन डे और रिटेलिंग का बिग बैंग जैसी योजनाएं शुरू कर 50 से 70 प्रतिशत तक की छूट की पेशकश की जा रही है और चंद घंटोंं मेंं हजार करोड़ रुपये तक का माल बेचने के दावोंं ने बड़े-बड़े उद्योगपतियों और खुदरा कारोबारियोंं को चौंका दिया है। ट्रेडर्स कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स तो इन ई-कॉमर्स कंपनियोंं से आर-पार की लड़ाई के मूड में है। संगठन के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं, 'ऐसी कंपनियां सीधे उत्पादन केंद्रों से माल उठा कर उपभोक्ताओंं तक पहुंचा रही हैं। मुफ्त डिलेवरी का खर्चा खुद उठाकर ये घाटे मेंं चल रही हैं। इनका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओंं की तादाद बढ़ाकर पूंजी और निवेश बढ़ाना है लेकिन यह सब ज्यादा दिनोंं तक चलने वाला नहींं है।Ó
इसी तरह नेहरू प्लेस मेंं आईटी ट्रेडर्स की ओर से सीबीआई, सेबी, केंद्र सरकार और प्रवर्तन निदेशालय तक से फरियाद कर चुके स्वर्ण सिंह कहते हैं, 'अभी तो ये भारी छूट देकर माल बेच रहे हैं लेकिन आगे यह एक बड़ा घोटाला बनकर उभरेगा। ई-कॉमर्स कंपनियां विदेशी निवेशकोंं से कालाधन के तौर पर पूंजी जुटा रही हैं। भारी छूट देकर घाटा उठाने के बावजूद विक्रय आधार बढ़ा रही हैं और इसी टर्नओवर के दम पर बैंकोंं से कर्ज ले रही है। बढ़ती बिक्री से बढ़ते घाटे के साथ-साथ इनकी कर्ज राशि भी बढ़ती जा रही है। लिहाजा एक समय ऐसा भी आएगा कि ये बाजार मेंं आईपीओ लाकर सारा घाटा आम आदमी की जेब पर ही डालकर गायब हो जाएंगी।Ó बहरहाल ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी आगामी विस्तार योजनाओंं मेंं कोई कोताही नहींं बरत रही हैं। फ्लिपकार्ट इसी साल से अपने पोर्टल पर 30 से अधिक वैश्विक ब्रांडोंं के उत्पादोंं की विशेष बिक्री की योजना बना रही है। स्नैपडील भी नए साल मेंं 450 से अधिक ब्रांडों के साथ भागीदारी की तैयारी मेंं है। जाहिर है कि देश मेंं ये सभी कंपनियां ई-कॉमर्स के बढ़ते बाजार का भरपूर फायदा उठाना चाह रही हैं। यदि ये कंपनियां घाटे मेंं अपने सामान लगातार बेच रही हैं तो इसका नुकसान किसे उठाना पड़ेगा? फ्लिपकार्ट ने सन 2014 मेंं ही 1.2 अरब डॉलर जुटाकर बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने की तैयारी की है। कंपनी का कहना है कि हम अलग-अलग ब्रांडों और विक्रेताओं के साथ विशेष पेशकश के आधार पर काम करते हैं। सभी ब्रांड अपनी सुविधानुसार हमें अलग-अलग छूट देती है। कुछ विक्रेता छूट देना नहीं चाहते और उन्हें पता भी नहीं होता कि उपभोक्ताओंं को लुभाने वाली ई-कॉमर्स की नई-नई पेशकशोंं मेंं उनके उत्पादोंं पर कितनी छूट मिलेगी। भारत मेंं अभी ऑनलाइन कारोबार को निवेशक और सरकार भी सहयोग कर रहे हैं इसलिए उन्हें घाटा उठाने की चिंता नहींं है। लेकिन अब जैसे-जैसे यह कारोबार बढ़ता जा रहा है, ई-कॉमर्स कंपनियों का छूट प्रतिशत भी कम हो रहा है। अब उनका ध्यान