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फिल्म समीक्षा : फितूर

निर्देशक अभिषेक कपूर ने फितूर को बड़े विश्वास के साथ बनाया है। चार्ल्स डिकंस के ग्रेट एक्सपेक्टेशंस के लंदन को कश्मीर की पृष्ठभूमि में पिरोना और फिर उसे बॉलीवुड की यादगार प्रेम कहानी के रूप में प्रस्तुत करने का काम उन्होंने बखूबी किया है।
फिल्म समीक्षा : फितूर

इस फिल्म को निर्देशक को उपन्यास से फिल्म का रूप देने में उतनी ही सावधानी बरती है जैसी कि ऐसी किसी और फिल्म को बनाने के लिए बरतनी होती। हालांकि निर्देशक द्वारा फिल्म बनाने के लिए अपनाई गई शैली इसे कई स्थानों पर काफी नीरस बना देती है लेकिन अनय गोस्वामी की अभूतपूर्व सिनेमेटोग्राफी और सुप्रतीक सेन एवं अभिषेक कपूर की पटकथा इसे एक बेहद खूबसूरत फिल्म बनाती है जिसे बड़े करीने से सजाया गया है और यही फितूर को एक अवश्य देखने वाली फिल्म बनाती है।

एक कम बोलने वाला कश्मीरी लड़का नूर (आदित्य रॉय कपूर) है जो अपने दीदी-जीजाजी के साथ रहता है लेकिन जब वह एक अमीर और राजघराने से संबंध रखने वाली बेगम हजरत जान (तब्बू) की बेटी फिरदौस (कैटरीना कैफ) को पहली बार देखता है तो दीन-दुनिया से उसका मोहभंग हो जाता है और वह उसी धारा में बह जाता है।

वह एक कलाकार है जिसकी उंगलियों से जादू बरसता है। किशोरपन से जवानी की दहलीज चढ़ते हुए वह एक प्रसिद्ध मूर्तिकार और चित्रकार के रूप में नाम कमाता है और इस दौरान उसे कोई रहस्यमयी तरीके से मदद करता रहता है। उसकी यही ख्याति उसे दिल्ली ले आती है जिसके बाद वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता। यहीं पर उसके और फिरदौस के बीच का प्यार परवान चढ़ता है।

फितूर बिल्कुल अपने मायने की तरह ही है जहां पर प्यार करने वाले युवा प्रेमी जोड़े को दीवानगी की हद तक प्यार करते हुए पर्दे पर पेश किया गया है। कश्मीर की वादियों में बुनी गई कहानी इस फिल्म को एक नया आयाम और स्वरूप प्रदान करती है।

बेगम के किरदार में तब्बू ने बेहतरीन अदाकारी की है जो फिल्म का मुख्य आकर्षण बनकर उभरती हैं, समय और कहानी के साथ बदलता उनका चरित्र उनकी अदाकारी से एक नए पायदान पर जा खड़ा होता है।

युवा प्रेमी जोड़े के बीच का उतार-चढ़ाव, उनके बीच के प्यार की गहराई और संघर्ष को कैटरीना और कपूर ने बेहद खूबसूरत अंदाज में पेश किया है।

सही समय पर और अच्छे तरीके से पिरोए गए अजय देवगन, लारा दत्ता और अदिति राव हैदरी के चरित्र फिल्म को बेहतर गति प्रदान करते हैं।

इस फिल्म में दो पीढ़ियों की जद्दोजहद और कश्मीर घाटी की उथल-पुथल कई मौकों पर दिखाई देती है लेकिन फिल्म की पटकथा उसे फितूर के विषय पर हावी नहीं होने देती और हल्की सिरहन देकर यह चले जाते हैं।

इस फिल्म में और भी बहुत कुछ है जिसमें कैमरे का काम बेहद खूबसूरत है। फिल्म का संगीत पहले ही लोगों के दिलो-दिमाग पर चढ़ चुका है।

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