नई दिल्ली। कहां तो उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद, 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज में मिडिल क्लास को बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन लगता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सैलरी क्लास को राहत की जगह नुकसान पहुंचा दिया है। इसको लेकर टैक्स एक्सपर्ट भी स्पष्टता नहीं ला पा रहे हैं। असल में राहत पैकेज पार्ट-1 में वित्त मंत्री ने सैलरी क्लास के वेतन से कटने वाली पीएफ राशि में अहम बदलाव का ऐलान किया है। इसके तहत सरकार ने कर्मचारियों के हाथ में नकदी बढ़ाने और कंपनियों का खर्च कम करने के लिए पीएफ अशंदान में दो-दो फीसदी की कटौती कर दी है। यह कटौती तीन महीने के लिए की गई है।
कहीं कर्मचारियों को नुकसान न हो जाए
असल में अभी इम्प्लाई प्रोविडंट फंड के तहत कर्मचारियों को अपनी सैलरी का 12 फीसदी और नियोक्ता को कर्मचारी के अंशदान के बराबर यानी 12 फीसदी की राशि पीएफ खाते में जमा करनी होती है। वित्त मंत्री के ऐलान के अनुसार अब कर्मचारियों को 12 की जगह 10 फीसदी और नियोक्ता को 12 की जगह 10 फीसदी राशि जमा करनी होगी। इससे कर्मचारी को बचने वाली राशि सैलरी के रुप में इन हैंड मिल जाएगी। जबकि उसके नाम पर जमा होने वाली राशि अब नियोक्ता को नहीं देनी होगी। यानी वह पैसा कर्मचारी के पीएफ खाते में नहीं जमा होगा। तो फिर वह पैसा कहां जाएगा, अभी तक के निर्देश से यही लगता है कि वह पैसा कर्मचारी के हिस्से में नहीं आएगा। इस पर टैक्सपेयर्स एसोसिएशन ऑफ भारत के प्रेसिडेंट मनु गौड़ का कहना है “फौरी तौर पर देखने से यही लगता है कि इस कदम से कर्मचारियों को 2 फीसदी का नुकसान होगा। हालांकि जब तक गाइडलाइन नहीं जारी होती है, उस वक्त तक हमें इंतजार करना चाहिए। अगर गाइडलाइन में इस 2 फीसदी राशि को कर्मचारी को देने की बात कही जाती है तो उसके पास नकदी बढ़ जाएगी लेकिन ऐसा नहीं होता है तो निश्चित तौर पर कर्मचारी को नुकसान होगा।”
कैसे होगा नुकसान
मान लीजिए आपकी बेसिक सैलरी 20 हजार रुपये है तो हर महीने 12 फीसदी यानी 2,400 रुपये आपकी सैलरी से पीएफ खाते में जमा होते हैं। जबकि इतनी ही राशि नियोक्ता कर्मचारी के पीएफ खाते में जमा करता है। अब नए नियम के तहत 400 रुपये कर्मचारी के कम कटेंगे। यानी उसकी इन हैंड सैलरी 400 रुपये बढ़ जाएगी। वहीं नियोक्ता को 400 रुपये कर्मचारी के पीएफ खाते में नहीं जमा करना होगा। अगर यही नियम रहता है तो कर्मचारी के पीएफ खाते में तीन महीने में 1,200 रुपये कम जमा होगा। यानी उसे सीधे तौर 1,200 रुपये का नुकसान होगा।
सार्वजनिक कंपनियों पर नहीं होगा लागू
हालांकि यह नियम सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर नहीं लागू होगा। ईपीएफओ में इस समय करीब 6.5 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं और इनमें 4.3 करोड़ कर्मचारी हैं। इस निर्णय से कंपनियों और कर्मचारियों के हाथ में खर्च करने के लिए 6,750 करोड़ रुपये उपलब्ध होंगे।