हिंदी सिनेमा की कई क्लासिक फिल्मों का गवाह रहा आइकॉनिक आर के स्टूडियो जल्द ही बस एक याद बनकर रह जाएगा। 1940 में शोमैन राज कपूर ने इस स्टूडियो का निमार्ण तब ही करवाया था, जब उन्होंने अपनी फिल्में बनानी शुरू की थी। 1988 में राजकपूर की मौत के बाद से मुंबई के चेंबूर इलाके में दो एकड़ के एरिया में फैले इस स्टूडियो को उनका परिवार ही चला रहा है लेकिन घटती आमदनी, बढ़ते खर्च और देखरेख में आ रही परेशानियों के चलते कपूर परिवार के लिए इसे बेचना मजबूरी बन गया है। बताया जाता है कि भविष्य में बच्चों के बीच जायदाद को लेकर कानूनी जंग से बचने के लिए भी यह फैसला किया गया है।
अब शूटिंग के लिए कम आते हैं लोग
70 साल पहले बने इस ऐतिहासिक स्टूडियो में पिछले साल 16 सितंबर को ‘सुपर डांसर' के सेट पर आग लग गई थी, जिसके कुछ हिस्से बुरी तरह जल गए थे। उस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ था। एक वजह इस स्टूडियो को बेचने की ये भी है कि आजकल कोई भी इतनी दूर शूटिंग करने के लिए आना नहीं चाहता क्योंकि उन्हें या तो अंधेरी या फिर गोरेगांव में लोकेशन आसानी से मिल जाती है।
व्यवहारिक नहीं था पुननिर्माण
ऋषि कपूर ने स्टूडियो को आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ फिर से तैयार कराने की इच्छा जताई थी। लेकिन उनके बड़े भाई रणधीर कपूर ने कहा कि यह व्यवहारिक नहीं था। रणधीर कपूर ने कहा, हां, ‘हमने आरके स्टूडियो को बेचने का फैसला किया है। यह बिक्री के लिए उपलब्ध है। स्टूडियो में आग लगने के बाद उसे फिर से बनाना व्यवहारिक नहीं था। इसे फिर से बनाना आर्थिक रूप से ठीक नहीं था।'
कई फिल्मों का रहा है गवाह
आरके बैनर के तहत बनी 'आग', ‘बरसात‘, ‘आवारा‘, ‘श्री 420‘, ‘जिस देश में गंगा बहती है‘, ‘मेरा नाम जोकर‘, ‘बॉबी', ‘सत्यम शिव सुंदरम', ‘राम तेरी गंगा मैली' जैसी बनीं फिल्में गवाह रही हैं। आखिरी फिल्म ‘आ अब लौट चलें' थीं जिसे ऋषि कपूर ने निर्देशित किया था। राजकपूर के 1988 में निधन के बाद उनके बड़े पुत्र रणधीर ने स्टूडियो का जिम्मा संभाला। बाद में राजकपूर के सबसे छोटे पुत्र राजीव कपूर ने ‘प्रेम ग्रंथ' का निर्देशन किया।