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रोमांटिक हीरो की छवि से कहीं आगे थे ऋषि कपूर, अपने अभिनय से सबको किया चकित

ऋषि कपूर (1952-2020) सत्तर के दशक से पर्दे पर बेहद रोमांटिक कलाकार के रूप में जाने जाते रहे। जिन्होंने एक्शन-...
रोमांटिक हीरो की छवि से कहीं आगे थे ऋषि कपूर, अपने अभिनय से सबको किया चकित

ऋषि कपूर (1952-2020) सत्तर के दशक से पर्दे पर बेहद रोमांटिक कलाकार के रूप में जाने जाते रहे। जिन्होंने एक्शन- मल्टीस्टार्स के दौर में प्रेम कहानियों को बॉलीवुड में जिन्दा रखा। यह सफलता उन्हें एक फिल्मी घराने से आने की वजह से नहीं मिली, बल्कि उन्होंने एक अभिनेता के रूप में अपनी वास्तविक क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए अपने करियर की शुरुआत के साथ काफी संघर्ष किया।

लव स्टोरी फिल्म बॉबी से की थी शुरुआत

जाने-माने अभिनेता राज कपूर के बेटे ऋषि ने अपने पिता द्वारा बनाई, 1973 में आई लव स्टोरी फिल्म बॉबी से हीरो के रुप में अपना करियर शुरू किया और काफी प्रसिद्धि हासिल की। जिसके बाद लव स्टोरी वाली फिल्मों के साथ रोमांटिक संगीत की दुनिया में वो छा गए। उनकी छवि फिल्मी दुनिया में एक रोमांटिक हीरो के रूप में चस्पा हो गई। लेकिन, उनके मेनहत का ही नतीजा रहा कि एक खास किरदार निभाने के बावजूद भी वो अपने करियर में सफल रहे। 

एक्शन वाली फिल्मों के बाद काफी संघर्ष करना पड़ा

फिल्म बॉबी में अभिनय करने के वक्त वो महज 21 साल के थे, जब उन्हें एक अलग पहचान मिली। लेकिन एक्शन वाली फिल्मों की बॉलीवुड की दुनिया में एक बाढ़ सी आने के बाद उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा और उन्हें यह भी साबित करना पड़ा कि फिल्म बॉबी में मिली सफलता अचनाक से मिलने वाली सफलता नहीं थी।

बिग बी का था बोलबाला

बॉलीवुड लड़के-लड़कियों की मुलाकात वाली कहानियों से थक गया था और दर्शक मार-धाड़ से भरपुर (एक्शन) वाली फिल्मों की तरफ रूख करना शुरू कर दिए थे। जिस वक्त बॉबी रिलीज हुई थी उसके कुछ महीने पहले ही प्रकाश मेहरा के निर्देशन में सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म जंजीर (1973) में आई थी, जिसने बड़ी सफलता के साथ खुद को हिंदी सिनेमा में एंग्री यंग मैन के रूप में स्थापित किया। जिसके बाद अमिताभ  दीवार (1975), शोले (1975) सरीखे कई अन्य एक्शन वाली फिल्मों के साथ सुपरस्टार बन गए।

मल्टी-स्टार्स कलाकारों में बनाई जगह

उस समय के सबसे बड़े रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना के करियर के खत्म होने का संकेत मिलने लगा था। पर्दे के इस दौर में पूरी तरह से बच्चन ही दिख रहे थे, जिसकी वजह से ऋषि जैसे अभिनेता एक अलग कतार में नजर आ रहे थे। फिर भी उन्होंने इन सभी चुनौतियों के बावजूद 1975 में आई खेल-खेल जैसी हिट फिल्में दी, जिसमें एक्शन नहीं था। उन्होंने अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेताओं के होते हुए भी कभी-कभी (1976), अमर अकबर एंथोनी (1977) और नसीब (1981) जैसी फिल्मों के साथ मल्टी-स्टार्स कलाकारों के समूह में अपनी उपस्थिति दर्ज कर लोहा मनवाया।

कई फिल्मों में किया अभिनय

क्योंकि वो फिल्मी घराने से आते थे, इसलिए कपूर परिवार को अपने पूर्वजों से भी अभिनय का गुण मिला और जिन्हें जहां अवसर मिला, उन्होंने खुद को साबित किया। अपने पिता की फिल्म मेरे नाम जोकर (1970) में एक छोटा सा किरदार निभाने के बाद ऋषि ने लैला मजनू (1976), सरगम (1979), प्रेम रोग (1982), सागर (1985) जैसी फिल्मों में अपनी बहुमुखी प्रतिभा को साबित किया। इसके अलावा तवायफ (1985), एक चादर मैली सी (1986) में अभिनय किया। उन्होंने कभी अपने रोमांटिक नायक की छवि को खत्म नहीं होने दिया।

