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हसरत जयपुरी - हिंदी फिल्मों में बेहतरीन, अविस्मरणीय गीत लिखने वाले अलबेले, अनोखे, रूमानी गीतकार

हसरत जयपुरी अनोखे, प्रसिद्ध शायर-कवि-गीतकार थे जिन्होंने हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा में हिंदी फिल्मों...
हसरत जयपुरी - हिंदी फिल्मों में बेहतरीन, अविस्मरणीय गीत लिखने वाले अलबेले, अनोखे, रूमानी गीतकार

हसरत जयपुरी अनोखे, प्रसिद्ध शायर-कवि-गीतकार थे जिन्होंने हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा में हिंदी फिल्मों के लिए अत्यंत ख़ूबसूरत, अमर गीत रचे। बंबई में आरंभिक दौर में बस कंडक्टर रहे हसरत जयपुरी कितने प्रतिभाशाली थे, ये उनके सफल गीतकार बनने पर लोगों को ज्ञात हुआ। उनका असली नाम इकबाल हुसैन था लेकिन शायर होने के कारण उन्‍होंने ‘पेन नेम’ हसरत रखा और जयपुर में जन्‍मे होने के कारण जयपुरी जोड़ा, इस तरह इकबाल हुसैन से बदलकर ‘हसरत जयपुरी’ बन गए। गीतकार के अलावा कवि के रूप में लोकप्रिय वे मानते थे कि हिंदी-उर्दू एक-दूसरे की पूरक भाषाएं हैं जो एक-दूजे के बिना अधूरी हैं। उन्होंने दोनों भाषाओं में कविताओं की किताबें प्रकाशित करायीं। उन्होंने ख़ुद को नाज़ुक एहसासों वाले मधुर गीतों के जरिए प्यार फैलाने वाला संदेशवाहक माना। उनकी रचनाओं में उनका यकीन बड़ी शिद्दत से मौजूद होता था कि दुनिया की हर खाली जगह को प्यार से भर सकते हैं। जल्दी होने वाली मृत्यु का आभास होने के कारण उन्होंने अपने इर्द-गिर्द प्यार और खुशियां फैलाना जीवन का मक़सद बना लिया था। 

 

 

 

हसरत जयपुरी ने १५ अप्रैल, १९२२ को राजस्थान के मुस्लिम परिवार में जन्म लिया और उनका नाम इकबाल हुसैन रखा गया। उनका बचपन जयपुर में दादा फिदा हुसैन के सान्निध्य में बीता जहां उनके दादा ने उस्ताद बनकर उन्हें उर्दू और फारसी भाषाएं सिखायीं। उन्होंने अंग्रेजी में स्कूली शिक्षा प्राप्त की। कविता बचपन से जीवन का हिस्सा रही अतः उन्होंने युवावस्था में दोनों भाषाओं में छंदों की रचना की। पूर्णतः रोमांटिक प्रवृत्ति वाले ‘हसरत जयपुरी’ के बारे में किस्सा मशहूर है कि उनको अपने मोहल्ले में रहने वाली ‘राधा’ नामक लड़की से प्रेम हो गया था और वही प्रेम उन्हें कविता लिखने के लिए प्रेरित करता था। दोनों में प्यार होने पर उन्होंने हिंदी-उर्दू और फ़ारसी में कविताएं लिखना शुरू किया। उस समय के कट्टरवादी समाज में विपरीत मज़हब होने के कारण उनका प्रेम परवान नहीं चढ़ सका। पर वो मानते थे कि प्यार को धर्म और जाति के आधार पर वर्गीकृत नहीं करना चाहिए। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘उन्होंने राधा से बदले में प्यार मिलने की कभी उम्मीद नहीं की पर वो उनसे प्यार करते रहेंगे।’ अपनी माशूका ‘राधा’ के लिए लिखे प्रेमपत्र की सबसे प्रसिद्ध पंक्ति थी, ‘ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर, के तुम नाराज़ ना होना।’ लगभग बीस साल बाद, राजकपूर की फिल्म ‘संगम’ में ये मशहूर गीत ‘ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर’ फिल्माया गया और उनकी ‘राधा’ इस गीत में अमर हो गईं। 