सिर्फ अधिक से अधिक मुनाफा कमाने पर है। फैशन पोर्टल जबॉन्ग डॉट कॉम के सह-संस्थापक का भी मानना है कि हाल के दिनोंं मेंं ई-कॉमर्स कंपनियां अब दैनिक या साप्ताहिक छूट मेंं कमी करने लगी हैं। कई सारी ई-कॉमर्स कंपनियोंं के बाजार मेंं उतरने से भी उनकेबीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और इसलिए उपभोक्ताओंं को अब निष्पक्ष और ईमानदार कारोबार की उम्मीद करनी चाहिए।
विंडो शॉपिंग
वक्त की कमी ने बढ़ाया ऑनलाइन बाजार
भारतीय ऑनलाइन बाजार अभी अमेरिका और ब्रिटेन से काफी पीछे है लेकिन इसकी रफ्तार तेज है और आने वाले वर्षों में ई-कॉमर्स वेबसाइटों और ई-कॉमर्स का कारोबार का भविष्य उज्ज्वल रहेगा। पिछले कुछ वर्षों से इस ओर ज्यादा से ज्यादा ग्राहक सिर्फ इसलिए आकर्षित हुए हैं कि माउस के एक क्लिक से उन्हें न सिर्फ कई सारे विकल्प मिल जाते हैं बल्कि किफायती मूल्य पर मनपसंद वस्तु भी मिल जाती है। इसके अलावा यहां न तो कोई चीज ढूंढने में दिक्कत होती है और न ही भुगतान की समस्या रहती है। ऑनलाइन शॉपिंग में आपको बिचौलिये के बगैर मनमाफिक मात्रा और गुणवत्ता अलग-अलग रंगों, आकारों तथा कीमतों के उत्पाद मिल जाते हैं। तेज रफतार चलती जिंदगी में लोगों के पास वक्त भी कम होता जा रहा है और वे हर काम में समय, पैसे और दूरियां कम करना चाहते हैं। हमारी कंपनी लोगों की इसी मानसिकता का खयाल रखते हुए घर बैठे सेवाएं मुहैया करा रही है जो कारों की देखभाल से लेकर साफ-सफाई और हर प्रकार के उत्कृष्ट कल-पुर्जे ग्राहकों को दे रही है। भारत में कारों की बढ़ती संख्या के साथ ही ऑनलाइन खरीदारी भी तेजी से विकसित हो रही है। देश के कोने-कोने में ब्रॉडबैंड इंटरनेट एवं 3जी नेटवर्क का विस्तार हो रहा है, लोगों का जीवन-स्तर और उनकी खरीद क्षमता बढ़ रही है, उत्पादों के विकल्प बढ़े हैं, लाइफस्टाइल व्यस्त होने के कारण उनके पास खरीदारी के लिए एक दुकान से दूसरी दुकान की खाक छानने का वक्त नहीं रह गया है। इसके अलावा ऑनलाइन पर अपेक्षाकृत कम दामों पर चीजें मिल जाने से वे घर बैठे चीजें खरीदने को प्राथमिकता दे रहे हैं। आम तौर पर 18 से 34 साल के युवा ऑनलाइन खरीदारी की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। हमारी कंपनी कोजी कार्स की ही बात करें तो प्रत्येक युवा और सजग कार मालिक अपने कार की देखभाल के लिए एक्सेसरीज और अन्य उत्पाद खरीदना ही पसंद करता है। देश के किसी अन्य उद्योग की तुलना में ऑटोमोबाइल उद्योग बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। इसे देखते हुए हमारी कंपनी ने एक पोर्टल शुरू करने की योजना बनाई है जहां ग्राहक कारों, कार एक्सेसरीज, कारों की देखभाल के उत्पाद और घर पर ही कारों की सर्विसिंग के बारे में अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
जसमीत सिंह (उपाध्यक्ष, लाइव इंडिया मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड)