मणि रत्नम अपनी फ़िल्म " दिल से " का निर्माण कर रहे थे। इस फ़िल्म को लिखने के लिए उन्होंने एक बड़े फ़िल्मी लेखक को बुलाया। इसी बीच मणिरत्नम की मुलाक़ात युवा लेखक, निर्देशक तिग्मांशु धूलिया से हुई। जब मणिरत्नम को पता चला कि तिग्मांशु भी काम की तलाश में हैं तो उन्होंने तिग्मांशु को फ़िल्म का एक सीन लिखकर लाने के लिए कहा। बड़े फ़िल्म लेखक और तिग्मांशु धूलिया ने सीन लिखा। मणिरत्नम ने जब दोनों की लिखावट देखी तो उन्हें तिग्मांशु का लिखा अधिक पसंद आया। इस तरह फ़िल्म लिखने की ज़िम्मेदारी तिग्मांशु के हिस्से आई।
फ़िल्म निर्माण के दौरान जब गीतों की रिकॉर्डिंग हो रही थी तो गीतकार गुलज़ार का लिखा गीत " ए अजनबी तू भी कभी " सभी को बहुत पसंद आ रहा था। यह गीत तिग्मांशु धूलिया को भी बेहद पसंद आया।
उन्हीं दिनों तिग्मांशु धूलिया की पत्नी गर्भवती थीं। डॉक्टर ने तिग्मांशु से कहा था कि किसी भी दिन वह पिता बन सकते हैं। यह तिग्मांशु के लिए महत्वपूर्ण क्षण थे। तिग्मांशु धूलिया की पत्नी ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया। जब बेटी के नामकरण की बात आई तो तिग्मांशु ने बिना देर किए बेटी का नाम " जानसी " रख दिया। इसलिए कि वह गुलज़ार साहब के गीत " ए अजनबी तू भी कभी " को इतना बार गुनगुना चुके थे कि इस गीत में आने वाले शब्द " वो रौशनी कहां है, वो जानसी कहां है " उनके ज़ेहन में बस चुके थे। इस तरह बेटी के जन्म के बाद उन्होंने गीत से प्रेरित होकर उसका नाम " जानसी " रख दिया।