हिन्दी सिनेमा के सफल गीतकार एवं संवाद लेखक राजेन्द्र कृष्ण उन चुनिंदा कलाकारों में शामिल रहे, जिनकी गीत लेखन और संवाद लेखन, दोनों विधाओं पर बराबर पकड़ रही। इसके साथ ही राजेन्द्र कृष्ण का दखल हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री और दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में भी बराबर का रहा। यह राजेन्द्र कृष्ण की गुणवत्ता और बहुमुखी प्रतिभा का द्योतक है।
राजेन्द्र कृष्ण का जन्म 6 जून सन 1919 को अविभाजित भारत के जलालपुर में हुआ। उनका पूरा नाम राजेन्द्र कृष्ण दुग्गल था। बचपन से ही उन्हें साहित्य ने आकर्षित किया। कहानी, कविता, गीत में रुचि पैदा हुई। राजेन्द्र कृष्ण के भीतर जो भाव पैदा होते, वह उन्हें कविता की शक्ल देते। राजेन्द्र कृष्ण को निराला, पंत की रचनाओं से प्रेम था। फिराक गोरखपुरी से इश्क था। अक्सर पाठ्य पुस्तकों के भीतर रखकर फिराक की शायरी पढ़ा करते।
पढ़ने लिखने में अच्छे थे। बड़े भाई शिमला में रहा करते थे। सो पढ़ाई पूरी करने के बाद शिमला पहुंच गए। वहीं बिजली विभाग में हेड क्लर्क की नौकरी लग गई। राजेन्द्र कृष्ण नौकरी के साथ साथ शायरी करते और मुशायरों, कवि सम्मेलन में शिरकत करते। बात सन 1945 की है। शिमला में एक बड़ा मुशायरा हो रहा था। चूंकि तब तक देश का विभाजन नहीं हुआ था, इस कारण हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के सभी बड़े शायर उस मुशायरे में शामिल थे। राजेन्द्र कृष्ण ने इन सभी की मौजूदगी में शायरी सुनाई। मुशायरे में मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी भी शामिल थे। जब राजेन्द्र कृष्ण ने जब अपनी गजल का मतला पढ़ा तो जिगर मुरादाबादी झूम उठे। राजेन्द्र कृष्ण ने जिगर मुरादाबादी का रिएक्शन देखकर निर्णय लिया कि अब उन्हें पूर्ण रूप से शायरी ही करनी है। राजेन्द्र कृष्ण की गजल का मतला था
" कुछ इस तरह वो मेरे पास आए बैठे हैं
जैसे आग से दामन बचाए बैठे हैं"
राजेन्द्र कृष्ण ने शिमला की नौकरी छोड़ दी। वह अपने एक साथी, जो फिल्म निर्माण का शौक रखता था, उसके साथ मुंबई पहुंचे। राजेन्द्र कृष्ण के साथी पैसा निवेश कर के एक फिल्म बनाई लेकिन फिल्म असफल रही। नतीजा यह हुआ कि मित्र वापस शिमला चले गए और राजेन्द्र कृष्ण मुंबई में रह गए। अब मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने का समय था। साल 1947 में भारत गुलामी से आजाद हुआ। उसी साल राजेन्द्र कृष्ण को फिल्म "जनता" की पटकथा लिखने का अवसर मिला। इसके साथ ही किशोर शर्मा की फिल्म "जंजीर" के गीत भी राजेन्द्र कृष्ण ने लिखे।
राजेन्द्र कृष्ण को लोकप्रियता मिली, उस गीत से, जो उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या के बाद लिखा था। गीत के बोल थे "सुनो सुनो ए दुनिया वालों, बापू की अमर कहानी "। इस गीत को आवाज दी मोहम्मद रफी ने और संगीत दिया हुस्नलाल - भगतराम ने। यह गीत इतना लोकप्रिय हुआ था कि देशभर में राजेन्द्र कृष्ण का चर्चा हो गया। इस तरह पहली बार राजेन्द्र कृष्ण भारत की सामूहिक चेतना का रूप बने।
साल 1948 में देव आनंद और सुरैया की फिल्म आई "प्यार की जीत"। इस फिल्म में राजेन्द्र कृष्ण के गीत "तेरे नैनों ने चोरी किया" को सुरैया ने आवाज़ दी। सुरैया तब स्टार थीं। उन्होंने गीत गाया तो राजेन्द्र कृष्ण को भी पहचान मिली। फिर तो ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि देखते ही देखते राजेन्द्र कृष्ण हिन्दी सिनेमा के शीर्ष के गीतकार और संवाद लेखक बन गए। साल 1949 में फिल्म बड़ी बहन का गीत "चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है, पहली मुलाकात है पहली मुलाकात है" बेहद लोकप्रिय हुआ। इस गीत की कमायाबी के बाद, फिल्म के निर्माता निर्देशक ने राजेन्द्र यादव को ऑस्टिन कार तोहफे में दी थी। साल 1951 की फिल्म बहार का गीत "सैया दिल में आना रे" भारतीय महिलाओं के जबान और दिल में उतर गया। राजेन्द्र कृष्ण की खास मित्रता महमूद, मोहम्मद रफी, सुनील दत्त से रही। वह रिश्ते बनाने से अधिक रिश्ते निभाने में यकीन रखते थे।
