सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि कोविड-19 महामारी के चलते घोषित मोरेटोरियम अवधि के दौरान लोन की किस्तों के स्थगित भुगतान के लिए ब्याज पर ब्याज लगाने का कोई वाजिब आधार नहीं है।
जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि अगर किसी मोरेटोरियम की घोषणा कर दी गई तो उसका वांछित उद्देश्य पूरा होना चाहिए। सरकार को इस मामले में दखल देने पर विचार करना चाहिए क्योंकि हर मुद्दा बैंकों पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इस बेंच में जस्टिस एस. के. कौल और एम. आर. शाह भी शामिल हैं।
याचिका में दिए गए तर्क
सुप्रीम कोर्ट की बेंच आगरा निवासी गजेंद्र शर्मा की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में उल्लिखित अवधि को लोन पर ब्याज लगाने के लिहाज से निष्प्रभावी यानी अधिकारातीत घोषित किया जाए। मोरेटोरियम अवधि में लोन पर ब्याज लगाए जाने के कारण याचिकाकर्ता ने कठिनाई आने का उल्लेख करते हुए कहा कि कर्जदार होने के कारण मोरेटोरियम अवधि में ब्याज लगने से उन्हें परेशानी आ रही है और संविधान के अनुच्छेद 21 में गारंटीशुदा जीवन जीने के अधिकार में बाधा पैदा हो रही है।
सरकार ने कहा- जमाकर्ताओं को ब्याज देना है
सरकार और आरबीआइ की ओर से अदालत में पेश होकर सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ब्याज को पूरी तरह माफ करना बैंकों के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि उन्हें जमाकर्ताओं को ब्याज का भुगतान करना है। बैंकों के पास 133 लाख करोड़ रुपये जमाहें। बैंकों को जमाकर्ताओं को ब्याज देना होता है। ब्याज माफ करने से जमाकर्ताओं को ब्याज अदा करने की उनकी क्षमता प्रभावित होगी।
अगस्त के पहले हफ्ते में अगली सुनवाई
कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख अगस्त के पहले सप्ताह में तय की है। उसने से कहा है कि केंद्र और आरबीआइ को पूरी स्थिति की समीक्षा करे और भारतीय बैंक संघ (आइबीए) इस पर गौर करे कि क्या वे लोन मोरेटोरियम के लिए नई गाइडलाइन तैयार कर सकते हैं।