 

 

 

हसरत जयपुरी ने बेहतर ज़िंदगी की तलाश में १९४० में जयपुर से बंबई का रुख किया। बंबई में जीवनयापन के लिए उन्होंने बस कंडक्टर की नौकरी की जिसमें उन्हें प्रत्येक माह के अंत में ११ रु. मिलते थे। वर्षों कंडक्टर की नौकरी की पर कविता से गहरा लगाव होने के कारण मुशायरों में नियमित रूप से भाग लेते रहे। एक मुशायरे में उन्हें देखकर पृथ्वीराज कपूर की पारखी निगाहों ने उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने बेटे राजकपूर को उन्हें काम देने का सुझाव दिया। राजकपूर उस वक़्त नरगिस, प्रेमनाथ और निम्मी के साथ ‘बरसात’ फिल्म बना रहे थे और उसमें राजकपूर के चहेते संगीतकार शंकर-जयकिशन संगीत देने वाले थे। हसरत जयपुरी ने ‘बरसात’ के लिए पहला गीत ‘जिया बेकरार है’ लिखा। फिल्म ‘बरसात’ हसरत जयपुरी के राजकपूर के साथ जुड़ाव की शुरुआत और सफलता का पहला पायदान थी। इसके बाद लोकप्रिय गीत ‘छोड़ गए बालम’ आया।

 

 

 

गीतकार शैलेंद्र से हसरत जयपुरी की मुलाकात होने पर दोनों के बीच कोई व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता नहीं हुई बल्कि दोनों ने दोस्ती की मिसाल कायम की। दोनों ने साथ में बेहद ख़ूबसूरत गीत लिखे जिन्हें शंकर-जयकिशन ने संगीतबद्ध किया। शैलेंद्र ने १९६६ में मदद के तौर पर हसरत जयपुरी को अपने प्रोडक्शन हाऊस की फिल्म ‘तीसरी कसम’ के गीत लिखने के लिए आमंत्रित किया। ५० और ६० के दशक में इन चारों के साथ राजकपूर ने सफल टीम बनाई। हसरत जयपुरी और शैलेंद्र टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा थे जिन्होंने राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’ से लेकर ‘कल, आज और कल’ के लिए बेहतरीन, हिट गीत लिखे जो आज भी श्रोताओं की पहली पसंद हैं। 

 

 

 

हसरत जयपुरी का कलमबद्ध किया और किशोर कुमार की अनूठे ढंग की विशेष ‘यूडली’ शैली में गाया, फिल्म ‘अंदाज़’ का ‘ज़िंदगी एक सफर है सुहाना’ गीत बेहद हिट हुआ था। हसरत जयपुरी की देन था फिल्म ‘लव इन टोक्यो’ का हिट गीत ‘सायोनारा-सायोनारा’, जिसे अभिनेत्री आशा पारेख ने किमोनो पहनकर, अभिनेता जॉय मुखर्जी के सामने नाचते हुए गाया था। उन्होंने अत्यधिक सफल फिल्म ‘श्री ४२०’ में ‘ईचक-दाना-बीचक दाना’ गीत लिखा। उनके वहमो-गुमान में भी नहीं होगा कि ये गाना पहेली के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी गाया और पसंद किया जाएगा। हसरत जयपुरी ने फिल्म ‘प्रिंस’ के लिए ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए’ गीत लिखा जिसे मोहम्मद रफी ने अपने गंभीर स्वभाव के विपरीत, सीन की मांग पर, निहायत चुलबुले अंदाज़ में गाया। शम्मी कपूर द्वारा पार्टी में वैजयंतीमाला से फ्लर्ट करते हुए गाया ये गाना हिंदी सिनेमा के सर्वाधिक लोकप्रिय, रोमांटिक, सुपरहिट गीतों में गिना जाता है। (कहा जाता है कि हसरत जयपुरी ने पेरिस में एक महिला को सितारों जड़ी साड़ी पहने देखा और वहीं उनको ये गीत लिखने की प्रेरणा मिली थी)। 

 

 

 

