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सायरा बानो : जिनकी जिन्दगी का मकसद दिलीप कुमार रहे

सायरा बानो हिन्दी सिनेमा के सुनहरे दौर की सफ़ल अभिनेत्री हैं। सायरा बानो एक अभिनेत्री से बढ़कर...
सायरा बानो : जिनकी जिन्दगी का मकसद दिलीप कुमार रहे

सायरा बानो हिन्दी सिनेमा के सुनहरे दौर की सफ़ल अभिनेत्री हैं। सायरा बानो एक अभिनेत्री से बढ़कर हिन्दुस्तानी तारीख की अहम महिला हैं। यदि किसी को इंसानी जज्बात, रूहानी मुहब्बत, स्त्री का समर्पण समझना है तो सायरा बानो उपयुक्त किरदार हैं। सायरा बानो का जन्म 23 अगस्त सन 1944 को मसूरी में हुआ। उनकी मां नसीम बानो हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्री थीं। नसीम बानो के हुस्न और अभिनय के लोग मुरीद थे मगर शादी हो जाने के बाद उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली। 

जब सायरा बानो का जन्म हुआ तो उन्होंने घर में सांस्कृतिक और कलात्मक माहौल पाया। सायरा बानो अपनी मां की फिल्मों और अभिनय प्रतिभा से बेहद प्रभावित हुईं। सायरा बानो की दादी एक बेहद काबिल शास्त्रीय गायिका थीं। इस वातावरण में सायरा बानो के भीतर भी कलात्मक रुझान बढ़ने लगा। लेकिन उन दिनों स्त्रियों का फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। जब सायरा बानो के परिवार वालों ने महसूस किया कि भारत में रहकर सायरा बानो का रुझान फिल्मों की तरफ हो सकता है तो उन्होंने सायरा बानो को पढ़ने के लिए लंदन भेज दिया। मगर नसीब का लिखा कौन टाल सकता है। 

सायरा बानो जब लंदन से पढ़ाई पूरी कर के वापस आईं तो एक रोज मशहूर फिल्म निर्देशक महबूब खान की पार्टी में शरीक हुईं। इस पार्टी में सभी की निगाहें सायरा बानो पर थीं। सायरा बानो की खूबसूरती, उनकी शख्सियत की रोशनी में सभी मदहोश हो गए। पार्टी के दौरान कई फिल्म निर्माताओं ने सायरा बानो से उनकी फिल्मों में अभिरुचि जाननी चाही। सभी सायरा बानो को अपनी फिल्म में शामिल करना चाहते थे। इसी पार्टी में सायरा बानो की मुलाकात निर्देशक सुबोध मुखर्जी से हुई। 

 

सुबोध मुखर्जी पर भी सायरा बानो का असर हुआ। उन्होंने कुछ समय के बाद सायरा बानो के साथ फिल्म "जंगली" शुरू की। जंगली में अभिनेता शम्मी कपूर मुख्य भूमिका निभा रहे थे। सायरा बानो केवल 17 साल की थीं। उन्हें अभिनय का कोई तजुर्बा नहीं था। सुबोध मुखर्जी ने सायरा बानो को फिल्म में कास्ट तो कर लिया था मगर उनका यह निर्णय चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला था। शूटिंग के दौरान ऐसे कई मौके आए, जब शम्मी कपूर और सुबोध मुखर्जी सायरा बानो से खफा हो गए। सायरा बानो से अभिनय करने में मुश्किल हो रही थी। अनुभव की कमी और पहले काम के दबाव में सायरा बानो घबरा गई थीं। खैर फिल्म की शूटिंग पूरी हुई। सायरा बानो अभिनेता दिलीप कुमार से बेपनाह इश्क करती थीं। फिल्मों से उनका जुड़ाव भी दिलीप कुमार के कारण था। एक रोज सायरा बानो अपनी मां के साथ किसी जगह गई हुईं थीं। वहां उन्हें दिलीप कुमार का एक प्रशंसक मिला। उस इंसान से सायरा बानो की मां से सायरा बानो की फिल्म के बारे में पूछा। नसीम बानो ने बताया कि सायरा बानो की फिल्म "जंगली" रिलीज होने वाली है। जब दिलीप कुमार के प्रशंसक ने सायरा बानो की फिल्म की रिलीज डेट सुनी तो वह सोच में पड़ गया। थोड़ा चिंतित होकर उसने नसीम बानो से कहा कि ठीक उसी समय तो दिलीप कुमार की फिल्म "गंगा जमुना" भी रिलीज होने जा रही है। ऐसे में सायरा बानो की फिल्म का कामयाब होना कठिन है। यह सुनकर सायरा बानो की आंखों से आंसू निकल पड़े। सायरा बानो के प्रेम में एक सच्चाई थी। इसी कारण उनके आंसू ईश्वर ने देख लिए। सायरा बानो की फिल्म "जंगली" लगभग दिलीप कुमार की फिल्म "गंगा जमुना" के साथ रिलीज हुई। बावजूद इसके फिल्म जंगली सुपरहिट साबित हुई। जंगली के कामयाब होने से न केवल फिल्म इंडस्ट्री में सायरा बानो छा गईं बल्कि इस फिल्म ने शम्मी कपूर के कैरियर में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

