कहानी सन 1877 की है। एक नाचने वाली नूर (पर्निया कुरैशी) और एक राजकुमार अमिर हैदर (इमरान अब्बास) इसमें मुख्य भूमिका में हैं। सन 1857 की क्रांति को सात साल बीत चुके हैं और तब यह कहानी शुरू होती है। जितना बड़ा इस कहानी का कैनवास है उतना ही छोटा इसका चमत्कार।
तवायफ औरराजा की कहानी भारतीय सिनेमा के लिए बिलकुल भी नई नहीं है। इस कहानी में नूर देशभक्त है और उसके लिए देश की लड़ाई ही पहली मुहब्बत है। पीरियड फिल्में वैसे भी दर्शक वर्ग को सीमित कर देती हैं। ऐसी फिल्में तब ही चलती हैं जब इनमें कुछ बहुत ही अलग ढंग से बात कही गई हो। अब तो टीवी पर ही तमाम ऐसे धारावाहिक आ रहे हैं जिसमें आजादी की लड़ाई को अलग ढंग से दर्शाया गया है।
बहुत साधारण स्तर पर चलते हुए यह फिल्म अंत तक पहुंचती है और दर्शकों को लगता है कि बस यह खत्म हो गई! कहानी कहीं-कहीं दिलचस्प मोड़ लेती है पर कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाती। दोनों ही मुख्य कलाकारों को निश्चित तौर पर अभिनय की काफी मेहनता की जरूरत है।