१९४९ से १९७१ तक, राजकपूर की लगभग हर फिल्म में हसरत जयपुरी या शैलेंद्र गीतकार के रूप में शामिल रहते थे और उनका संगीत शंकर-जयकिशन तैयार करते थे। १९७१ में जयकिशन की मृत्यु के बाद, सुमधुर गीतों का गौरवशाली युग खत्म हो गया। उसी दौरान राजकपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘कल, आज और कल’ फिल्मों के गाने दर्शकों को लुभाने में नाकाम रहे। जैसा फिल्म नगरी का चलन है, असफलता का ठीकरा हसरत जयपुरी के सर फोड़कर राजकपूर ने उनसे किनारा कर लिया। अपनी आगामी फिल्मों के लिए राजकपूर ने नए गीतकारों, संगीतकारों को अवसर दिए। पर ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए राजकपूर ने फिर हसरत जयपुरी से गीत लिखवाए। हसरत जयपुरी ने शैलेंद्र की मृत्यु के बाद, फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ का चार्टबस्टर गीत ‘सुन साहिबा सुन’ लिखा जो प्रेम की उद्घोषणा के रूप में सहस्राब्दियों तक दिलों में गूंजता रहेगा।

 

 

 

१९८८ में राजकपूर की मृत्यु के बाद, हसरत जयपुरी के लिए फिल्म नगरी में पहले जैसा आकर्षण नहीं रह गया था। संगीतकार रवींद्र जैन सच्ची प्रतिभाओं का सम्मान नहीं करते थे इसीलिए जानबूझकर हसरत जयपुरी जैसे प्रसिद्ध, वरिष्ठ गीतकार को फिल्मों में गीत लिखने से रोकने लगे। २००४ में आई फिल्म ‘हत्या: द मर्डर’ में उन्होंने आखिरी गीत लिखा था। उन्होंने गीतों, कविताओं के अलावा १९५१ में फिल्म ‘हलचल’ की पटकथा लिखकर अपनी एक और प्रतिभा का परिचय दिया था। हसरत जयपुरी को गीतकार के रूप में सिनेमा में योगदान देने के लिए दर्शकों का भरपूर प्यार मिला और व्यापक आलोचनात्मक प्रशंसा भी मिली। उनको पहला फिल्मफेयर पुरस्कार वर्ष १९६६ में फिल्म ‘सूरज’ के गीत ‘बहारों फूल बरसाओ’ के लिए मिला। उन्हें १९७२ में फिल्म ‘अंदाज’ के गीत ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना’ के लिए दोबारा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। एक उर्दू सम्मेलन में जोश मलीहाबादी पुरस्कार और ब्रजभाषा में लिखे ‘झनक-झनक तोरी बाजे पायलिया’ गीत के लिए डॉ. अंबेडकर पुरस्कार भी मिला था। 

 

 

 

हसरत जयपुरी सिनेमा में अभूतपूर्व उत्थान और सफलता के बावजूद अपनी जड़ों को कभी नहीं भूले। वो जैसे साधारण बंबई आए थे, अंत तक वैसे ही सादा मिज़ाज रहे। उनको जानने वाले उनकी साधारण जीवनशैली का श्रेय उनकी पत्नी को देते हैं, जिन्होंने अपार प्रसिद्धि और धन-संपदा के बावजूद उन्हें जमीन से जोड़े रखा। काम की कमी होने के कारण जब उनके पास ज़्यादा पैसे नहीं थे, तब भी उनकी पत्नी द्वारा समझदारी से की गई बचत उनके जीवनयापन के लिए पर्याप्त थी। फिल्मी नगरी की चकाचौंध से निर्लिप्त, वे ख़ुद को इतना साधारण मानते थे कि समर्थ होने पर भी हमेशा रेलगाड़ी से यात्रा करते थे। १७ सितंबर, १९९९ को, अनगिनत दिलों को अपने रूमानी गीतों से सुकून देने वाले इस रूहानी शायर की महान रूह ने फानी दुनिया को अलविदा कह दिया और दुनिया एक अलबेले, निराले गीतकार के और कई अनकहे गीतों से हमेशा के लिए महरूम हो गई।    

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