1990 के दशक में भी किया कई हिट फिल्में दी

1990 के दशक में आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान जैसे सितारों का रूपहले पर्दे पर बोलबाला था, इसके बाद भी उन्होंने दीवाना (1992) और बोल राधा बोल (1991) में रोमांटिक संगीत के साथ "चॉकलेटी" नायक की भूमिका निभाई, जबकि इन फिल्मों की अभिनेत्री की उम्र ऋषि से आधी थी। भले ही इन फिल्मों में काम करने से पहले उन्होंने खोज (1989) जैसी फिल्म में अभिनय कर अपने रोमांस वाले नायक की छवि से निकलने की कोशिश की, लेकिन उस वक्त तक वो बॉलीवुड के सबसे रोमांटिक नायक बन चुके थे।

कई वर्षों तक फिल्म से रहे गायब

जिस तरह की भूमिका उन्हें ऑफर की जा रही थी, उससे निराश होकर, उन्होंने अपने पिता की आर.के. फिल्म्स बैनर तले आ अब लौट चलें (1999) में निर्देशित किया लेकिन मिली असफलता ने उन्हें काफी आहत कर दिया। जिसके बाद कई वर्षों तक वो फिल्मी दुनिया से गायब रहें। उसके बाद बेटे रणबीर कपूर ने सिनेमा जगत में दस्तक देकर अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया। उनके कई न चाहने वालों ने सोचा कि इस नए दशक में अब वो पर्दे पर नहीं दिखेंगे लेकिन हर बार की तरह उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित किया और एक बुजुर्ग नायक की भूमिका के साथ वो पर्दे पर लौट आए।

2018 में कैंसर ने उन्हें अपनी जद में ले लिया

कंटेन्ट आधारित सिनेमा के साथ उन्होंने कई तरह की भूमिकाएं निभाई। जिसका मतलब एक अंडरवर्ल्ड डॉन से लेकर एक समलैंगिक स्कूल के प्रिंसिपल तक था। कुछ ऐसे भी किरदार उन्होंने निभाया जो अपने करियर की पिछली पारी में लिए किया था। कपूर एंड संस (2016) और मुल्क (2018) जैसी फिल्मों के साथ वो अमिताभ बच्चन को छोड़ अपनी पीढ़ी के एकमात्र अभिनेता के रूप में उभरे। वास्तव में, उन्होंने 102 नॉट आउट (2018) में बच्चन की थीम को चुराकर आलोचकों को आश्चर्यचकित किया। लेकिन इन सबके बीच कई और चुनौतियां उनका इंतजार कर रहा था। 2018 में कैंसर के इलाज को लेकर उन्हें अमेरिका जाना पड़ा। वहां से वो करीब एक साल बाद  लौटे। उन्होंने अपने करियर को बड़े आत्मविश्वास के साथ फिर से शुरू किया था। उन्होंने वापसी के साथ ही हॉलीवुड हिट का एक भारतीय रूपांतरण, द इंटर्न (2015) दीपिका पादुकोण के साथ एक बड़ी फिल्म भी साइन की थी। 

अपने जीवन में एक अभिनेता से इतर ऋषि एक स्पष्ट ख्यालात और मजाकिया लहजे वाले आदमी थे, जिन्होंने कभी भी फिल्म इंडस्ट्री के भीतर और बाहर दोनों जगह अपने वास्तविक जीवन को कहने में शर्माहट नहीं महसूस की। 

एक और वास्तविक अभिनेता को खो दिया

जीवन के बीस वर्षों में उन्होंने इन दोनों गुणों को रेखांकित करने के लिए ट्विटर को एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल किया। भले ही उन्होंने कई लोगों के साथ अपनी टिप्पणियों को लेकर अलग तरीके से पेश आएं हो, लेकिन किसी के प्रति उन्होंने दुर्भावना नहीं दिखाई। इरफान खान के चले जाने के एक दिन बाद ही उनकी असामयिक मृत्यु ने बॉलीवुड ने एक और वास्तविक अभिनेता को खो दिया है। जो कई पीढ़ियों के दर्शकों के चेहरों पर अपनी अभिनय की रोशनी डालते रहेंगे। इतिहास उन्हें केवल एक रोमांटिक नायक के रूप में ही नहीं बल्कि एक आश्चर्यचकित करने वाले अभिनेता के रूप में भी याद रखेगा।

 

 

 

 

 

 

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