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मेनू कार्ड पर जाति और गोमांस

गाय माता ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके दिन कभी बहुरेंगे। बहुरेंगे भी तो ऐसे कि जीते जी उन्हें कुछ भी हो जाए पर मर जाने के बाद उनके चमड़े और मांस पर सियासत होगी। गोमांस फिलफक्त का सबसे बड़ा मुद्दा है।
मेनू कार्ड पर जाति और गोमांस

गोमांस खाने पर प्रतिबंध लगाने के बाद बयानों, आरोपों, मारपीट, झगड़ों के बाद वृत्तचित्र की बारी आई है। एक वृत्तचित्र बना है, कास्ट ऑन द मेनू कार्ड (मेनू कार्ड पर जाति) इस वृत्तचित्र का प्रदर्शन कुछ दिनों पहले एक फिल्म महोत्सव में होना था जिसे बाद में रोक दिया गया। इसके बाद इस वृत्तचित्र का प्रदर्शन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ।

प्रदर्शन के बाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने  कहा कि विश्वविद्यालय परिसर में इसके प्रदर्शन की मंजूरी नहीं ली गई थी। इससे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक फिल्म महोत्सव में उसे दिखाने की मंजूरी दिए जाने से इनकार कर दिया था।

अन्य 35 वृत्तचित्रों में यह एकमात्र वृत्तचित्र था जिसे सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी (सीसीएस) की ओर से आयोजित 12वें जीविका एशिया लाइवलीहुड डाक्यूमेंट्री फेस्टिवल में प्रदर्शन की मंजूरी नहीं मिली थी।

इसके बाद फिल्म निर्माताओं ने खुद से ही इसका प्रदर्शन करने का निर्णय किया था। इस निर्णय के बाद इस फिल्म का पहला प्रदर्शन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में किया गया। जेएनयू के बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने कहा कि प्रशासन ने रात साढ़े नौ बजे परिसर के लॉन में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, इसके बाद ही इसे दिखाया गया। प्रशासन का कहना है कि दोपहर में यह फैसला वापस ले लिया गया था और इस बाबद आयोजकों को भी बताया गया था।

इस फिल्म को टाटा इंस्टीट्यूट फॉर सोशल साइंसेज के छात्रों ने बनाया है। इनमें से एक अतुल आनंद ने कहा कि यह फिल्म महाराष्ट्र सरकार द्वारा बीफ पर प्रतिबंध लगाने और उससे जुड़े लोगों को रोजगार मिलने पर आधारित है। इस फिल्म का गोमांस खाने से कोई नाता नहीं है। 

एजेंसी इनपुट

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