 

जंगली के हिट होने के बाद हिन्दी सिनेमा के सभी निर्देशक और निर्माता सायरा बानो को अपनी फिल्म में लेना चाहते थे। "गाइड", "ज्वेल थीफ", "राम और श्याम" जैसी फिल्में सायरा बानो को ऑफ़र हुई थीं। लेकिन सायरा बानो का लक्ष्य फिल्म, शोहरत, दौलत थी ही नहीं। वह तो दिलीप कुमार से बेइंतहा मुहब्बत करती थीं। उन्हें केवल दिलीप कुमार के साथ काम करना था। सायरा बानो ने हिन्दी सिनेमा के निर्माताओं से कह दिया कि यदि वह दिलीप कुमार को अपनी फिल्म में कास्ट कर लें तो वह मुफ्त में उनकी फिल्म में काम करेंगी। यह जुनून था सायरा बानो का दिलीप कुमार के प्रति। 

मजेदार बात यह है कि दिलीप कुमार से सायरा बानो के पिता और अन्य परिचित थे। वह अक्सर कहा करते कि दिलीप कुमार सायरा बानो को फिल्मों से दूर रहने की हिदायत दें। मगर नसीब को तो कुछ और मंजूर था। महबूब ख़ान की पार्टी में शामिल दिलीप कुमार की जब सायरा बानो से मुलाकात हुई तो सायरा बानो उन्हें एकटक देखती रहीं। दिलीप कुमार से सायरा बानो का तार्रुफ करवाते हुए महबूब खान बोले "दिलीप साहब, यह लड़की आपके साथ काम करना चाहती है"। यह सुनकर दिलीप कुमार मुस्कुराए और अपने बालों की तरफ इशारा करते हुए बोले "मेरे बालों में अब सफेदी आ चुकी है"। इस बात को सुनकर सायरा बानो ने जवाब दिया "यही तो आपको दुनिया से अलग दिखाती है"। दिलीप कुमार सायरा बानो की बात से प्रभावित हुए। 

 

सायरा बानो ने "शागिर्द", "पड़ोसन", "झुक गया आसमान" जैसी कई शानदार फ़िल्में की। सायरा बानो का लक्ष्य मगर दिलीप कुमार का जीवनसाथी बनना था। आखिरकार 11 अक्टूबर 1966 को सायरा बानो ने दिलीप कुमार से विवाह किया। दिलीप कुमार से बेपनाह मुहब्बत करने वाली सायरा बानो ने अपना सारा जीवन दिलीप कुमार की सेवा में लगा दिया। सायरा बानो की सुबह दिलीप कुमार से होती थी और दिलीप कुमार के नाम से ही उनकी शाम ढलती थी। साल 2021 में दिलीप कुमार के निधन तक सायरा बानो हर दिन, हर क्षण दिलीप कुमार के पास रहीं, साथ रहीं। मुहब्बत और समर्पण की जो मिसाल सायरा बानो ने पेश की, वह दूसरी कहीं नहीं नजर आती। दिलीप कुमार से सायरा बानो की दीवानगी का एक किस्सा बड़ा मशहूर है। सायरा बानो लंदन से आई हुई थीं। उन्हीं दिनों दिलीप कुमार की मशहूर फिल्म "मुगल ए आजम " का प्रीमियर था। फिल्म जगत से जुड़ी होने के कारण सायरा बानो के घर पर भी फिल्म के निर्देशक के आसिफ ने आमंत्रण भेजा। सायरा बानो दिलीप कुमार से मिलने की बात सोचकर उत्साहित हो गईं। उन्होंने एक हफ्ता सजने संवरने में लगाया। जब सायरा बानो अपनी मां के साथ फिल्म के प्रीमियर पर पहुंची तो मालूम हुआ कि दिलीप कुमार नहीं आने वाले हैं। किन्हीं कारणों से के आसिफ और दिलीप कुमार में मतभेद हो गए थे इसलिए दिलीप कुमार ने प्रीमियर से किनारा कर लिया था। सायरा बानो इस बात से उदास हो गईं और उन्होंने फिल्म छोड़ दी। उन्हें तो यह उम्मीद थी कि उनकी सुंदरता तो देखकर दिलीप कुमार मंत्रमुग्ध होकर उन पर फना हो जाएंगे। मुहब्बत की इस पाकीजगी, मासूमियत के कारण ही सायरा बानो का इश्क सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो चुका है। 

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