गुजरे जमाने को हिन्दी सिनेमा का गोल्डन इरा कहा जाता था तो इसके पीछे कई कारण थे। एक बड़ा कारण यह था कि उस दौर के कलाकारों में परस्पर सहयोग का भाव था। कलाकारों में ईर्ष्या, वैमनस्य, असुरक्षा उतनी हावी नहीं थी, जितनी आज दिखाई पड़ती है। चूंकि मन साफ था, आत्मा निश्चल थी तो उसका प्रभाव काम में दिखाई देता था। हिन्दी सिनेमा के दो मशहूर गायक मोहम्मद रफी और महेन्द्र कपूर के बीच एक बहुत ही खूबसूरत रिश्ता था। महेन्द्र कपूर गायक मोहम्मद रफी को अपना आदर्श, अपना उस्ताद मानते थे। उनके बीच का संबंध एक पिता और पुत्र जैसा था। मोहम्मद रफी गायक महेन्द्र कपूर को बिलकुल अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे। महेन्द्र कपूर और मोहम्मद रफी के जीवन से जुड़े हुए ऐसे कई प्रसंग हैं, जो इन्सान को भावुक भी करते हैं और मनुष्यता के भाव को पोषित भी करते हैं।
मोहम्मद रफ़ी बहुत सरल इंसान थे। उनके जीवन में संगीत के अलावा बाक़ी सभी कार्य गैर ज़रूरी थे। रफ़ी साहब के भोलेपन के कई क़िस्से मशहूर हैं। महेन्द्र कपूर ने अपने एक इंटरव्यू एक खूबसूरत किस्से का जिक्र किया था। किस्सा कुछ यूं है कि एक बार महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन मोहम्मद रफी को आकाशवाणी केंद्र से प्रोग्राम का न्यौता आया था। तब मोहम्मद रफी ने महेंद्र कपूर से उनके साथ आकाशवाणी केंद्र चलने के लिए कहा। महेंद्र कपूर उस दिन खाली थे इसलिए उन्होंने सहमति जता दी। महेंद्र कपूर और मोहम्मद रफी आकाशवाणी केंद्र पहुंचे। रफ़ी साहब ने अपनी प्रस्तुति दी। प्रस्तुति के बाद जब मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर वापस जाने लगे तो वहां मौजूद कई युवा नौजवान संगीत प्रेमियों ने रफ़ी साहब को घेर लिया। ये सभी मोहम्मद रफी का ऑटोग्राफ चाहते थे। उधर मोहम्मद रफी ऑटोग्राफ नाम की चीज़ से अनजान थे। मोहम्मद रफी ने महेंद्र कपूर से पूछा " यह लोग क्या चाहते है मुझसे ?"। जवाब में महेंद्र कपूर ने कहा "ये आपका ऑटोग्राफ यानी साइन चाहते हैं"। मोहम्मद रफी इतने भोले थे कि उन्होंने महेंद्र कपूर से कहा "अच्छा, एक काम कर, तू ही दे दे फिर"। महेंद्र कपूर के लिए मोहम्मद रफी गुरु थे। वह गुरु की बात कैसे टालते। महेंद्र कपूर ने तब सभी युवाओं के काग़ज़ पर "मोहम्मद रफ़ी" लिख दिया। इस घटना के बाद मोहम्मद रफी ने अपने साइन की प्रैक्टिस की। आगे से जब भी कोई उनसे ऑटोग्राफ मांगता तो वह निराश नहीं करते। ऐसी सादगी थी मोहम्मद रफी के व्यवहार में।
इसी तरह एक और मशहूर किस्सा है, जो सुना और सुनाया जाता है।गायक महेंद्र कपूर जब अपनी युवा अवस्था में थे, तब उन्हें हवाई जहाज में सफ़र करने का शौक़ था। वह शिद्दत से चाहते थे कि हवाई जहाज में बैठें। मगर किसी भी तरह उन्हें हवाई जहाज में सफ़र करने का अवसर नहीं मिल रहा था। ख़ैर, महेन्द्र कपूर की यह ख्वाहिश उनके भीतर पलती रही । जब महेन्द्र कपूर की इस ख्वाहिश का पता मोहम्मद रफी को चला तो उन्होंने महेंद्र कपूर को अपने पास बुलाया। उस वक़्त महेंद्र कपूर एक सिंगिंग कॉम्पटीशन में भाग लेने जा रहे थे। मोहम्मद रफी ने महेंद्र कपूर से कहा कि अगर वो सिंगिंग कॉम्पटीशन जीत गए तो वह उन्हें हवाई यात्रा करवाएंगे। इस बात से महेंद्र कपूर का हौसला और जोश बढ़ गया। महेंद्र कपूर ने शानदार गायकी के दम पर सिंगिंग कॉन्टेस्ट जीत लिया। जब यह खबर मोहम्मद रफी तक पहुंची तो उन्होंने अपनी और महेंद्र कपूर की कोलकाता के लिए फ्लाइट टिकट बुक कराई और उन्हें हवाई जहाज से अपने कोलकाता के शो में ले गए। इस तरह महेन्द्र कपूर का हवाई जहाज में सफ़र करने का ख्वाब पूरा हुआ।
मोहम्मद रफी का स्वभाव सरल और सूफी विचारों से प्रभावित था। एक बार मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर एक शो के सिलसिले में होटल में ठहरे हुए थे। रात का वक़्त था। मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर होटल की बालकनी में निकल आए। आसमान की तरफ़ देखते हुए रफ़ी साहब ने महेन्द्र कपूर से कहा "इस देश में एक से बढ़कर एक फनकार हैं लेकिन यह उस मालिक का करम ही है कि मेरा इतना नाम हो रहा है, लोग मुझे इतना पसंद कर रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि मैं कुछ नहीं हूं। इन नवाजिशों के लिए अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए।यह सब अल्लाह की देन है"। इतना कहकर मोहम्मद रफी जमीन से सर लगाकर अल्लाह को सजदा करने लगे। इस कदर सहज और शुक्रगुजार थे मोहम्मद रफी।
आज कॉम्प्टीशन के इस दौर में कोई किसी से साझा करना नहीं चाहता। सभी अकेले आगे बढ़ना चाहते। चाहे इसके लिए दूसरे को कुचलकर आगे बढ़ना पड़े। इसी भावना के कारण न अब काम में तासीर पैदा हो रही है और न किसी को वो मुहब्बत हासिल हो रही है, जो जनता के द्वारा कलाकारों को मिलती थी।