राजेन्द्र कृष्ण ने दिलीप कुमार के साथ भी शानदार काम किया। दिलीप कुमार की फिल्म "गोपी" के लिए उन्होंने संवाद लिखे। इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में नॉमिनेशन भी मिला। फिल्म गोपी में ही राजेन्द्र कृष्ण ने एक भजन लिखा, जिसे मोहम्मद रफी ने आवाज़ दी और भजन दिलीप कुमार पर फिल्माया गया। भजन के बोले थे "सुख के सब साथी, दुख में न कोई"। यह भजन बेहद लोकप्रिय हुआ। हर घर में, धार्मिक आयोजनों में यह भजन गाया जाने लगा।
राजेन्द्र कृष्ण के बारे में एक किस्सा बड़ा मशहूर है।उनके सुपुत्र बताते हैं कि सत्तर के दशक में राजेन्द्र कृष्ण ने एक दफा रेस में पैसे लगाए थे। तब तक रेस में निकलने वाला जैकपॉट टैक्स फ्री होता था। संयोग से जैकपॉट राजेन्द्र कृष्ण के नाम निकला और उन्हें उस समय 48 लाख रुपए मिले। राजेन्द्र कृष्ण ने इस धनराशि में से 1 लाख रुपए इंदिरा गांधी के पीएम फंड में अपनी खुशी से जमा कराए। जब इंदिरा गांधी को मालूम हुआ कि यह राशि जैकपॉट से जीती गई राशि से प्राप्त हुई है और यह राशि टैक्स फ्री है तो उन्होंने तुरंत जैकपॉट की कमाई को टैक्स के दायरे में ला दिया। इस तरह से रेस से होने वाली कमाई टैक्स के दायरे में आ गई और रेस आयोजित करने वाले राजेन्द्र कृष्ण से नाखुश रहने लगे।
राजेन्द्र कृष्ण का एक सिद्धांत था। वह उन्हीं फिल्मों के लिए संवाद लेखन का काम करते, जिनमें उन्हें गीत लिखने होते थे। केवल संवाद लेखन उन्हें कभी पसन्द नहीं था। राजेन्द्र कृष्ण ने अभिनेता महमूद के साथ पड़ोसन जैसी बेहद कामयाब फिल्म में काम किया। पड़ोसन के गीत और संवाद सुपरहिट साबित हुए। इसी तरह साधु और शैतान में भी महमूद और राजेन्द्र कृष्ण की जोड़ी ने जलवा बिखेरा। राजेन्द्र कृष्ण ने दक्षिण भारतीय फिल्मों में खूब लेखन किया। इन सभी फिल्मों के गीत, संवाद राजेन्द्र कृष्ण ने लिखे। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि राजेन्द्र कृष्ण ने सभी संवाद अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद कर के लिखे। यानी दक्षिण भारतीय फिल्मों की मूल स्क्रिप्ट अंग्रेजी में होती थी न कि तमिल भाषा में। तब तक राजेन्द्र कृष्ण हिन्दी सिनेमा के सबसे महंगे गीतकार बन गए थे। दक्षिण भारतीय फिल्मों में राजेन्द्र कृष्ण ने अधिकतर महमूद के साथ काम किया। यहीं से दोनों की दोस्ती मजबूत हुई।
राजेन्द्र कृष्ण के घर में फिल्मी सितारों का आना जाना लगा रहता था। राजेन्द्र कृष्ण के सुपुत्र याद करते हुए बताते हैं कि उनके घर में अमिताभ बच्चन, महमूद, राजेश खन्ना आते थे वो घरवालों को बहुत खुशी होती थी। अलबत्ता आस पड़ोस के लोगों के लिए यह जादुई अनुभव होता था। राजेन्द्र कृष्ण ने सदा अपना ध्यान काम पर रखा। उन्हें शोहरत, दौलत, इज्जत में अधिक रुचि नहीं रही। उन्होंने सब कुछ हासिल करते हुए भी ग्लैमर को कभी अपने दिमाग़ में चढ़ने नहीं दिया। वह घर में टहलते हुए गीत लिखते। संवाद लेखन के लिए होटल में उनके लिए एक कमरा बुक रहता था। खाने के बड़े शौकीन थे। अक्सर अपने संगीतकार मित्रों के साथ दिल्ली चांदनी चौक के छोले भटूरे और आलू पूड़ी खाया करते थे। एक बनियान और लुंगी पहन कर घर में सामान्य भारतीय की तरह जीवन जीते थे। कोई दिखावा, कोई प्रपंच, कोई गुरुर उनके भीतर नहीं था। जीवन के अंतिम पड़ाव तक राजेन्द्र कृष्ण सक्रिय रहे और सृजनात्मक कार्य करते रहे।23 सितम्बर सन 1987 को मुम्बई में राजेन्द्र कृष्ण का निधन हो गया। राजेन्द्र कृष्ण दुनिया से चले गए मगर उनके गीत, उनके शब्द सदा के लिए लोगों के दिलों में धड़कने के लिए दुनिया में रह गए।